-तीन साल से 18 साल के बीच एक बार ब्लड प्रेशर जरूर चेक कराना चाहिये
-जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक का सेवन व व्यायाम, भागदौड़ न करने वाली जीवनशैली ने बढ़ायीं दिक्कतें

धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। बच्चों में ब्लड प्रेशर की समस्या पिछले दस सालों में दस गुना बढ़ गयी है, दस साल पहले जहां 0.4 प्रतिशत बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर पाया जाता था वहां अब 5 से 10 प्रतिशत बच्चों में यह पाया जा रहा है। आम तौर पर यह बात किसी के दिमाग में जल्दी आती ही नहीं है कि बच्चों को भी हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत हो सकती है, लेकिन ऐसा होता है, इसलिए तीन वर्ष की आयु से लेकर 18 वर्ष तक की आयु के बच्चों/किशोरों का कम से कम एक बार ब्लड प्रेशर जरूर चेक होना चाहिये।
यह जानकारी इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजिस्ट्स के नॉर्थ जोन चैप्टर के सचिव, फोर्टिस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स दिल्ली के चेयरमैन व नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ संजीव गुलाटी ने एक विशेष बातचीत में दी। उन्होंने बताया कि इसी विषय पर मैंने संजय गांधी पीजीआई में सम्पन्न इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजिस्ट्स के नॉर्थ जोन की कॉन्फ्रेंस में अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया था।
बच्चों को होता है सेकेंडरी हाईपरटेंशन या ऐसेन्शियल हाईपरटेंशन
डॉ गुलाटी ने बताया कि सामान्यत: छह वर्ष तक के बच्चों को सेकेंडरी हाईपरटेंशन तथा छह वर्ष से ऊपर के बच्चों को ऐसेन्शियल हाईपरटेंशन की शिकायत हो जाती है। ऐसेन्शियल हाईपरटेंशन जीवन शैली, खानपान की वजह से होता है तथा सेकेंडरी हाईपरटेंशन किडनी की बीमारी की वजह से होता है।
डॉ संजीव गुलाटी ने बताया कि फास्ट फूड में जहां नमक ज्यादा शरीर में जाता है, कोल्ड ड्रिंक पीने से यूरिक एसिड शरीर में बनता है, क्योंकि कोल्ड ड्रिंक, बेवरेजेस को मीठा करने के लिए फ्रक्टोज का इस्तेमाल किया जाता है, फ्रक्टोज के कारण यूरिक एसिड बनता है, और यूरिक एसिड का सीधा सम्बन्ध ब्लड प्रेशर से है।
डॉ गुलाटी ने बताया कि आजकल आपने देखा होगा कि बच्चों में मोटापा बढ़ रहा है, इसका कारण उनकी जीवनशैली, उनका अधिक नमक से युक्त फास्ट फूड वाला खानपान और शारीरिक गतिविधियों वाले खेलों में न लिप्त होना, व्यायाम की कमी, मोबाइल या कम्प्यूटर में गेम खेलते रहना है। उन्होंने बताया कि इन सभी कारणों से होने वाले हाईपरटेन्शन को ऐसेन्शियल हाईपरटेंशन कहते हैं, जबकि छह साल तक के बच्चों में अगर हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत पता चले तो उनके गुर्दे की जांच जरूर करानी चाहिये, क्योंकि तीन वर्ष तक की उम्र के बच्चे को खानपान की वजह से हाईपरटेंशन होने की संभावना कम होती है। यह देखा गया है कि बहुत से एडल्ट्स में जो ऐसेन्शियल हाईपरटेंशन की शिकायत होती है, उसकी शुरुआत बचपन से ही हो जाती है।
उन्होंने बताया कि छह साल से कम उम्र वाले बच्चों में होने वाला हाई ब्लड प्रेशर जो सेकंडरी हाईपरटेंशन होता है, इसमें ज्यादातर केसेज में इसका कारण गुर्दा की बीमारी होता है, बहुत कम केस में इसका कारण कोआर्कटेशन ऑफ एओर्टा पाया जाता है। इसलिए अगर छह साल से कम उम्र के बच्चे को हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत हो तो उसे किडनी यानी गुर्दे के डॉक्टर को जरूर दिखाना चाहिये। उन्होंने बताया कि छह से 12 साल के बच्चों में हालांकि ऐसेन्शियल हाईपरटेंशन ही पाया जाता है लेकिन उनमें भी हाई ब्लड प्रेशर का कारण गुर्दे की बीमारी पाया गया है।
अगर लाइफ स्टाइल की वजह से हाईपरटेंशन की शिकायत है और उसे कंट्रोल नहीं किया जाता है तो यह हार्ट को, किडनी को खराब कर देता है और ब्रेन स्ट्रोक्स का खतरा भी पैदा करता है।
बच्चों का ब्लड प्रेशर नापना भी एक कला है
डॉ गुलाटी ने बताया कि बडों का ब्लड प्रेशर नापना आसान काम है, लेकिन इसके विपरीत बच्चों का ब्लड प्रेशर नापना आसान नहीं है, एक बच्चे का ब्लड प्रेशर नापने में आधा से एक घंटा लग जाता है, उसकी वजह यह है कि बच्चा जब तक शांत नहीं रहता तब तक ब्लड प्रेशर नापना बेमानी है, और होता यही है कि क्लीनिक में बच्चा पहुंचता है तो कभी इधर दौड़ लगा रहा है, कभी उधर भाग रहा है, जब ब्लड प्रेशर नापना शुरू करो और अगर रोना शुरू कर दिया तो उस समय का ब्लड प्रेशर लेने से लाभ नहीं है।
उन्होंने बताया कि स्टडी भी कहती हैं कि क्लीनिक पर लिया गया ब्लड प्रेशर आइडियल नहीं माना जा सकता, जबकि घर पर रहने के दौरान लिया गया ब्लड प्रेशर की जांच ही एक आदर्श जांच मानी गयी है। इसलिए होना यह चाहिये कि माता-पिता को ब्लड प्रेशर नापने वाला इंस्ट्रूमेंट घर के लिए दिया जाये तथा उनसे कहें कि जब बच्चा सो जाये तो उसका ब्लड प्रेशर ले लें।
जेंडर और उम्र के हिसाब से भिन्न–भिन्न होता है ब्लड प्रेशर
बच्चों की उम्र के हिसाब से, लड़का, लड़की के हिसाब से ब्लड प्रेशर की अलग-अलग नॉर्मल रेंज तय हैं। इसके अलावा अलग-अलग उम्र वाले बच्चों के हिसाब से तीन-चार तरह के अलग-अलग बैंड भी रखने पड़ते हैं, जिन्हें बांधकर बच्चों का ब्लड प्रेशर चेक किया जाता है।
इसका हल है
डॉ गुलाटी ने बताया कि बच्चों के ब्लड प्रेशर लेने की समस्या लाइलाज नहीं है, इसका हल है, हल यह है कि आजकल अच्छे-अच्छे ऑटोमेटेड उपकरण आ गये हैं, इन उपकरणों को चिकित्सक रख सकते हैं, इन्हें बच्चों के माता-पिता को किराये पर दे सकते हैं। उन्होंने बताया कि आजकल तो एडवांस्ड उपकरण भी आ गये हैं, इन एडवांस्ड उपकरणों की खासियत यह है कि ये उपकरण तीन अलग-अलग समय की रीडिंग लेते हैं, जिससे पता चलता है कि बच्चे को हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत है अथवा नहीं।

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