आवश्यकता है दर्द और सूजन की शुरुआत होते ही इलाज करवाने की, रिसर्च किये जाने की
लखनऊ। ऑस्टियो ऑर्थराइटिस या गठिया या संधिपात को बढ़ती उम्र की बीमारी मान कर उससे समझौता करना गलत है। लोगों की यह भी धारणा है कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं हो सकता है, इसमें कुछ करने की जरूरत नहीं है बस एक ही रास्ता है कि दर्द बर्दाश्त करो और खुश रहो। यह बात केजीएमयू के रिह्यूमेटोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो सिद्धार्थ दास ने आज लखनऊ विश्व विद्यालय के जियोलॉजी विभाग में आयोजित व्याख्यान शृंखला के तहत अपने व्याख्यान ‘अटलजी और ऑस्टियोऑर्थराइटिस’ प्रस्तुत करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि यह सोच जनता की ही नहीं डॉक्टरों की भी है। उन्होंने कहा कि डॉक्टर यह चेतावनी तो देते हैं कि दर्द की दवाओं से हार्ट डिजीज और किडनी डैमेज होने का डर बना रहता है, मरीज को यह समझा दिया जाता है कि दर्द से निजात के लिए प्रत्यारोपण के अलावा कोई रास्ता नहीं है। उन्होंने बताया कि चूंकि प्रत्यारोपण बहुत खर्चीला होता है, ऐसे में 99 प्रतिशत मरीज प्रत्यारोपण का रास्ता अपनाने में असमर्थ रहते हैं यानी सीधा सा मैसेज है कि दर्द में भी मुस्कुराकर खुश रहो।
उन्होंने कहा कि ऑस्टियो ऑर्थराइटिस की समस्या के प्रति हमें जागने की जरूरत है। इस पर रिसर्च किये जाने की जरूरत है, बल्कि मैं तो कहूंगा कि आम जनता को इस बीमारी के इलाज की खोज की मांग सरकार से करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार के एक नोटिफिकेशन में बताया गया है कि भारत में ऑस्टियो ऑर्थराइटिस दिव्यांगता का चौथा आम कारण है। हालांकि हमारे अनुमान के मुताबिक यह संख्या कम है क्योंकि यह देखा गया है कि ऑस्टियो ऑर्थराइटिस के 80 फीसदी से ज्यादा लोगों में दिव्यांगता आ जाती है। डॉ दास ने कहा कि ऑस्टियो ऑर्थराइटिस एक क्रॉनिक डिजीज है जिससे 9 करोड़ लोग ग्रस्त हैं जबकि डायबिटीज से 4 करोड़ लोग ग्रसित हैं।
घुटनों के जोड़ों में दर्द से शुरू होती है यह बीमारी
उन्होंने बताया कि यह बीमारी घुटने के जोड़ों में दर्द से शुरू होती है और फिर दूसरे जोड़ों में भी अपना असर दिखाती है। शुरुआत में जोड़ों में सूजन होती है और इसका इलाज किया जा सकता है इसलिए आवश्यक यह है कि इसके प्रति जागरूक रहा जाये और लक्षण शुरू होते ही लापरवाही न बरतते हुए इलाज शुरू कर देना चाहिये। उन्होंने बताया कि मस्कुलर पेन होने पर जांच में पाया गया है कि 50 प्रतिशत संभावना ऑस्टियो ऑर्थराइटिस की रहती है जबकि 50 प्रतिशत संभावना साधारण दर्द की होती है। उन्होंने कहा जिन मरीजों को हार्ट और डायबिटीज के साथ ऑस्टियो ऑर्थराइटिस की शिकायत होती है उनकी मौत की दर हार्ट और डायबिटीज से ज्यादा होती है। दिल की बीमारी के साथ ऑस्टियो ऑर्थराइटिस की शिकायत वाले मरीजों की मृत्यु दर सिर्फ दिल की बीमारी वाले लोगों की मृत्युदर से 1.5 से 1.7 गुना ज्यादा होती है। उन्होंने बताया कि दिक्कत यह होती है कि हार्ट का मरीज हो या डायबिटीज का उसे तेज चलने के लिए कहा जाता है, लेकिन ऑस्टियो ऑर्थराइटिस होने के कारण व्यक्ति तेज नहीं चल पाता है।
कैल्शियम के कण हो जाते हैं जमा
डॉ दास ने बताया कि ऑस्टियो ऑर्थराइटिस और दिल की बीमारियों का सम्बन्ध सिर्फ आयु से नहीं है बल्कि जोड़ों और धमनियों में कैल्शियम के कण जमा होने से भी है। उन्होंने कहा कि इन कैल्शियम के कणों के जमने से इन दोनों बीमारियों के होने के खतरे पर उनके द्वारा स्टडी की गयी थी। स्टडी के बारे में उन्होंने बताया कि वह लखनऊ विश्व विद्यालय के जियोलॉजी विभाग में आये और डॉ सुरेन्द्र कुमार के साथ इस पर स्टडी की। उन्होंने बताया कि स्टडी में यह पाया गया कि ऑस्टियो ऑर्थराइटिस के मरीजों के जोड़ों में कैल्शियम के कण जमा हो जाते हैं।
उन्होंने अटल जी की बीमारी के बारे में बताते हुए कहा कि मैंने उन्हें कभी नहीं देखा न ही उनका इलाज किया इसलिए उनकी बीमारी के बारे में मीडिया से पता चला कि उन्हें ऑस्टियो आर्थराइटिस की शिकायत थी। कहा जाता था कि ऑस्टियो ऑर्थराइटिस होने के बाद भी व़ह बिना किसी बड़ी कठिनाई के अपना कार्य करते थे, लेकिन एक दिन नागपुर के दौरे के समय अचानक बीमार पड़ गये, यहां तक कि सम्मेलन में भाषण देने के लिए भी वह खड़े नहीं हो सके क्योंकि वह घुटने के भीषण दर्द और सूजन से परेशान थे। डॉ दास ने कहा कि हो सकता है कि यह दिक्कत उन्हें ऑस्टियो ऑर्थराइटिस के कारण हुई हो लेकिन इस बारे में पक्के तौर पर मैं नहीं कह सकता क्योंकि मेरी उनसे कभी भी मुलाकात नहीं हुई थी। उन्होंने कहा कि इसके बाद घुटना प्रत्यारोपण ने उन्हें काफी हद तक अक्षम कर दिया और शायद उनके राजनीतिक जीवन के इतनी जल्दी समाप्त होने का यह एक बड़ा कारण बन गया।
सभी को ठीक नहीं कर पाता है घुटना प्रत्यारोपण
उन्होंने बताया कि ऑस्टियो ऑर्थराइटिस के लिए रामबाण समझे जाने वाले इलाज घुटना प्रत्यारोपण से बहुत से ऐसे लोग हैं जिनकी दिक्कत खत्म नहीं होती हैं। सर्जरी के तुरंत बाद 20 प्रतिशत लोग प्रत्यारोपण से खुश नहीं होते हैं। उन्होंने बताया कि रिसर्च के अनुसार 5 साल के बाद 50 प्रतिशत लोग अपने प्रत्यारोपण से खुश नहीं होते हैं। उन्होंने कहा कि अगर मांसपेशियां मजबूत नहीं होंगी तो भी प्रत्यारोपण सफल नहीं रहता है, संभव है अटल बिहारी के साथ भी यही दिक्कत रही हो जिससे उनका प्रत्यारोपण सफल नहीं रहा। उन्होंने यह भी कहा कि यह जरूरी नहीं हैं कि प्रत्यारोपण की सफलता 100 प्रतिशत कभी नहीं रहती है यह 96 प्रतिशत हो सकती है, इसलिए संभव है चार लोगों का प्रत्यारोपण सफल न रहे। इस मौके पर वहां उपस्थित कई लोगों ने गठिया के बारे में डॉ सिद्धार्थ दास से प्रश्न पूछकर अपनी जिज्ञासा शांत की।
‘बाजार भी था, बिकाऊ भी थे लेकिन खरीदार नहीं थे’
इस कार्यक्रम में लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ शैलेन्द्र नाथ कपूर ने अटल बिहारी के भारतीय संस्कृति से जुड़ाव के बारे में अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि अटल बिहारी ने राजनीति के क्षेत्र में भी पूरी पावनता बरती। एक वोट कम रहने के कारण सरकार गिरने की घटना के बारे में बताया कि वह कितने संस्कृतिवान थे इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री होने की स्थिति में भी उन्होंने प्रलोभन देकर किसी सांसद को अपनी तरफ करने की कोशिश नहीं की। डॉ कपूर ने बताया कि जब अटल की सरकार गिर गयी तो एक पत्रकार ने उनसे पूछा था कि आप एक सरकार में रहते हुए एक सांसद का इंतजाम नहीं कर सके क्या राजनीति के बाजार में कोई सांसद बिकाऊ नहीं था? इस पर अटल बिहारी ने जवाब दिया कि बाजार भी था, बिकाऊ भी था लेकिन खरीदार नहीं थे। इसके अलावा भी उन्होंने अटल बिहारी के साथ के कई संस्मरण सुनाये।
कार्यक्रम के आयोजक सेंटर ऑफ एडवांस स्टडी इन जियोलॉजी के निदेशक डॉ ध्रुवसेन सिंह थे। इस मौके पर कुलपति प्रो एसपी सिंह ने भी सम्बोधित करते हुए कहा कि राष्ट्र बनता है व्यक्ति, परिवार, संस्था, राज्य से, इनमें किसी प्रकार का ऑर्थराइटिस नहीं होना चाहिये। उन्होंने कहा कि संस्था महत्वपूर्ण है व्यक्ति नहीं, संस्थाओं को जिन्दा रखना चाहिये। इस मौके पर प्रति कुलपति प्रो यूएन द्विवेदी व अन्य शिक्षक, और छात्र-छात्रायें उपस्थित रहे।