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क्‍या आप जानते हैं किसने की थी ब्‍लड ग्रुप ‘ABO’ और ‘Rh factor’ की खोज ?

-विश्व रक्तदाता दिवस (14 जून) पर विशेष लेख माइक्रोबायोलॉजिस्‍ट लक्ष्‍मी सैनी की कलम से

कार्ल लैंडस्टीनर

रक्त मानव जीवन का एक ऐसा तत्व है, जिसके अभाव में मनुष्य जीवन की कल्पना भी असंभव है। जब से मानव जीवन का अस्तित्व है तब से ही मनुष्य किसी न किसी दुर्घटना का शिकार होता रहा है, जिससे उसे रक्त की हानि होती है और व्यक्ति को पुनः स्वस्थ होने के लिए रक्त की आवश्यकता होती ही है। प्राचीन काल में ज्ञान तथा विज्ञान के अभाव से रक्त में हुई कमी से  मृत्यु हुईं लेकिन इस अभाव को दूर करने का श्रेय अपने समय की एक विख्यात ऑस्ट्रियाई बायोलॉजिस्ट तथा फिजीशियन कार्ल लैंडस्टीनर को जाता है। लैंडस्टीनर  के जन्म- दिवस को ‘विश्व रक्तदाता दिवस’ के रूप में प्रत्येक वर्ष 14 जून को मनाया जाता है। शुरुआत में रक्त का आदान-प्रदान बिना ग्रुप के पहचान के होता था। जिसे कुत्तों के ऊपर सबसे पहले इंग्लैंड के फिजीशियन रिचर्ड लोडर ने कर एक कुत्ते की जान बचाई थी। लेकिन लैंडस्टीनर ने बताया कि, एक व्यक्ति का खून दूसरे व्यक्ति को बिना जांच के नहीं दिया जा सकता क्योंकि सभी व्यक्तियों का ब्लड ग्रुप अलग – अलग होता है। उन्होंने ‘Blood group ABO’ की खोज की। इसके साथ ही ब्लड के अहम तत्व ‘Rh factor’ की भी खोज की, जो ब्लड ग्रुप के पॉजिटिव तथा नेगेटिव होने को बताता है।

इस अहम और महान कार्य के लिए कार्ल लैंडस्टीनर को 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया तथा उन्हें ‘फादर ऑफ ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन’ कहा गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस संघ तथा रेड क्रीसेंट सोसायटी द्वारा 14 जून को वार्षिक तौर पर पहली बार विश्व रक्तदाता दिवस के रूप में मनाया गया तभी से यह प्रथा प्रतिवर्ष चली आ रही है।

‘रक्त’ एक जीवनदायी तरल होता है, इसका दान महादान माना गया है। वैसे भी अगर किसी के जीवन को बचाया जा सके तो उससे बड़ा कर्म और पुण्य कोई भी नहीं हो सकता लेकिन लोगों में 21वीं सदी के दौरान भी इतना शिक्षित और बुद्धिजीवी होने के बाद भी कई प्रकार की भ्रांतियां फैली है जैसे-  दर्द होना, एचआईवी संक्रमण का खतरा, शरीर में कमजोरी आना, बार बार रक्तदान से शरीर कमजोर होना, आगे चलकर शरीर में रक्त की कमी का होना, रक्तदान के लिए उम्र का सीमित होना, रक्तदान के बाद शारीरिक गतिविधियों और खेलकूद में भाग नहीं ले सकता तथा धर्म – जाति को आधार बनाकर आदि कई प्रकार की भ्रांतियां हैं। किंतु सत्य यह है कि, यह सब केवल भ्रांतियां हैं जिन्हें सबको समझ कर जागरूक होना होगा। हां यह सही है कि जिन व्यक्तियों के शरीर में किसी प्रकार की अस्वस्थता अथवा रोग हो वह रक्तदान नहीं कर सकता। इसके अलावा गर्भवती महिला भी रक्तदान नहीं कर सकती। एक औसत व्यक्ति के शरीर में 10 यूनिट अर्थात 5 से 6 लीटर रक्त होता है और दान केवल एक यूनिट का ही किया जाता है। दुर्घटना की स्थिति में कई बार 100 यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है। एक बार के रक्तदान से 3 लोगों का जीवन बचाया जा सकता है।

भारत में केवल 7% लोगों का ब्लड ग्रुप ‘O’ नेगेटिव होता है ‘O’ नेगेटिव ब्लड ग्रुप ‘यूनिवर्सल डोनर’ होता है। इसे किसी को भी दिया जा सकता है। किसी नवजात बालक अथवा अन्य को खून की कमी होने पर तथा उसके ब्लड ग्रुप का पता न होने की स्थिति में ‘O’  नेगेटिव ही दिया जाता है। रक्तदान 18 से 60 वर्ष की आयु तक सभी स्वस्थ व्यक्ति अथवा महिला कर सकती हैं। महिलाएं 3 महीनों में तथा पुरुष 4 महीनों के अंतराल से रक्तदान कर सकता है। रक्तदान के बाद लंबे समय तक यदि कोई समस्या जैसे चक्कर आना, पसीना आना, वजन कम होना आदि हो तो रक्तदान नहीं करना चाहिए।

डब्ल्यूएचओ संगठन द्वारा यह लक्ष्य रखा गया था कि, विश्व के प्रमुख 124  देश अपने यहां स्वैच्छिक रक्तदान को ही बढ़ावा दें। उद्देश्य यह था कि, विश्व के किसी भी हिस्से में रक्त की जरूरत होने पर उसके लिए पैसे देने की जरूरत न पड़े तथा किसी का जीवन ना जाए। अब तक इस बात पर 49 देशों ने ही अमल किया है। तंजानिया जैसे देश में 80% रक्तदान बिना किसी स्वार्थ के होता है।

भारत में प्रतिवर्ष जरूरत 1 करोड़ यूनिट की, आता है 75 लाख यूनिट

भारत में रक्तदान की स्थिति विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत प्रत्येक वर्ष एक करोड़ यूनिट की आवश्यकता होती है लेकिन उपलब्ध केवल 75 लाख यूनिट ही होता है करीब 25 लाख यूनिट के अभाव में हर साल सैकड़ों मरीज दम तोड़ देते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में कुल रक्तदान का केवल 59 फ़ीसदी रक्तदान ही स्वैच्छिक होता है। विश्व रक्तदाता दिवस प्रत्येक वर्ष एक थीम पर आधारित होता है पिछले वर्ष 2020 की थीम ‘सुरक्षित रक्तदान जीवन बचाता है’ रही। किंतु पिछले वर्ष 2020 कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते डब्ल्यूएचओ द्वारा इस दिवस को डिजिटली मनाया गया। इस बार की थीम ‘खून दें और दुनिया को धड़काते रहें’ रखी गई है, जिसकी मेजबानी इस बार इटली देश कर रहा है।

लक्ष्मी सैनी

वैज्ञानिकों की एक नई रिसर्च के अनुसार सिर्फ ‘O’ ही नहीं बल्कि ब्लड ग्रुप ‘A’ भी ‘यूनिवर्सल डोनर’ बनाया गया है, यह अगर वृहद स्‍तर पर सफल होती है तो खून की कमी की समस्या में बहुत हद तक कमी होगी। अतः सभी को रक्तदान से संबंधित भ्रांतियों को दूर कर जागरूक होना चाहिए। ग्रंथों और ज्ञानियों के अनुसार भी रक्तदान से बड़ा दान क्या हो सकता है। हम सबको यह सोच कर खुश होना चाहिए कि, ईश्वर ने हमें वह समर्थन दिया है, जिससे हम किसी और के जीवन को बचा सकते हैं। वैज्ञानिक तौर पर भी रक्तदान शरीर के लिए फायदेमंद माना गया है जैसे, रक्तदान से हार्ट अटैक की आशंका कम हो जाती है। डॉक्टर्स के अनुसार ब्लड डोनेशन से खून पतला हो जाता है जो हृदय के लिए अच्छा होता है। एक नई रिसर्च के मुताबिक नियमित रक्तदान से कैंसर व दूसरी बीमारियों के होने का खतरा कम हो जाता है क्योंकि इससे शरीर के अंदर मौजूद विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं। इसीलिए सभी यह प्रयास करें कि खुद भी रक्तदान करें और दूसरों को भी रक्तदान के लिए प्रेरित करें क्योंकि रक्तदान ही महादान है……!

(लेखिका लक्ष्मी सैनी, मध्‍य प्रदेश के मुरैना जिले के अम्बाह पीजी कॉलेज, अम्बाह के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में सहायक प्राध्‍यापक हैं)