-विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (10 सितम्बर) पर सुनील यादव का लेख
‘आत्महत्या’ – स्वयं से खुद की जीवन लीला समाप्त करना, सुनने में ही अत्यंत भयावह, कारुणिक और मार्मिक लगता है, क्योंकि जीव को सबसे प्यारा अपना जीवन ही लगता है और सबसे डरावनी लगती है मौत की आहट। फिर भी कभी कभी मानव इस मानसिक स्थिति में आ जाता है, जब वह इस भयावहता को दरकिनार कर देता है और स्वयं का जीवन समाप्त कर लेता है, आइए इस मानसिक स्थिति को समझने का एक प्रयास करते हैं ।
वैश्विक स्वास्थ्य समस्या
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आत्महत्या एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है, आंकड़ों के अनुसार आत्महत्या के कारण हर साल दुनिया भर में 700000 से ज़्यादा मौतें होती हैं।
साल 2021 में भारत में जिन 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की उसमें से 25.6 प्रतिशत दिहाड़ी मज़दूर थे। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में कुल 42,004 दिहाड़ी मज़दूरों ने आत्महत्या कीं, इनमें 4,246 महिलाएं भी शामिल थीं।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021 में प्रोफ़ेशनल या वेतनभोगी श्रेणी में आत्महत्या करने वालों की संख्या 15,870 थी , साथ ही इसी साल आत्महत्या करने वालों में 13,714 बेरोज़गार और 13,089 छात्र, 23,179 गृहणियां भी शामिल हैं।
परिणाम
आत्महत्या के अत्यंत दूरगामी सामाजिक, भावनात्मक और आर्थिक परिणाम होते हैं और यह विश्व भर के व्यक्तियों और समुदायों को गहराई से प्रभावित करती है अर्थात आत्महत्या से केवल उस व्यक्ति की ही जान नहीं जाती, बल्कि उसका पूरा परिवार और समाज भी प्रभावित हो जाता है।
कारक
आत्महत्या के अनेक कारक हो सकते हैं लेकिन एक वाक्य में कहा जाए तो आत्महत्या करने वाला व्यक्ति असामान्य मानसिक स्थिति से गुजर रहा होता है।
सामाजिक कारक
सामाजिक परिवर्तन, भागती जिंदगी, रोजगार की कमी, संयुक्त परिवारों का समाप्त हो जाना और एकाकी परिवार को बढ़ावा मिलना, साहित्य, चलचित्र आदि में तेजी से आ रहा परिवर्तन, पारिवारिक और सामाजिक अनुशासन की कमी आदि इसके बड़े कारक हो सकते हैं ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल
आत्महत्या बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इसको रोकने के लिए हस्तक्षेप किया जा रहा है । वर्ष 2003 में अंतर्राष्ट्रीय संघ International Association for Suicide Prevention ( IASP) द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ मिलकर आत्महत्या की रोकथाम के लिए “विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस” (WSPD) की स्थापना की गई । प्रत्येक वर्ष 10 सितंबर को इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने, कलंक को कम करने तथा संगठनों, सरकारों और जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने का लक्ष्य रखते हुए एक विषय निर्धारित किया जाता है, जिससे यह संदेश दिया जाता है कि आत्महत्याएँ रोकी जा सकती हैं।
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस 2024-2026 के लिए त्रैवार्षिक थीम “आत्महत्या का आख्यान (नैरेटिव) बदलना” निर्धारित किया जा चुका है, जिसमें “बातचीत शुरू करें” का आह्वान किया गया है। आत्महत्या को रोकने के लिए कलंक (स्टिगमा) को कम करने और खुली बातचीत को प्रोत्साहित करने के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना इस विषय का उद्देश्य है। आत्महत्या पर नेरेटिव बदलने का मतलब यह है कि हम सभी इस जटिल मुद्दे को देखने के अपने नजरिए को बदलें। चुप्पी और कलंक की संस्कृति को खुलेपन, समझ और समर्थन की संस्कृति में बदल दें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस कार्रवाई का आह्वान सभी को आत्महत्या और आत्महत्या की रोकथाम पर बातचीत शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करता है। समझदार समाज में हर एक बातचीत, चाहे कितनी भी छोटी क्यों न हो, अपना स्थान रखती है और अपना योगदान देती है। बातचीत को शुरू करके, हम बाधाओं को तोड़ सकते हैं, जागरूकता बढ़ा सकते हैं और समर्थन की बेहतर संस्कृतियाँ बना सकते हैं।
यह थीम नीति निर्माण में आत्महत्या की रोकथाम और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर भी जोर देती है, तथा सरकार से कार्रवाई करने का आह्वान करती है। नैरेटिव को बदलने के लिए ऐसी नीतियों की वकालत करने की आवश्यकता है जो मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें, देखभाल तक अपनी पहुँच बढ़ाएँ, तथा ज़रूरतमंदों को सहायता प्रदान करें।
फार्मेसिस्ट कर सकते हैं महत्वपूर्ण योगदान
आत्महत्या को रोकने में फार्मासिस्ट का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। कम्युनिटी, हॉस्पिटल और क्लिनिकल फार्मासिस्ट सीधे जनता से जुड़े होते हैं, फार्मासिस्ट द्वारा मरीजों की मानसिक स्थिति का आकलन किया जाना आसान प्रतीत होता है। मरीज की काउंसलिंग में भी फार्मासिस्ट अपना महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, ड्रग काउंसलिंग करते समय मरीज अथवा उसके पारिवारिक जनों के मानसिक परिस्थितियों एवं मानसिक स्थितियों का आकलन फार्मासिस्ट द्वारा किया जा सकता है और यह आत्महत्या जैसी दुस्साहसिक प्रवृत्ति का प्रारंभिक अवलोकन भी हो सकता है। यदि समय से ऐसी मानसिक स्थितियों की पहचान और उपचार प्रारंभ कर दिया जाए और उनसे बातचीत कर मानसिक स्वच्छता और स्वस्थता प्रदान की जाए तो निश्चित रूप से आत्महत्या के आंकड़ों में कमी आने की पूरी संभावना होगी। वहीं आध्यात्मिक रास्ते आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। व्यक्ति के सामाजिक और आर्थिक स्तर में सुधार कर सरकार द्वारा आत्महत्या रोकने के प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्माण किया जा सकेगा।
आइए एक बेहतर नागरिक और एक बेहतर मनुष्य या एक बेहतर स्वास्थ्य प्रदाता होने का धर्म निभाते हुए हम व्यक्तियों के मानसिक स्थितियों का आकलन करें उनसे बातचीत करें और यथासंभव काउंसलिंग करते हुए मानसिक रोगियों का उपचार विशेषज्ञों द्वारा कराए जाने में मदद करें, अपनी भूमिका का निर्वाह करें। सभी फार्मेसिस्ट साथियों से अनुरोध है कि वह मानसिक रोगों की फार्माकोथेरेपी का विस्तृत अध्ययन करते रहें जिससे इस प्रवृत्ति को रोकने में आपकी भूमिका बलवती होगी और इस वैश्विक स्वास्थ्य समस्या का निपटारा करने में फार्मासिस्ट अग्रणी भूमिका निभा सकेंगे।
(लेखक स्टेट फार्मेसी काउंसिल उत्तर प्रदेश के पूर्व चेयरमैन और फार्मेसिस्ट फेडरेशन के अध्यक्ष हैं)