-सभी जिलाधिकारियों, पुलिस कप्तानों व मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को 20 फरवरी तक सूचना देने के निर्देश

सेहत टाइम्स
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के राजकीय मेडिकल कॉलेजों और सरकारी चिकित्सालयों में कार्यरत चिकित्सा शिक्षक एवं चिकित्सा अधिकारियों द्वारा की जाने वाली निजी प्रैक्टिस पर प्रतिबंध को लेकर शासन ने सभी जिलाधिकारियों, पुलिस कप्तानों और मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को पत्र भेज कर निर्देश दिए हैं की यदि उनके जनपदों में मेडिकल कॉलेज के शिक्षकों, सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों के खिलाफ प्राइवेट प्रैक्टिस की पुष्टि हुई हो तो इस बारे में उनके खिलाफ कार्यवाही के लिए शासन को अपनी संस्तुति आगामी 20 फरवरी तक भेजना सुनिश्चित करें। शासन द्वारा यह निर्देश उच्च न्यायालय के 10 फरवरी को दिये गये आदेश के अनुपालन में जारी किये गये हैं।
चिकित्सा स्वास्थ्य परिवार कल्याण एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने भेजे अपने पत्र में कहा है कि डॉ अरविंद गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य के केस में उच्च न्यायालय में आगामी 27 फरवरी को पुनः सुनवाई होनी है, चूंकि इस केस की याचिका को हाईकोर्ट द्वारा पीआईएल की तरह मान लिया गया है, ऐसे में सभी जनपदों के लिए इससे सम्बन्धी आदेश मान्य है इसलिए सभी सभी जिलाधिकारी से अपेक्षा है कि पूर्व शासनादेश में अंकित समिति की तत्काल बैठक कर यदि कोई भी राजकीय चिकित्सा शिक्षक अथवा राजकीय चिकित्सक निजी प्रैक्टिस में लिप्त पाया जाता है तो उसके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही के लिए अपनी संस्तुति चिकित्सा शिक्षा विभाग एवं चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग के ईमेल पर 20 फरवरी 25 तक उपलब्ध करना सुनिश्चित करें जिससे न केवल निजी प्रैक्टिस पर लगाम लगे बल्कि उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान कोई भी अप्रिय स्थिति उत्पन्न न होने पाए।


न्यायालय ने की है यह टिप्पणी
न्यायालय द्वारा बीती 10 फरवरी को इस केस में पारित आदेश में कहा गया है कि प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दाखिल व्यक्तिगत हलफनामे के पैरा 10 के अवलोकन से पता चलता है कि मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में नियुक्त केवल 9 डॉक्टरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई है क्योंकि उन्होंने 1983 के नियमों का उल्लंघन किया है और निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं। प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दाखिल व्यक्तिगत हलफनामे में 48 राजकीय मेडिकल कॉलेजों में नर्सिंग होम में निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों और राज्य के 75 जिलों के जिला अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टरों के खिलाफ उनके द्वारा की गई कार्रवाई का खुलासा नहीं किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस तरह के गंभीर मुद्दे को राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा बहुत हल्के में लिया गया है, जो सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों की चिकित्सा स्थिति को सुधारने में रुचि नहीं रखते हैं, जहां राज्य के लोग चिकित्सा उपचार प्राप्त कर रहे हैं।
न्यायालय ने कहा है कि हलफनामे में केवल राज्य के अधिकारियों द्वारा किए गए कागजी काम को दर्शाया गया है, लेकिन जमीन पर उनके द्वारा कोई वास्तविक कार्रवाई नहीं की गई है। प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा, उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देशित किया जाता है कि वे बेहतर हलफनामा दाखिल करें, जिसमें राज्य सरकार द्वारा पूरे प्रदेश में राज्य सेवा में निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों के विरुद्ध की गई जांच का पूरा ब्यौरा दिया जाए।
