लखनऊ। इसोफेगस यानी आहार नली का कैंसर से ग्रस्त मरीजों के ठीक होने में सबसे बड़ी बाधा उनका बीमारी की एडवांस स्टेज में पहुंचने पर पता चलना है। साधारणतय: 50-55 वर्ष से ज्यादा की आयु वाले व्यक्तियों में पायी जाने वाली इस बीमारी में जब तक मरीज को खाने-पीने में तकलीफ नहीं होती है उसे बीमारी का पता ही नहीं चलता है। वैसे इस बीमारी के लिए जिन चीजों को जिम्मेदार देखा गया है उनमें धूम्रपान, शराब पीना, अत्यधिक मोटापा, मांस का सेवन शामिल है। इस आशय की जानकारी आज यहां किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में टाटा मेमोरियल कैंसर इंस्टीट्यूट, मुम्बई के प्रो सीएस प्रमेश ने दी।
अगर बार-बार ऐसा हो तो हो जायें सावधान
इसोफेगस कैंसर के मरीजों में देखा गया है कि इनमें होने वाले शुरुआती लक्षणों में लम्बे समय तक खांसी और आवाज का फटना, बार-बार सीने में जलन होना, खट्टी डकारें आना, बेवजह वजन कम होना, सीने और पसलियों के बीच में दर्द होना, खाद्य पदार्थ निगलने में परेशानी होना शामिल हैं, ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि ये लक्षण अगर लम्बे समय तक हो रहे हैं तो किसी विशेषज्ञ चिकित्सक को दिखाना चाहिये।
शाकाहारी रहना सबसे ज्यादा फायदेमंद
सतत चिकित्सा शिक्षा में इसोफेगस के कैंसर के बारे दी गयी जानकारी के बारे में केजीएमयू की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सौम्या ने बताया कि धूम्रपान, शराब, मांस का सेवन जैसे कारणों के अलावा वंशानुगत या परिवार के किसी सदस्य को होने की स्थिति में भी इस बीमारी की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि ताजे फल, शाकाहारी भोजन करने से लाभ मिलता है। उन्होंने बताया कि इस कैंसर से बचने के लिए विटामिन ए, सी व ई का सेवन अच्छा होता है इसके लिए हरे साग-सब्जियां खानी चाहिये।
छोडऩे के बाद दस वर्षों तक रहेगा धूम्रपान-शराब का असर
डॉ सौम्या ने बताया कि शराब और धूम्रपान का सेवन करने से इस कैंसर को खतरे की संभावना का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर व्यक्ति धूम्रपान और शराब का सेवन बंद कर देता है तो भी अगले दस साल तक वह इस कैंसर के खतरे की जद में रहेगा। इसलिए अच्छा है कि इसका सेवन न ही किया जाये या फिर तुरंत बंद कर दिया जाये।
इस बीमारी में कठिन है प्रबंधन
उन्होंने बताया कि इस कैंसर की सर्जरी में तीन अंग सीना, फेफड़े और आहार नली प्रभावित होते हैं इसलिए इसका प्रबंधन बहुत कठिन है इसमें कीमोथैरेपी, सिकाई तथा सर्जरी तीनों का रोल है। इसकी सर्जरी बहुत जटिल है। इसके लिए मुख्यत: थोरेसिक सर्जन, ऑन्को सर्जन, गैस्ट्रो सर्जन, रेडियेशन स्पेशियलिस्ट आदि की पूरी टीम की आवश्यकता होती है। इसीलिए इसे मल्टी मॉरटेलिटी ट्रीटमेंट कहते हैं। उन्होंने बताया कि इस बीमारी का ट्रीटमेंट कुशल सर्जन के द्वारा ही कराया जाना चाहिये।