-शोध के प्रति जूनून की हद तक जाने वाले डॉ गिरीश गुप्ता से विशेष वार्ता
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। होम्योपैथी को प्लेसिबो थेरेपी, एक्वा थेरेपी और साइको थेरेपी बताकर सार्वजनिक रूप से उपहास उड़ाने वालों, विशेषकर केजीएमसी के नामचीन प्रोफेसर को अपनी रिसर्च से होम्योपैथी की वैज्ञानिकता साबित करके जवाब देने वाले ख्यातिलब्ध चिकित्सक गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के संस्थापक व चीफ कंसल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता का सपना होम्योपैथी उपचार पर अधिक से अधिक साक्ष्य आधारित पुस्तकें प्रकाशित करना है, जो वर्तमान में बहुत दुर्लभ हैं। उम्र के सातवें दशक में चल रहे डॉ गिरीश कहते हैं कि मैं चाहता हूँ कि मेरा बेटा डॉ. गौरांग होम्योपैथी को विज्ञान की मुख्यधारा में लाने के लिए मेरे द्वारा किए गए साक्ष्य आधारित कार्य को आगे बढ़ाए।
डॉ गिरीश के समाज को दिए योगदान के बारे में उनसे बात करने के लिए ‘सेहत टाइम्स’ ने राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस (1 जुलाई) के मौके को चुना। शुरू से डॉक्टर बनने का सपना संजोये डॉ गिरीश को मेडिकल की पढ़ाई करना बहुत भाया। यही वजह रही कि उन्होंने चारों प्रोफेशनल परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
बर्दाश्त नहीं हुआ होम्योपैथी का उपहास
दस्तावेजों में दर्ज 45 साल पूर्व 1979 में मेडिकल शिक्षा के दौरान चौथे वर्ष में ही शोध के लिए उठे पहले कदम से शुरू हुई उनके शोध कार्य की यात्रा निरंतर जारी है। मेडिकल शिक्षा के दौरान शोध की ओर रुख करने की वजह होम्योपैथी के उपहास को बर्दाश्त न कर पाना रही, हालांकि मेडिकल की पढ़ाई के दौरान रिसर्च कार्य करने की औपचारिकताएं पूरी कर इसकी अनुमति मिलना आसान नहीं था। लेकिन कहते हैं न कि अगर सच्चे मन से सभी त्याग करते हुए किसी काम को पूरा करने की कोशिश की जाये तो ऐसी कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है। ऐसा ही हुआ डॉ गिरीश के साथ, बार-बार की कोशिश रंग लायी और भारत सरकार के संस्थान राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) में रिसर्च वर्क के लिए अनुमति मिल गयी यहां निकोटियाना ग्लूटिनोसा Nicotiana glutinosa पौधे पर लगने वाले टोबेको मोसाइक वायरस tobacco mosaic virus पर होम्योपैथिक दवाओं का असर देखने के लिए मॉडल फाइनल किया गया। रिसर्च के आश्चर्यजनक रूप से सकारात्मक परिणाम सामने आये।
लेकिन इस उपलब्धि के बाद भी होम्योपैथी रिसर्च के लिए भारत सरकार की सीसीआरएच के तहत कार्य करने वाली ड्रग प्रूविंग रिसर्च यूनिट के रिसर्च ऑफीसर द्वारा रिसर्च कार्य के लिए डॉ गिरीश को प्रोत्साहित करने के बजाय हतोत्साहित किया गया, लेकिन चूंकि डॉ गिरीश के तो सिर पर रिसर्च का जूनून सवार था, इसलिए उन्होंने अब सीएसआईआर की इकाई केंद्रीय औषधि अनुसन्धान संस्थान (सीडीआरआई) का रुख किया जहां लम्बी जद्दोजहद के बाद संस्थान डॉ गुप्ता के रिसर्च प्रोजेक्ट ‘एंटीवायरल स्क्रीनिंग ऑफ होम्योपैथिक ड्रग्स अगेन्स्ट ह्यूमैन एंड एनिमल वायरेसेस’ को सीसीआरएच को भेजने को तैयार हुआ। काफी मशक्कत के बाद अंतत: प्रोजेक्ट भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा मंजूर कर लिया गया। इसी के साथ नियमित रूप से शुरू हुआ डॉ गुप्ता के शोध कार्य का सफर, जो अनवरत जारी है।
आयु के वर्षों की संख्या को सिर्फ एक संख्या मानने वाले डॉ गिरीश आज भी देश भर में होने वाले नेशनल-इंटरनेशनल सेमिनार में बिना रुके-बिना थके हिस्सा लेते रहते हैं। इस बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि होम्योपैथी को मुख्य धारा में लाने के लिए, लोगों के बीच इसकी स्वीकार्यता के लिए, साक्ष्य आधारित शोध के प्रति लोगों को जागरूक करने का जूनून ही मुझसे यह सब करवाता है। आपको बता दें कि शोध कार्य के इसी जूनून के चलते डॉ गिरीश ने पहली बार 1983 में उत्तर प्रदेश सरकार के और दूसरी बार भारत सरकार के होम्योपैथिक रिसर्च इंस्टीट्यूट में सरकारी सेवा के ऑफर को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया था।
शोध कार्यों के चलते देश-विदेश में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले डॉ गिरीश गुप्ता के होम्योपैथी चिकित्सा के विभिन्न विषयों पर अब तक 100 से अधिक शोध पत्र/ केस रिपोर्ट राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने अब तक तीन किताबें भी लिखी हैं, जिनमें उनके द्वारा किये गये शोधों का जिक्र किया गया है। इनमें पहली किताब ‘एवीडेंस बेस्ड रिसर्च ऑफ होम्योपैथी इन गाइनोकोलॉजी’, जिसमें स्त्रियों को होने वाले रोगों पर किये शोध का वर्णन किया गया है, दूसरी किताब ‘एवीडेंस बेस्ड रिसर्च ऑफ होम्योपैथी इन डर्माटोलॉजी’, त्वचा के रोगों पर किये गये शोध पर आधारित हैं, तथा तीसरी किताब ‘एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी’ है जिसमें होम्योपैथिक दवाओं के लैब में किये गये शोध और उनके परिणाम के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है।