-डॉ सौम्या सिंह के नेतृत्व में सुपीरियर मेसेंटरिक आर्टरी सिंड्रोम से ग्रस्त मरीज की सफल सर्जरी
-केजीएमयू के जनरल सर्जरी विभाग ने हासिल की दुर्लभ सर्जिकल उपलब्धि

सेहत टाइम्स
लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (KGMU), लखनऊ के सर्जरी विभाग ने एक दुर्लभ सर्जिकल उपलब्धि हासिल करते हुए सुपीरियर मेसेंटरिक आर्टरी (SMA) सिंड्रोम से पीड़ित एक 14 वर्षीय किशोर का सफल इलाज किया। इसे विल्की सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है, जो ऊपरी जठरांत्रीय अवरोध (Upper GI Obstruction) का एक दुर्लभ जन्मजात कारण है। यह ऑपरेशन जनरल सर्जरी विभाग की एडिशनल प्रोफेसर डॉ. सौम्या सिंह के नेतृत्व में किया गया।
मिली जानकारी के अनुसार यह किशोर पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक उपनगरीय क्षेत्र से रेफर किया गया था और पिछले छह महीने से खाने के बाद गंभीर पेट दर्द, वजन घटने और खाने से डर (Sitophobia) की समस्या से जूझ रहा था। अस्पताल में भर्ती के समय उसका बीएमआई (BMI) मात्र 12.5 किग्रा/मी² था, जो गंभीर पोषण संबंधी जोखिम को दर्शाता है।
रेडियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. अनित परिहार द्वारा किए गए कॉन्ट्रास्ट-एनहांस्ड सीटी स्कैन से इस दुर्लभ स्थिति की पुष्टि हुई। स्कैन में एऑर्टोमेसेंटरिक कोण मात्र 10.8° और दूरी 8.0 मिमी पाई गई, जिसके कारण डुओडेनम (छोटी आंत का तीसरा हिस्सा) पर संपीड़न हो रहा था। यह स्थिति अत्यंत दुर्लभ होती है, जिसकी सामान्य जनसंख्या में अनुमानित घटना दर 0.01–0.03% है। पहली बार इसे 19वीं शताब्दी में वॉन रोकिटांस्की द्वारा एनाटॉमिक रूप में वर्णित किया गया था, और 1927 में सर डेविड विल्की द्वारा इसे चिकित्सकीय रूप में परिभाषित किया गया।

इसके बाद बीती 10 जून को इस मरीज की सफलतापूर्वक स्ट्रॉन्ग्स प्रक्रिया (Strong’s Procedure) की गई, जिसमें डुओडेनम को सर्जिकल रूप से मुक्त करना और चिपकाव (adhesions) को हटाना शामिल था। ऑपरेशन करने वाली टीम में डॉ सौम्या सिंह के अलावा प्रो. जेडी रावत (Expert surgeon,एचओडी, पीडियाट्रिक सर्जरी), प्रो. जेके कुशवाहा, और जूनियर रेजिडेंट्स डॉ. स्वप्निल सिंह व डॉ. पंकज कुमार शामिल थे। प्रो. एमपी खान और डॉ. आयुषी (सहायक प्रोफेसर, एनेस्थीसिया विभाग) के नेतृत्व में एनेस्थीसिया विभाग ने भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया। मरीज की नाजुक स्थिति के बावजूद ऑपरेशन सफल रहा और कुछ ही दिनों में वह सामान्य भोजन लेने लगा और उसे पेट दर्द से पूरी राहत मिल गई।
डॉक्टरों का कहना है कि इस मामले में जल्दी पहचान और बहु-विषयी सहयोग की भूमिका को अत्यंत महत्त्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, “यह मामला हमें यह याद दिलाता है कि दुर्लभ से दुर्लभ और जटिल बीमारियों का भी सफल उपचार संभव है, यदि समय पर हस्तक्षेप और समर्पित टीम के साथ संस्थागत सहयोग मिले।”
डॉ सौम्या ने सर्जरी विभाग की ओर से कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद के प्रति आभार जताते हुए केजीएमयू प्रशासन को भी इस जटिल सर्जरी में अत्याधुनिक अधोसंरचना, समन्वय और विशेषज्ञ सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि एक बार फिर सिद्ध करती है कि केजीएमयू एक क्षेत्रीय उत्कृष्टता केंद्र के रूप में जटिल सर्जिकल रोगों के लिए विश्वस्तरीय, रोगी-केंद्रित इलाज प्रदान करने के लिए समर्पित है।

