-राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस (16 मार्च) पर वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ आरके गर्ग ने दी महत्वपूर्ण जानकारी

सेहत टाइम्स
लखनऊ। सब-एक्यूट स्क्लेरोसिंग पैनएनसेफेलाइटिस (SSPE) एक गंभीर और दुर्लभ दिमागी बीमारी है, जो आमतौर पर बचपन में खसरा (Measles) होने के कई साल बाद विकसित होती है। यह धीरे-धीरे दिमाग को नुकसान पहुंचाती है और मरीज़ की याददाश्त, सोचने-समझने की क्षमता और शरीर के मूवमेंट को प्रभावित करती है। इस बीमारी का अब तक कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन कुछ दवाओं से रोग की गति को धीमा किया जा सकता है। इसीलिए सर्वाधिक अच्छी स्थिति यही है कि इससे बचा जाये, इसलिए खसरे का टीका (Measles Vaccine) लगवाना इस बीमारी से बचने का सबसे अच्छा उपाय है।
यह जानकारी केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग के रिटायर्ड प्रोफेसर एवं एचओडी डॉ आरके गर्ग ने राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस (16 मार्च) के मौके पर एक विशेष वार्ता में दी। ज्ञात हो भारत में पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम की सफल शुरुआत की याद में हर साल 16 मार्च को राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस मनाया जाता है। यह महत्वपूर्ण घटना 1995 में हुई थी, जब भारत ने पोलियो उन्मूलन की दिशा में पहला कदम उठाया था, जो व्यक्ति को दिव्यांग करने वाली और कभी-कभी जानलेवा बीमारी है जो मुख्य रूप से छोटे बच्चों को प्रभावित करती है। 16 मार्च के दिन पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम के तहत मौखिक पोलियो वैक्सीन की पहली खुराक दी गई थी।
डॉ गर्ग ने बताया कि SSPE खसरा वायरस के लंबे समय तक दिमाग में रहने के कारण होता है। जब शरीर इस वायरस को पूरी तरह खत्म नहीं कर पाता, तो यह धीरे-धीरे दिमाग की कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है। इस बीमारी के लक्षणों के बारे में डॉ गर्ग ने बताया कि


– पढ़ने-लिखने और समझने में कठिनाई
– स्वभाव में बदलाव और चिड़चिड़ापन
– झटके आना (मिर्गी जैसे दौरे)
– शरीर के मूवमेंट में गड़बड़ी
– धीरे-धीरे बेहोशी और कोमा की स्थिति इस बीमारी के लक्षणों में शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि SSPE एक गंभीर और जानलेवा बीमारी है, लेकिन इसे खसरा टीकाकरण से रोका जा सकता है। बच्चों को समय पर वैक्सीन दिलाना बहुत ज़रूरी है ताकि यह बीमारी न हो। 9 महीने और 15 महीने में नियमित टीकाकरण करवाना अनिवार्य है।
