-होम्योपैथिक दवाओं से नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज का इलाज सम्भव
-विश्व लिवर दिवस पर डॉ गिरीश गुप्ता ने कहा, जीसीसीएचआर में हो चुका है शोध

सेहत टाइम्स
लखनऊ। आजकल बच्चों एवं युवाओं में सबसे ज्यादा नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज हो रही है। फैटी इनफिल्टरेशन ऑफ लिवर नाम से जानी जाने वाली इस बीमारी का मुख्य कारण फास्ट फूड, बटर, चीज, बाहरी खानपान का ज्यादा सेवन है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि होम्योपैथी में लिवर की बीमारियों का बहुत अच्छा इलाज है।
यह कहना है गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के संस्थापक व मुख्य परामर्शदाता डॉ गिरीश गुप्ता का। ‘विश्व लिवर दिवस 19 अप्रैल’ के मौके पर लिवर की बीमारियों के उपचार में होम्योपैथिक दवाओं की भूमिका को जानने के लिए ‘सेहत टाइम्स’ ने डॉ गिरीश गुप्ता से वार्ता की।
डॉ गुप्ता ने बताया कि दिन पर दिन बदल रही हमारी जीवन शैली हमें कई प्रकार की बीमारियों का शिकार बना रही है, इन्हीं बीमारियों में एक है नॉन अल्कोहलिक फैटी इनफिल्टरेशन ऑफ लिवर जिसे आम तौर पर फैटी लिवर के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कहा कि जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि नॉन अल्कोहलिक यानी जो अल्कोहल का सेवन का नहीं करता है उसके लिवर पर भी फैट जमना। क्योंकि पहले यही कहा जाता था शराब का सेवन करने से फैटी लिवर होता है। लेकिन जब देखा गया कि जो लोग शराब नहीं पीते हैं उन्हें भी फैटी लिवर की शिकायत हो रही है तो जब स्टडी की गयी तो पता चला कि इसके लिए ज्यादा चिकनाई, कार्बोहाइड्रेड भी जिम्मेदार हैं। फास्ट फूड जैसे चाउमिन, पिज्जा, बर्गर, मोमोज, बटर जैसे खाद्य पदार्थ के साथ ही बाहर की बनी चीजें विशेषकर तली हुई चीजों में इस्तेमाल किया जाने वाला तेल बहुत ही नुकसानदायक है।
उन्होंने कहा कि दरअसल तलने वाली चीजों में इस्तेमाल होने वाले तेल को बार-बार गर्म किये जाने से उसकी क्वालिटी खराब हो जाती है उसमें लॉन्ग फैटी एसिड चेन बनने लगती है, जितनी बार गर्म किया जाता है उतना ही कॉम्प्लीकेटेड होता चला जाता है, जिससे पचने में दिक्कत होती है क्योंकि लॉन्ग फैटी एसिड चेन ब्रेक नहीं होती है और चिकनाई लिवर पर जमा हो जाती है। अल्कोहल फैटी लिवर की बात करें तो अल्कोहल फैटी लिवर डिजीज का बढ़ने की मुख्य वजह यह है कि पहले लोग छिपकर शराब का सेवन करते थे, अब अल्कोहल को सोशल स्टेटस मिल गया है, कोई भी छोटी-बड़ी पार्टी में शराब परोसा जाना आम बात होती जा रही है।


डॉ गुप्ता ने कहा कि शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि होम्योपैथी में लिवर की बीमारियों का बहुत अच्छा इलाज है और उनके सेंटर जीसीसीएचआर पर इस सम्बन्ध में की गयी स्टडी का प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशन भी हो चुका है। फैटी लिवर डिजीज के तीन ग्रेड पहला, दूसरा और तीसरा होता है, होम्योपैथिक दवाओं के दो-तीन माह तक सेवन के बाद यह पाया है कि बीमारी के ग्रेड में कमी आयी और कुछ केसेज में यह यह ग्रेड जीरो भी हो गया यानी बीमारी पूरी तरह से ठीक हो गयी। इन सभी केसेज का रिकॉर्ड केंद्र पर उपलब्ध हैं।
होम्योपैथिक दवाओं से मरीजों के उपचार पर हुई रिसर्च के परिणाम की बात करें तो फैटी लिवर के उपचार पर उनका शोध एशियन जर्नल ऑफ होम्योपैथी के नवम्बर 2010 से जनवरी 2011 के अंक वॉल्यूम 4 नम्बर 4(13) में प्रकाशित हो चुकी है। उन्होंने बताया कि सफल उपचार की वैज्ञानिक प्रमाणिकता के लिए उपचार के पूर्व और उपचार के दौरान व उपचार के बाद की स्थिति की जांचें मरीजों द्वारा चुने गये डायग्नोस्टिक सेंटर्स पर करायी गयीं, इन जांचों में अल्ट्रासाउन्ड, लिवर फंक्शन टेस्ट, लिपिड प्रोफाइल और यूरिन टेस्ट शामिल हैं।
डॉ गिरीश ने फैटी लिवर के तीन ग्रेड ग्रेड 1, ग्रेड 2 तथा ग्रेड 3 के कुल मरीजों को दिये गये उपचार के परिणाम की जानकारी देते हुए बताया कि 39.42 फीसदी मरीज पूरी तरह ठीक हो गये जबकि 20.19 प्रतिशत रोगियों को आंशिक लाभ हुआ, 36.89 प्रतिशत मरीजों की स्थिति जैसी की तैसी रही यानी दवा से न तो रोग बढ़ा और न ही रोग घटा, जबकि 3.50 प्रतिशत रोगियों को दवा से कोई लाभ नहीं हुआ।
