लखनऊ। क्या आप जानते हैं कि आपका बच्चा मिट्टी खा रहा है और इसलिए खा रहा है कि वह आपका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सके क्योंकि वह अपने को उपेक्षित महसूस करने लगा था। हो सकता है कि यह सुनकर आपको ताज्जुब लगे कि एक साल का छोटा बच्चा यह सब सोच सकता है लेकिन यह सच है बच्चे भी हमारी आपकी तरह अपनी जरूरत को महसूस कर के उसे पूरा कराने के प्रति जागरूक होते हैं भले ही वह मुंह से कुछ न कह सकें। मिट्टी खाने की यह उसकी आदत उसके पेट में कीड़े पैदा करती है। यह कहना है बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अभिषेक वर्मा का।
नंगे पैर रहने से भी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं कीड़े
उन्होंने बताया कि बच्चा अगर नंगे पैर रहता है उससे भी उसकी स्किन में छिद्र के सहारे कीड़े शरीर के अंदर जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि अगर बच्चे को मिट्टी खाने से रोका न गया तो उसे खून की कमी होना तो आम लक्षण हैं, इसके अलावा आंतों में रुकावट, आंतों में छेद और अगर कीड़ा बायल डक्ट में चला गया तो बायल डक्ट को नष्टï कर सकता है।
शारीरिक एवं बौद्धिक विकास बाधित करते हैं पेट के कीड़े
उत्तर प्रदेश सरकार से मिली सूचना के अनुसार उत्तर प्रदेश में 1 से 19 वर्ष के बच्चों में 76 प्रतिशत के पेट में कीड़ों की समस्या है। कीड़ों से जहां बच्चों का एक ओर शारीरिक एवं बौद्धिक विकास बाधित होता है वहीं दूसरी ओर उनके पोषण एवं हीमोग्लोबिन स्तर पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है तथा स्कूल उपस्थिति भी प्रभावित होती है। बच्चों में पेट के कीड़ो के कारण उनका समग्र विकास नहीं हो पाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार भारत में 1 से 14 वर्ष की आयु के 22 करोड़ बच्चे आंतों के कीड़ों के संक्रमण के जोखिम में हैं ये कीड़े जो पोषक तत्व बच्चों के शरीर के लिए जरूरी होते हैं उन्हें खा जाते हैं, जिससे बच्चों में रक्त की कमी, कुपोषण और शरीर का विकास रुक जाने जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं। कीड़ों के अत्यधिक संक्रमण के कारण बच्चे इतने बीमार या थके हुए रहने लगते हैं कि वे स्कूल में पढ़ाई पर ध्यान देने या स्कूल जाने में असमर्थ हो जाते हैं, जिससे लंबे समय में उनकी कार्य क्षमता और औसत आयु में कमी आ सकती है।
एल्बेंडाजोल (400 मिग्रा) की गोली मार देती है पेट के कीड़े
एल्बेंडाजोल (400 मिग्रा) गोली खाकर कृमि मुक्त होना कृमि संक्रमण का सबसे सरल सुरक्षित व प्रभावी तरीका है। दुनिया भर में करोड़ो बच्चों में डिवर्मिग करने का व्यापक अनुभव पुष्टि करता है इस दवाई से बहुत मामूली, हल्के और थोड़े समय रहने वाले साइड इफैक्ट या कभी-कभी ड्रग रिएक्शन होता है और ये लक्षण आमतौर पर कृमि के मारे जाने से सम्बन्धित होते हैं। कृमि की अधिक संख्या होने के स्थिति में कुछ बच्चों में हल्का पेट दर्द, जी मिचलाना, उल्टी, दस्त और थकान जैसे आम लक्षण रिपोर्ट किए गए हैं। ये गंभीर लक्षण नहीं हैं तथा आमतौर पर इनके लिए किसी चिकित्सालय इलाज की जरूरत नहीं होती है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के मार्गदर्शन के अनुरूप समग्र प्रतिकूल घटना प्रबन्धन का प्राविधान किया गया है और संबंधित विभागों में सभी स्तरों के कर्मियों अध्यापकों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आशाओं को बच्चों के टेबलेट एल्बेंडाजॉल खिलाने के सम्बन्ध में समुचित प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में दवा देने का कार्यक्रम निर्धारित
उत्तर प्रदेश में प्रथम बार 10 फरवरी 2016 को 24 चिहिन्त जनपदों में 8240036 बच्चों को कीड़े से मुक्त किया गया था तथा सितम्बर, 2016 में प्रदेश के 49 जनपदों में 12824054 बच्चें को कृमि मुक्त किया गया। प्रदेश के अन्य शेष जनपदों में फाईलेरिया नियत्रण कार्यक्रम के अन्तर्गत फाईलेरिया नियन्त्रण की दवा के साथ टेबलेट एल्बैण्डाजॉल खिलाई जाती है। आगामी 28 फरवरी एवं 18 मार्च का उत्तर प्रदेश के चिन्हित 57 जनपदों में राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस दो चरणों में मनाया जा रहा है। कृमि मुक्ति दिवस के उपरान्त क्रमश: 4 मार्च एवं 22 मार्च को मॉप-अप दिवस आयोजित किया जाना निर्धारित है, जिससे जो बच्चे दवा खाने से छूटे होंगे उन्हें दवा खिलायी जा सके।
राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस एक राष्ट्रव्यापी आगंनबाड़ी तथा स्कूल आधारित कृमि मुक्ति कार्यक्रम है जिसका राज्य स्तरीय क्रियान्वयन चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार, बेसिक एवं माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा समन्वित रूप से किया जा रहा है। यह कार्यक्रम स्कूलों एवं आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से संचालित किया जायेगा। 28 फरवरी एवं 18 मार्च राउण्ड में उत्तर प्रदेश में 57190022 बच्चों को कृमि मुक्त करने का लक्ष्य है।