लोहिया अस्पताल के चिकित्सक ने डेवलप किया helpmedear ऐप
लखनऊ। अब अस्पताल हो या हो सड़क, कहीं भी घायल या बेहोशी की हालत में कोई व्यक्ति यदि आप को दिखता है, तो बस आपकी अपने मोबाइल फोन पर फ़ोटो के लिए ली गई एक क्लिक उसको उसके परिजन तक पहुंचा सकती है। इस एक छोटी सी क्लिक के अलावा आप को कहीं आने-जाने जैसी कोई भी कवायद करने की जरूरत नहीं है।
जी हां उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के डॉ राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय द्वारा एक ऐप helpmedear तैयार किया गया है। पूरे भारत वर्ष के लिए उपयोगी इस ऐप की लॉन्चिंग उत्तर प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने की। उन्होंने इस बेहद महत्वपूर्ण ऐप तैयार करने के लिए अस्पताल की तारीफ करते हुए कहा कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस ऐप को डाऊनलोड करें जिससे इसका लाभ प्रत्येक जरूरतमंद को हो सके। यह ऐप google play store से फ्री में डाऊनलोड किया जा सकता है। इसके लिए हेल्प मी डियर को अंग्रेजी के अक्षरों को एक साथ मिलाकर helpmedear टाइप करना होगा।
अस्पताल के निदेशक डॉक्टर डी एस नेगी ने बताया कि इस ऐप को अस्पताल के ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ विनोद कुमार आर्या और उनकी टीम ने develop किया है। इसके जरिए घायल होकर या किसी वजह से बेहोश होकर लावारिस हालत में अस्पताल पहुंचे लोगों की पहचान होना आसान हो जाएगी।
कैसे काम करेगा helpmedear ऐप
इस ऐप को डेवलप करने वाले डॉक्टर आर्या ने बताया कि जब लोग कहीं भी पड़े घायल या बेहोश व्यक्ति की फोटो ऐप के जरिए अपलोड करेंगे तो उस जगह की लोकेशन, तारीख, समय सब कुछ Google के माध्यम से दर्ज हो जाएगा। लेकिन यदि फोटो डालने वाला व्यक्ति चाहता है तो आसानी के लिए वह उस जगह की लोकेशन खुद भी लिख सकता है। साथ ही चाहे तो अपना नाम और मोबाइल नंबर भी लिख सकता है।
उन्होंने बताया कि अपनी तरह का यह पहला ऐप है। उन्होंने बताया कि यह ऐप सिर्फ पूरे भारतवर्ष में काम करेगा, भारत से बाहर किसी दूसरे देश में नहीं। डॉ आर्या ने बताया कि इस ऐप के जरिए जहां परिजनों को जल्दी सूचना प्राप्त हो जाएगी। वहीं मरीज को निकट के अस्पताल तक पहुंचाने में भी मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से खींची गई फोटो से कोई छेड़छाड़ ना हो इसलिए उसे ऐप के जरिए ही खींचा जा सकेगा, जिससे एडिटिंग की कोई संभावना नहीं है।
डॉ आर्या ने एक महत्वपूर्ण बात और बताते हुए कहा कि अगर हम सिर्फ लखनऊ के किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय स्थित पोस्टमार्टम गृह की की बात करें तो प्रतिवर्ष लगभग 1200 से 1500 शव लावारिस हालत में आते हैं। इनमें ज्यादातर वे लोग होते हैं जो भारत के दूर-दूर के हिस्सों में रहते हैं और किसी दुर्घटना में मौत का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में इस ऐप के जरिए कम से कम परिजनों को अपने गुम हुए परिजन की जानकारी मिलना आसान हो जाएगा।