-डॉ नीतू निगम के नेतृत्व में सम्पन्न हुई स्टडी से थैलेसीमिया के प्रसार पर अंकुश लगाने में मिल सकती है मदद

सेहत टाइम्स
लखनऊ। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ को एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल हुई है। यहां हुए एक अध्ययन में थारू बच्चों में दुर्लभ हीमोग्लोबिन वैरिएंट का पता चला है। इसके बाद अब इसकी जेनेटिक स्क्रीनिंग का आग्रह किया गया है, जिससे थैलेसीमिया के प्रसार को कम करने में मदद मिल सकती है। यह अध्ययन केजीएमयू की साइटोजेनेटिक्स लैब की एडिशनल प्रोफेसर डॉ नीतू निगम के नेतृत्व में किया गया। इस अध्ययन का उद्देश्य उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में थारू स्कूली बच्चों में हीमोग्लोबिनोपैथी की व्यापकता के साथ-साथ संबंधित हेमटोलॉजिकल और जनसांख्यिकीय लक्षणों का पता लगाना था। इस स्टडी का प्रकाशन अंतर्राष्ट्रीय जर्नल Annals of African Medicine में 24 मार्च, 2025 को किया गया गया है।
ज्ञात हो थैलेसीमिया एक ऑटोसोमल रिसेसिव आनुवंशिक विकार है जो हीमोग्लोबिन उत्पादन को बाधित करता है, जिसके परिणामस्वरूप एनीमिया और इससे संबंधित अनेक स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। विश्व थैलेसीमिया दिवस (8 मई) के अवसर पर एक विशेष वार्ता में डॉ नीतू निगम ने इस अध्ययन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह अध्ययन नेशनल मेडिको ऑर्गेनाइजेशन (NMO) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सहयोग से 22-26 फरवरी, 2023 के बीच किया गया था। इसके तहत स्कूल में नामांकित युवाओं से 369 रक्त के नमूने लिए गए थे। हाई परफॉरमेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी (HPLC) का उपयोग करके थैलेसीमिया विशेषताओं और हीमोग्लोबिनोपैथी का निदान करने के लिए BIORAD VARIANT एल्गोरिदम का उपयोग किया गया था। हेमटोलॉजिकल मार्करों, नैदानिक परिणामों और जनसांख्यिकीय कारकों के बीच संबंधों का मूल्यांकन किया गया।


इसमें लखीमपुर खीरी में थारू स्कूली बच्चों में हीमोग्लोबिनोपैथी के उच्च प्रसार का पता चला, एक दुर्लभ हीमोग्लोबिन वैरिएंट, HbJ मेरठ (4.0%), बीटा-थैलेसीमिया लक्षण (6.2%), और सिकल सेल लक्षण (9.8%) शामिल हैं। 22-26 फरवरी, 2023 तक आयोजित इस अध्ययन में हाई परफॉरमेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी (HPLC) और BIORAD वैरिएंट एल्गोरिदम का उपयोग करके 369 रक्त नमूनों का विश्लेषण किया गया। इसमें लिंग और निदान (p = 0.001) के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध पाया गया, जबकि MCV, MCH, HbA, HbF और HbA2 जैसे हेमटोलॉजिकल मार्कर प्रभावित समूहों में काफी भिन्न थे।
उन्होंने बताया कि इस अध्ययन का निष्कर्ष यह निकला कि इन वंशानुगत विकारों को प्रबंधित करने, कलंक को कम करने और इस कमज़ोर आबादी में परिणामों को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए समुदाय-स्तरीय जांच, आनुवंशिक परामर्श और शिक्षा अभियानों की तत्काल आवश्यकता है। जिससे कि समुदाय को ज्ञान के साथ सशक्त बनाकर थैलेसीमिया और संबंधित विकारों वाले व्यक्तियों के लिए परिणामों में सुधार कर सकते हैं।
