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आओ मिलते हैं… किसी गुलदार दरख़्त के नीचे…

दिल को छूते शब्‍दों से गुंथी काव्‍यमाला-1

अल्का निगम

कहते हैं कि जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि, शब्‍दों का मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर भी गहरा असर होता है। शब्‍दों में इतनी ताकत होती है कि उनसे दिल में घाव बन भी सकता है और घाव भर भी सकता है, बस यह निर्भर इस पर करता है कि शब्‍दों से नश्‍तर बनाया है या मरहम। जीवन की आपाधापी, दौड़-भाग, मूड पर सीधा असर डालने वाले समाचारों से बोझिल होते मस्तिष्‍क को सुकून देने की एक कोशिश ‘सेहत टाइम्‍स’ प्रेरक कहानियों को प्रकाशित करके पहले ही शुरू कर चुका है, अब पाठकों के लिए दिल को छू लेने वाली काव्‍य रचनायें प्रस्‍तुत हैं। हम इसकी शुरुआत लखनऊ की कवयित्री अल्का निगम की रचनाओं से कर रहे हैं। अल्का निगम ने अनेक विषयों पर अपनी कलम चलायी है, उनके काव्‍य संग्रह ‘लफ्जों की पोटली ‘की दो रचनाओं को यहां प्रस्‍तुत किया जा रहा है…   

न ओर मेरा न छोर तेरा

न ओर मेरा न छोर तेरा

तुझमें ही मेरा जग सारा,

भई त्रिभंगी राधा भी ये

तेरे नेह में नंदलाला।

अंग लगा तेरी साँसों को

तेरी वेणु में बस जाऊँ मैं,

तेरी साँसों के स्पंदन से

लहर लहर लहराऊं मैं।

मकरन्द मेरे अधरों का ले

जग में सुगंध तू बिखरा दे,

ओ वंशीधर इतना तू कर

मुझ गौरा को कृष्णा कर दे।

लोकलाज जग की बिसरा के

बस तुझको ही मैं गाऊँ,

भरी दोपहरी चाँद जान के

तुझे ओढ़ मैं सो जाऊँ।

इत उत बिखरे भाव समेट

बहती रागिनियों में लपेट,

तुझको अर्पण सर्वांग मेरा

अब कृष्णा ही मैं कहलाऊँ।

सर्वांग तुझे समर्पित कान्हा

बस इतना तू मुझे दे जा रे

कृष्णकृपा उस पर करना

एक बार भजे जो भी राधे।

आओ मिलते हैं… किसी गुलदार दरख़्त के नीचे

आओ मिलते हैं…

किसी गुलदार दरख़्त के नीचे,

जब ज़माने की ख़ुश्क नज़रों से

हमारे इश्क़ के तन पे उभर आईं खरौंचों पे,

छपाक से नदी में गिरते सूरज की छींटें पड़ें,

तो….शायद हमें तसल्ली मिले।

आओ मिलते हैं….

उस बेबाक सी शाम की अदालत में

जहाँ रोज़ लगती है हाज़िरी सूरज और चाँद की,

होती है जिरह और मिल जाती है अगली तारीख़।

तो चलो न एक मुक़दमा हम भी लगाते हैं

इसी बहाने जो हो मिलना

तो….शायद हमें तसल्ली मिले।

आओ मिलते हैं….

किसी आशिक़ की कब्र पे।

तर करते हैं उसकी नाकाम मोहब्बत की

चटखती ज़मीन को अपने अश्कों से,

के हमारी चाहतों को उसके इश्क़ की

कुछ दुआ ही मिल जाये,

तो….शायद हमें तसल्ली मिले।

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