एम्स के बराबर भत्तों की मांग को लेकर विरोध स्वरूप रक्तदान शिविर का आयोजन किया
मांगों के समर्थन में केजीएमयू और लोहिया संस्थान के रेजीडेंटस भी आये
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित संजय गांधी पीजीआई में वेतन भत्तों को लेकर रेजीडेंट्स डॉक्टरों ने अपनी लड़ाई छेड़ दी है। इसकी शुरुआत तो तीन दिन पूर्व निदेशक के घर का घेराव करके हुई थी। बाद में इन रेजीडेंट्स ने अपनी इस लड़ाई को अपनी ड्यूटी करते हुए आगे बढ़ाने का फैसला किया। इसी क्रम में आज रक्तदान का आयोजन किया गया है। संस्थान स्थित ब्लड बैंक में प्रातः 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक आयोजित होने वाले इस रक्तदान शिविर में केजीएमयू और लोहिया संस्थान के रेजीडेंट्स भी शामिल हो रहे हैं।
यह जानकारी देते हुए रेजीडेट डॉक्टर्स एसोसिएशन की कोर कमेटी के अध्यक्ष डॉ आशुतोष पाराशर, उपाध्यक्ष डॉ आकाश माथुर, संयोजक डॉ अनिल गंगवार, सचिव डॉ अक्षय और प्रवक्ता डॉ अजय शुक्ला ने बताया कि हमारी लड़ाई अपने जायज हक के लिए है। जब एम्स के बराबर वेतन देने की संस्तुति की गयी है तो फिर हम लोगों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों? उनका कहना है कि रेजीडेंट डॉक्टर भी अस्पताल का एक अभिन्न अंग है, इसलिए उसे अलग करके देखा जाना कहां तक उचित है? डॉ गंगवार ने कहा कि अपने हक के लिए हम लोगों द्वारा शुरू किये गये संघर्ष की पूरी रणनीति तैयार कर ली गयी है। उन्होंने कहा कि हमारे समर्थन में किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय और डॉ राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट के रेजीडेंट्स डॉक्टर भी आ गये हैं और वे लोग भी विरोध प्रदर्शन के रूप में किये जा रहे रक्तदान में भाग ले रहे हैं।
आपको बता दें कि बुधवार को रेजीडेंट्स डॉक्टरों के गुस्से का उबाल इस कदर तेज हुआ कि उन्होंने इतिहास रच दिया। सातवें वेतन आयोग के अनुसार ट्रांसपोर्ट भत्ते को लेकर दिन भर दिल में भरते रहा गुस्से का गुबार रात होते-होते ब्लास्ट हो गया और कंपकंपाते जाड़े की रात में संस्थान के निदेशक के आवास का घेराव करके की गयी नारेबाजी और फिर उसके बाद निदेशक के साथ हुई बहस ने संस्थान में स्पेशियलिस्ट और सुपर स्पेशियलिस्ट बनने की अंतिम पायदान पर खड़े डॉक्टरों द्वारा निदेशक के आवास का कई घंटे घेराव किया गया था। निदेशक बराबर घेराव करने वाले रेजीडेंट डॉक्टरों को समझाने का प्रयास करते रहे लेकिन उनकी बातों का रेजीडेंट डॉक्टरों पर कोई असर नहीं पड़ा।
आपको बता दें कि बीती 29 जनवरी को उत्तर प्रदेश की योगी कैबिनेट ने संजय गांधी पीजीआई के शैक्षिक और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों के लिए एम्स दिल्ली के अनुसार वेतन भत्ते स्वीकृत कर दिये। जाहिर सी बात है कि इसके बाद हर व्यक्ति अपने-अपने वेतन में होने वाली बढ़ोतरी को लेकर गुणा-भाग में लग गया। इसी गुणा-भाग में किसी तरह यह बात निकली कि रेजीडेंट्स को मिलने वाले ट्रांसपोर्ट भत्ते में बढ़ोतरी तो दूर भत्ते को समाप्त कर दिया गया है। बस इसी के बाद से गुस्से का दौर शुरू हो गया।
दरअसल इस मसले के पीछे का कारण यह है कि है कि सैद्धांतिक रूप से सरकार द्वारा रेजीडेंट्स डॉक्टरों को न तो शैक्षणिक कर्मचारी माना है और न ही गैर शैक्षणिक क्योंकि मास्टर डिग्री और सुपर स्पेशियलिटी की डिग्री लेने के लिए रेजीडेंट्स डॉक्टरी एक जरूरी हिस्सा है और इसके लिए रेजीडेंट्स डॉक्टर की नियुक्ति तीन साल के लिए अस्थायी रूप से की जाती है। सरकार का यह भी मानना है कि चूंकि नीट द्वारा रेजीडेंटस की भर्ती की जाती है, ऐसे में सिर्फ पीजीआई में इसे लागू करना मुश्किल पड़ेगा। फिलहाल अब गेंद सरकार के पाले में है और वह क्या फैसला करती है, यह सब अभी भविष्य के गर्भ में है।