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कबूतर व अन्य जानवर पालने वाले जानवर पालने वाले लोग रहे सावधान

140 रोगों के समूह वाली बीमारी आईएलडी होने के कारणों की पहचान की जा रही

लखनऊ। अगर आप कबूतर या घर के अंदर रहने वाले अन्य जानवर पालने के शौकीन है तो सावधान रहें  क्योंकि  ऐसे में 40  बीमारियों के समूह आईएलडी होने की संभावना बढ़ जाती है, इसी प्रकार अगर आपको जोड़ों में दर्द है तो भी आईएलडी होने की संभावना दो गुनी है। क्योंकि यह बीमारी कुछ चीजों की एलर्जी से होती है। इन सावधानियों को बरतने से आपको यह बीमारी नहीं होगी, इसकी गारंटी नहीं है क्योंकि इस बीमारी के तमाम कारणों की पुष्टि ही नहीं है।

यह जानकारी शनिवार को होटल क्लार्क्स अवध में आईएलडी विषय पर राष्ट्रीय सीएमई में पीजीआई चंढ़ीगढ़ के डायरेक्टर डॉ.दिगम्बर बहेड़ा ने दी।

डॉ.बहेड़ा ने बताया कि इंटेरेसटीशियल लंग डिजीज(आईएलडी) 140 बीमारियों का समूह है, इस बीमारी की पहचान आसानी से हो जाती है। कुछ 20 प्रतिशत बीमारियों का इलाज भी संभव है, मगर यह बीमारी न हो, उन कारणों की जानकारी नहीं है क्योंकि इस बीमारी के होने के सभी कारणों की पुष्टि नही हो सकी है। हालांकि जिनकी हो चुकी है, उनमें कबूतर के पंख, जानवरों की रूसीे ड्रग्स, फफूंद एवं वातावरणीय प्रदूषण से बचने को कहा गया है। उन्होंने बताया कि भारत में यह बीमारी 1972 में डायग्नोस हुई थी, मगर उसके बाद भी गुणवत्ता युक्त जांच मशीनों के अभाव में मरीजों की अधिक पुष्टि नहीं होती थी। वर्तमान में आधुनिक मशीनें उपलब्ध होने के साथ ही लक्षणों की पुष्टि हो चुकी है, जिसकी वजह से आसानी से पहचान किया जा सकता है। इसकी पहचान और बीमारी की गंभीरता को बताने के लिए डॉक्टरों में जागरूकता बढ़ानी है। क्योंकि जागरूकता के अभाव में आज भी 67 प्रतिशत आईएलडी मरीजो को टीबी की दवा दी जा रही हैै। उन्होंने बताया कि यह बीमारी भारत ही नहीं   पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है। भारत में बीते दो साल की ओपीडी में 800 मरीज  खुद पंजीकृत किये हैं, जबकि तमाम संबन्धित अस्पताल पहुंच ही नही पाते हैं। इस अवसर पर केजीएमयू के कुलपति  प्रो.एमएलबी भटट की उपस्थिति में  डॉ.डी बहेड़ा ने, डॉ.सूर्यकांत की पुस्तक का विमोचन किया । इस अवसर पर एरा मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो.अब्बास अली, केजीएमयू कुलपति प्रो.एमएलडी भटट्, प्रो.त्रिपाठी आदि ने दीप प्रज्ज्वलित कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

दवाओं के गठजोड़ से भी होता है आईएलडी

आयोजन सचिव और एरा मेडिकल कालेज के प्रो. राजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि इस बीमारी ने अपनी दस्तक तेज कर दी है, अमेरिका से आने वाली इस बीमारी में पहले एक लाख आबादी में 30 लोग बीमार होते थे हलांकि अब यह संख्या कम हो गई है। मगर, आबादी बढऩे की वजह से रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि यह रोग अन्य बीमारियों की दवाओं के साइड इफेक्ट के रूप में भी हो जाता है। इसलिए अगर आपकों कुछ जीने चढऩे पर सांस फूलने लगती है और सूखी खांसी  आती है तो तुरन्त एलर्ट हो जाईये और विशेषज्ञ से इलाज ले अन्यथा एक समय स्थिति बहुत खराब हो जाती है।

ओपीडी में रोजाना आते है 10 प्रतिशत मरीज

वल्लभ भाई पटेल इंस्टीट्यूट के डॉ.रामकुमार ने बताया कि रोजाना ओपीडी में 10 से 12 मरीज आते हें, अब जांच की सुविधाएं बढऩे से मरीजों की संख्या बढ़ गई। उन्होने बताया कि जागरूकता के  अभाव का आलम है कि वर्तमान में भी 67 प्रतिशत आईएलडी मरीज टीबी की दवा का सेवन कर रहे हैं। जिन्हें उपचारित करना कठिन हो जाता है।

इसके अलावा यह भी देखा गया है कि स्मोकिंग है कि स्मोकिंग देखा गया है कि स्मोकिंग है कि स्मोकिंग वातावरण में प्रदूषण और तनाव की वजह से भी यह बीमारी होती है।

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