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स्वस्थ फेफड़े ही जीवन का वास्तविक दीपक

-सांस के रोगी दिवाली में क्या करें, क्या न करें

-डॉ सूर्य कान्त की कलम से

डॉ सूर्यकान्त

दिवाली अब दीयों की तुलना में आतिशबाजी और पटाखों का त्यौहार अधिक प्रतीत होती है। दीपावली से कई दिन पहले ही पटाखों की कानफोड़ू आवाजें लोगों के चैन में खलल डालने लगती हैं। इनसे उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण के साथ-साथ वायु प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन जाता है।

इन प्रदूषकों से वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण सभी प्रकार के पर्यावरणीय नुकसान होते हैं। आतिशबाजी के निर्माण में प्रयुक्त कागज, गत्ता और प्लास्टिक न केवल वनों की कटाई का कारण बनते हैं, बल्कि उनकी फैक्ट्रियाँ भी प्रदूषण फैलाती हैं। इसके गंभीर परिणामों में जलना, आंखों की रोशनी जाना, दिल या दमा का दौरा पड़ना, स्थायी बहरापन और यहां तक कि मृत्यु तक शामिल हैं। इन सभी के अतिरिक्त, इन गैसों से सिरदर्द, माइग्रेन, आंख-नाक की एलर्जी, उच्च रक्तचाप और हृदयाघात के मामले बढ़ जाते हैं।

सांस संबंधी बीमारियों पर दीपावली का दुष्प्रभाव

भारत में लगभग 4 करोड़ लोग अस्थमा और 6 करोड़ लोग सीओपीडी से पीड़ित हैं। इन मरीजों के लिए दीपावली का समय किसी दुःस्वप्न से कम नहीं होता।
आतिशबाजी से उत्पन्न धुआं और सूक्ष्म धूलकण (PM2.5, PM10) फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर जाते हैं। इससे एलर्जिक रिएक्शन, फेफड़ों की सूजन और श्वसन मार्ग में रुकावट होने लगती है। इन परिस्थितियों में सांस के रोगियों को दम घुटने, खांसी, सीने में जकड़न और दमा का दौरा पड़ सकता है। धुएं में मौजूद ओज़ोन गैस फेफड़ों की सतह को नुकसान पहुंचाकर ऑक्सीजन के आदान-प्रदान की क्षमता घटा देती है। इससे फेफड़े कमजोर होते जाते हैं और सांस की तकलीफ बढ़ती जाती है।

दीपावली के दौरान घरों में साफ-सफाई, पुताई और रंगाई-पेंटिंग का चलन बहुत आम है। स्वच्छता अत्यंत आवश्यक है, परंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि सफाई के दौरान उठने वाली धूल, गंदगी और डस्ट माइट्स जैसे सूक्ष्म कण हमारे नाक और मुंह के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। अस्थमा, नाक की एलर्जी और अन्य श्वसन रोगियों के लिए ये धूलकण अत्यंत हानिकारक होते हैं। रंग, पेंट और वार्निश में उपस्थित रसायन भी श्वसन तंत्र को उत्तेजित कर सकते हैं, जिससे सांस के रोगियों के लक्षण बढ़ सकते हैं और उन्हें अधिक तकलीफ हो सकती है। इसलिए ऐसे रोगियों को घर की सफाई, पेंटिंग या सजावट के कार्यों से दूर रहना चाहिए। यदि घर में रंग या वार्निश किया जा रहा हो, तो जब तक उसकी गंध पूरी तरह समाप्त न हो जाए, तब तक रोगी को उस स्थान से दूर रहना चाहिए। दीपावली के उल्लास में अपनी सेहत की उपेक्षा न करें, क्योंकि थोड़ी सी सावधानी ही गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं से बचा सकती है।

सांस के रोगियों के लिए दीपावली में सावधानियाँ

• घर के अंदर रहें: जहां तक संभव हो, दीपावली के दिनों में बाहर निकलने से बचें।
• मास्क का उपयोग करें: विशेष रूप से प्रदूषण-रोधी N95 मास्क लगाएँ।
• भाप लें और जल सेवन बढ़ाएँ: यह श्वसन मार्ग को नमी देता है और धूल-कणों को बाहर निकालने में मदद करता है।
• इनहेलर का नियमित उपयोग करें: दमा या सीओपीडी के मरीज अपनी दवाएं समय पर लें। यदि लक्षण नियंत्रित न हों तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
• सफाई, पेंट और धूल से दूरी रखें: दीपावली की तैयारी में होने वाली धूल, सफाई या पेंट की गंध से सांस का दौरा पड़ सकता है।
• हरियाली दीपावली मनाएँ: पटाखों की जगह दीये, फूल और प्राकृतिक सजावट का प्रयोग करें। इससे पर्यावरण भी बचेगा और स्वास्थ्य भी सुरक्षित रहेगा।
• सांस के रोगी अपने चेस्ट रोग विशेषज्ञ से दीवाली के पहले एक बार अवश्य मिल कर अपने इन्हेलर संबन्धी व अन्य चिकित्सकीय परामर्श ले लें।

दीपावली का असली अर्थ है अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और रोग पर स्वास्थ्य की विजय। याद रखिए “स्वस्थ फेफड़े ही जीवन का वास्तविक दीपक हैं।” आइए, इस बार हम पटाखों की जगह प्रेम, प्रकाश और पर्यावरण-संरक्षण से दीपावली मनाएँ।

डा॰ सूर्यकान्त
प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग,
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश, लखनऊ
सदस्य – नेशनल कोर समिति, डॉक्टर्स फॉर क्लीन एयर एंड क्लाइमेट एक्शन
अध्यक्ष – ऑर्गेनाइजेशन फॉर कंजर्वेशन ऑफ एनवायरनमेंट एंड नेचर

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