-दो दिवसीय नेशनल होम्योपैथिक कॉन्फ्रेंस में केजीएमयू के कुलपति ने कहा, मिलजुल कर कार्य करने की जरूरत
सेहत टाइम्स
लखनऊ। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ बिपिन पुरी ने कहा है कि हम एलोपेथी विधा के लोग जब इलाज करते हैं तो हम एक्यूट ट्रीटमेंट तो कर देते हैं लेकिन क्रॉनिक बीमारियों का इलाज ठीक से नहीं कर पाते हैं, मैं समझता हूं कि अल्टरनेटिव मेडिसिन में यह गैप भरने की ताकत है। उन्होंने कहा कि हमें मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
डॉ पुरी ने यह बात यहां अटल बिहारी वाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में शनिवार से आयोजित दो दिवसीय नेशनल होम्योपैथिक कॉन्फ्रेंस 2022 के पहले दिन मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होकर अपने सम्बोधन में कही। इस कॉन्फ्रेंस का आयोजन होम्योपैथिक फ्रैटरनिटी ऑफ इंडिया द्वारा होम्योपैथी के जनक डॉ सीएफएस हैनिमैन की पुण्यतिथि (2 जुलाई) पर किया गया। डॉ पुरी ने कहा कि अल्टरनेटिव मेडिसिन जिसके बारे में भारत सरकार भी बात करती है, अल्टरनेटिव मेडिसिन की अहमियत आज समझी जा रही है।
उन्होंने कहा कि साथ ही हमें यह भी समझना है कि यह टाइम है एविडेंस बेस्ड मेडिसिन का। उन्होंने कहा कि यह मेरा आप सभी से आग्रह है और यह मैं दिल्ली आयुष में भी कह चुका हूं कि एविडेंस इसलिए जरूरी है कि दवा को हम रीप्रोड्यूस करके साबित कर सकें कि इस दवा से असर हो रहा है। उन्होंने कहा कि जिस दवा के बारे में आंकड़े होते हैं उसका असर पड़ता है। इससे पूर्व अपने भाषण की शुरुआत में डॉ पुरी ने कहा कि केजीएमयू परिवार की तरफ से मैं आप सबका अभिनंदन करता हूं यह हॉल हमारे यूनिवर्सिटी का ज्ञान का एक मंदिर है और आप सब ने यहां आकर इसे सुशोभित किया है।
साक्ष्य आधारित इलाज करें : डॉ गिरीश गुप्ता
समारोह की शुरुआत आयोजन सचिव डॉ रेनू महेन्द्र के स्वागत भाषण से हुई। पैट्रन डॉ गिरीश गुप्ता ने अपने सम्बोधन में कहा कि लखनऊ के लिए गर्व की बात है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस का आयोजन ऐतिहासिक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर बने साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में हो रहा है। कोविड के बाद पिछले दो वर्षों से पूरे विश्व में कॉन्फ्रेंस जैसी एक्टिविटी नहीं हो सकी थीं। इस लम्बे समय के बाद नवाबों के शहर के लिए मशहूर लखनऊ को यह सम्मेलन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि इस कॉन्फ्रेंस का मुख्य उद्देश्य होम्योपैथी को विज्ञान की मुख्य धारा में लाना है। उन्होंने चिकित्सकों का आह्वान करते हुए कहा कि 21वीं शताब्दी में सिर्फ और सिर्फ साक्ष्य आधारित दवा ही टिक सकेगी। मेरी सभी चिकित्सकों से अपील है कि आप अगर छोटी सी क्लीनिक भी चला रहे हैं तो भी साक्ष्य आधारित इलाज करें जिससे कि समाज में यह मैसेज जाये कि होम्योपैथी दवा का वैज्ञानिक आधार है।
होम्योपैथी के माध्यम से पहुंच सकते हैं जन-जन तक
आयोजन के उपाध्यक्ष डॉ सर्वदमन सिंह ने कहा कि समारोह में पूरे भारत वर्ष से 1200 डेलीगेड्स आये हैं, उन्होंने कहा कि होम्योपैथी के माध्यम से हम जन-जन तक पहुंच सकते हैं। सरकार ने हमारी बहुत मदद की है लेकिन जिस स्तर तक मदद होनी चाहिये थी, वह नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश भर की सभी 1588 डिस्पेंसरी में किसी में भी जांच की सुविधा नहीं है। इसी प्रकार उन्होंने होम्योपैथी की पढ़ाई की गुणवत्ता को भी अच्छा बनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि गिने-चुने लोगों की बात छोड़ दें तो आज कोई भी होम्योपैथिक चिकित्सक अपने बच्चे को होम्योपैथी डॉक्टर नहीं बल्कि ऐलोपैथिक डॉक्टर बनाना चाहता है। डॉ गिरीश गुप्ता, डॉ नरेश अरोरा, डॉ शेखर टंडन ने अपने बेटे को जरूर होम्योपैथिक डॉक्टर बनाया है, लेकिन ऐसे लोग गिने-चुने हैं इसका कारण है कि ऐलोपैथी में आज शिक्षा का स्तर अच्छा है, सुविधाएं हैं। उन्होंने कहा कि मेरा सरकार से अनुरोध है कि होम्योपैथी शिक्षा देने वाले टीचर को छह माह का कोर्स ऐलोपैथी में करने की व्यवस्था करनी चाहिये।
जर्मन नहीं, भारतीय चिकित्सा पद्धति है होम्योपैथी
आयोजन के संयोजक डॉ बीएन आचार्य ने कहा कि होम्योपैथी भारतीय चिकित्सा पद्धति है, डॉ हैनिमैन जर्मनी में जरूर पैदा हुए लेकिन होम्योपैथी का सिद्धांत हमारे पुराणों में निहित रहा है श्रीमद भागवत ग्रंथ में भी कहा गया है कि प्राणियों को जिस प्रकार के पदार्थ के सेवन से रोग हुआ है उसी पदार्थ के चिकित्सीय सेवन से उसे ठीक किया जा सकता है। कालान्तर में डॉ हैनिमैन से इसे कर दिखाया। इस देश के लिए होम्योपैथिक पद्धति ही अनुकूल है।
उन्होंने डॉ हैनिमैन की जीवनी के बारे में बताते हुए कहा कि वह बालक जो गरीबी में पला, वह विद्यार्थी जो पढ़ाकर अपना खर्च चलाता रहा, वह व्यक्ति जो 24 शहरों और कई देशों में घूमता रहा, जिस ने लगभग 90 दवाओं की क्लोनिंग की, 12 वॉल्यूम किताब के लिखे, 70 मौलिक निबंध लिखें, 24 वॉल्यूम्स का अनुवाद किया, 50000 से भी अधिक पन्नों का प्रकाशन किया, ऐसा व्यक्ति अंत में यह कहते हुए दुनिया से विदा हो गया कि मैं अनावश्यक ही नहीं जिया। उनकी मृत्यु पेरिस में हुई थी।
होम्योपैथी के प्रति समर्पित हैं प्रधानमंत्री
पटना से आये पैट्रन डॉ रामजी सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश ऐसा पहला प्रांत है जहां आयुष यूनिवर्सिटी बन रही है, ज्ञात हो आयुष यूनिवर्सिटी गोरखपुर में बन रही है। उन्होंने कहा होम्योपैथी में सबसे ज्यादा कार्य उत्तर प्रदेश में हुआ है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी होम्योपैथी को लेकर बहुत समर्पित हैं, उनके घर में, उनकी पॉकेट में होम्योपैथी की दवा रहती है। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने ही अपनी तरफ से आयुष विभाग की जगह आयुष मंत्रालय का गठन करवाया और मुझे उम्मीद है कि आने वाले समय में प्रधानमंत्री अलग से होम्योपैथिक मंत्रालय का गठन भी करवाएंगे।
कोरोना से बचाने में 98 प्रतिशत कारगर रही होम्योपैथिक दवा
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ होम्योपैथी कोलकाता से आए डॉ सुभाष सिंह ने कहा कि हम लोगों ने कोरोना काल में एक बड़ी श्रम बस्ती धारावी में जब कोरोनावायरस हुआ तो वहां पर कैंप लगाए और 15000 परिवारों को दवा दी और और बाद में जब उसका विवरण लिया तब पाया गया कि 98% लोगों को कोरोना से बचाने में सफलता मिली, यह अपने आप में अनूठी बात है।
विधान परिषद सदस्य साकेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि कि मेरा यहां पर प्रतिभाग करने आए विशेषकर नए चिकित्सकों से अनुरोध है कि वह कॉन्फ्रेंस में आए विद्वानों की बातों को अवश्य सुने क्योंकि उनके अनुभव से आपको बहुत लाभ मिल सकता है क्योंकि किताबों से ज्ञान तो मिल सकता है लेकिन अनुभव से जो मिलता है वह किताबों से नहीं मिलता है।
होम्योपैथी की स्वीकार्यता बढ़ायें
स्त्री रोग विशेषज्ञ बहराइच से विधायक डॉ प्रज्ञा त्रिपाठी ने कहा कि मुझे जब यहां कॉन्फ्रेंस में आने का निमंत्रण मिला तो मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि मैं यही केजीएमयू से पढ़ी हूं। होम्योपैथी के बारे में बोलते हुए कहा कि मुझे अंदाजा नहीं था कि कितने सिस्टम में आप लोग कार्य कर रहे हैं मैं पहले समझती थी कि आप लोग छोटी-मोटी बीमारियों के लिए ही काम करते होंगे लेकिन मैं गलत थी। उन्होंने कहा कि यह आपको सुनिश्चित करना है कि होम्योपैथी की स्वीकार्यता पूरे देश में कैसे बढ़ाई जाए। इसके लिए पूरा देश आपको देख रहा है। सुनिश्चित करना होगा कि उन्होंने आए हुए प्रतिभागियों से कहा कि यहां पर विद्वानों द्वारा जो भी बताया जाए उसे खूब अच्छे से समझ कर जाएं ताकि इसका लाभ आपको मिल सके।
उन्होंने कहा कि ऐसे रोग जिनको ठीक होने में बहुत टाइम लग जाता है उस पर जो होम्योपैथी में काम हुआ है इसके बारे में आप लोग अवश्य ही समझ कर जाएं। उन्होंने कहा कि एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री के बारे में सभी पैथी के बच्चों को पढ़ाया जाए जिससे कि वह बीमारी की तह तक पहुंच कर अच्छा इलाज कर सके इसके लिए शिक्षा प्रणाली में बदलाव होना चाहिए इसके लिए सभी लोग प्रयास करें। उन्होंने हमेशा अपना पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया।
डॉ अनुरुद्ध वर्मा की स्मृति में वार्षिक एवॉर्ड घोषित
कर्नाटक क्वालिफाइड होम्योपैथिक एसोसिएशन बैंगलोर से आए डॉक्टर बी डी पटेल ने अपनी संस्था की ओर से सेंट्रल काउंसिलिंग ऑफ होम्योपैथी के पूर्व सदस्य रह चुके उत्तर प्रदेश के डॉ अनुरुद्ध वर्मा की स्मृति में प्रतिवर्ष पुरस्कार देने की घोषणा की इसका पहला पुरस्कार डॉ आनंद चतुर्वेदी को दिया गया। ज्ञात हो डॉ अनुरुद्ध वर्मा की मौत 31 अक्टूबर, 2021 को हो गयी थी।
प्रथम होम्योपैथिक रिसर्च फाउंडेशन लाइफ टाइम एचीवमेंट अवॉर्ड 2022 डॉ आनंद चतुर्वेदी को
शोध, शिक्षण को बढ़ावा देने, मेधावी छात्रों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 2004 में स्थापित होम्योपैथिक रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ गिरीश गुप्ता ने प्रथम होम्योपैथिक रिसर्च फाउंडेशन लाइफ टाइम एचीवमेंट अवॉर्ड 2022 पूर्व निदेशक डॉ आनंद चतुर्वेदी को देने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि डॉ आनंद चतुर्वेदी को उन्होंने पहली बार स्टूडेंट के रूप में देखा था। उन्होंने कहा कि डॉ आनंद ने स्टूडेंट, लेक्चरर, रीडर, प्रोफेसर, प्रिंसिपल के बाद डायरेक्टर तक का सफर तय किया है, प्रगति का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है।
समारोह को पूर्व निदेशक प्रो बीएन सिंह ने भी सम्बोधित किया। मंच का कुशल संचालन डॉ पंकज श्रीवास्तव ने किया।