लखनऊ। केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर के स्टोर रूम में लगी आग, वहीं से खत्म हो गई। मगर स्टोर में दवाओं का भंडार था, और दवाएं और फाल्स सीलिंग जलने से धुआं अत्यधिक था। यह धुआं सेंट्रल एसी सिस्टम की वजह से ट्रॉमा के हर वार्ड व मंजिल पर पहुंच गया। विभिन्न मंजिलों पर स्थित उन्हीं वार्डो में धुआं घुसा, जहां सेंट्रल एसी सिस्टम चल रहा था। अगर समय रहते एयर हैंडलिंग यूनिट को बंद कर दिया जाता तो धुआं दूसरे वार्डो में न पहुंचता। मगर, अफरा-तफरी के माहौल में किसी को सुध नहीं आई और मुसीबत मरीजों की जान पर बन आई।
मरीजों को हटाया न होता तो दम घुटने से मर जाते
शनिवार शाम लगभग 6.40 बजे आग की सूचना मिलने के बाद ट्रॉमा सेंटर में जो मंजर देखने को मिला, किसी ने कल्पना नहीं की थी। दमकल की 10 गाडिय़ां आग बुझाने मे जुटी थीं, मगर धुआं लगातार वार्डों में भरता जा रहा था। मरीजों को सांस लेने में दिक्कतें होने लगीं, दम घुटने लगा तो मरीज व उनके परिवारीजन, खुद की जान बचाने के लिए बाहर को भागने लगे थे। वेंटीलेटर यूनिट, आईसीयू, एनआईसीयू में एयर टाइट व्यवस्था होने की वजह से खासी दिक्कत थी। गनीमत थी कि मौके पर मौजूद डॉक्टर, स्टाफ और तीमारदारों ने पुरजोर कोशिश कर एक-एक मरीज को बाहर निकाल दिया।
191 मरीजों को शिफ्ट किया गया ट्रॉमा से
आग की घटना के बाद, ट्रॉमा सेंटर के विभिन्न वार्डों से 191 मरीजों को शताब्दी, गांधी वार्ड, लारी कार्डियोलॉजी व अन्य बाल रोग विभाग में शिफ्ट किया गया। शिफ्ट होने वालों में 69 मरीज शताब्दी अस्पताल में भर्ती हैं। शिफ्ट कराने में केजीएमयू के स्टाफ के साथ ही सीएमओ की टीम, जिला प्रशासन की टीम ने खासा सहयोग किया।
नहीं थे आग बुझाने के संसाधन
ट्रॉमा सेंटर में न ही फायर फाइटिंग सिस्टम था, और न ही आग बुझाने के लिए कोई संसाधन। कुछ सिलिंडर थे मगर वो भी एक्सपायर हो चुके थे, जिनका लॉक खोलना भी किसी को नहीं आता था। लिहाजा सबकुछ सिर्फ भगवान भरोसे था।