-प्रथम विश्व नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज डे मनाया गया केजीएमयू में
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। विश्व स्वास्थ्य संगठन में तय होने के बाद प्रथम विश्व नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज डे मनाया गया। इस मौके पर किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में मेडिसिन विभाग के तत्वावधान में कलाम सेंटर में एक सेमिनार का आयोजन किया गया जिसका उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलित करके प्रो एम एल बी भट्ट और प्रो ए के त्रिपाठी ने किया।
इस अवसर पर प्रो भट्ट ने कहा कि नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज से निपटने के लिए नई रणनीतियों पर काम करना पड़ेगा। उपचार की पद्धतियों को अपडेट करने की आवश्यकता है। इस अवसर पर डॉ आर एम एल इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रो ए के त्रिपाठी ने कहा कि नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज के बारे में समाज को जागरूक करने की आवश्यकता है क्योंकि जानकारी के अभाव में नुकसान ज्यादा होता है। जागरूकता के द्वारा हम बीमारी को नियंत्रित कर सकते है।
आयोजन अध्यक्ष प्रो वीरेंद्र आतम ने जागरूकता फैलाने पर जोर देते हुए कहा कि साफ-सफाई को अपने जीवन मे अपनाना होगा। आयोजन सचिव डॉ डी हिमांशु ने कहा इन बीमारियों की गंभीरता को देखते हुए पहली बार पूरे विश्व मे प्रथम नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिसीज़ के रूप में मनाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश का पर्यावरण इन बीमारियों के लिए उपजाऊ साबित हो रहा है। जागरूकता के द्वारा बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।
सेमिनार में विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोऑर्डिनेटर डॉ तनुज शर्मा ने बताया कि लेप्रोसी की रोकथाम के लिए ग्राम प्रधानों एवं स्कूलों को भी जोड़ा जा रहा है। इसमें उनको शपथ दिलाई जा रही है जिससे इस बीमारी को से जुड़े भेदभाव को दूर किया जा सके। इस बीमारी की पहचान यह है कि इसमें तवचा पर जो घाव होते है उनमें किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं होती है।
फाइलेरिया की रोकथाम के लिए 17 फरवरी से 29 फ़रवरी तक 31 जिलों में अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें लखनऊ, बाँदा, भदोही, चित्रकूट, आदि प्रमुख हैं। जिसमे सभी को (2 साल तक के बच्चे, गर्भवती महिलाओं,गंभीर रोगियोको छोड़कर) एल्बेंडाजोल, हेटराजान की दवा दी जाएगी। यह दवा साल में एक बार खायी जाती है। इसे फाइलेरिया के उन्मूलन के लिए दिया जाता है। इस अभियान में80 हजार टीम लगेंगी, फिंगर मार्किंग और घर की मार्किंग भी की जाएगी। इसके अलावा आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और ANM भी शामिल होंगे। महत्वपूर्ण यह भी है कि पूरे विश्व का 40% फाइलेरिया भारत में है। उसका 40% उत्तरप्रदेश में है।
कालाजार बिहार से लगे जिलों जैसे कुशीनगर, देवरिया, गाजीपुर इत्यादि में कालाजार एक बड़ी समस्या के रूप में व्याप्त है। पूरे विश्व का 50% भारत में है। ये बालू मक्खी के काटने से होता है। पेट मे सूजन, बुखार, वजन कम होना ये इसके प्रमुख लक्षण हैं। इसका उपचार न किया जाए तो व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है। इसकी रोकथाम के लिए कीटनाशक स्प्रे का प्रयोग किया जाता है। इस प्रयोग के कारण निरंतर मरीजों की संख्या में कमी आ रही है।
जूते पहनकर काम करें खेतों में
सेमिनार में माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रो पारुल जैन ने स्क्रब टायफस एवं संबंधित रिकटेशिया डिजीज के बारे में बताते हुए कहा कि जहां नमी होती है, खेतों में, घास वाले मैदानों में, जहाँ चूहे भी ज्यादा पाए जाते हैं, वहां पर संक्रमण होने की संभावना ज्यादा होती है। इस बीमारी में बुखार, शरीर पर चकत्ते, बेहोशी होना हेमरेजिक होना इसके मुख्य पहचान है। मेडिकल यूनिवर्सिटी में इसके डायग्नोसिस की सुविधा उपलब्ध है। इससे बचने के लिए शरीर को ढंककर ही मैदानों में जाएं, खेतों में पैरों में जूते पहनकर काम करें। इसकी अभी कोई वेक्सीन नहीं है। यह बीमारी टिक कीड़े के काटने से होती है।
इस अवसर पर डॉ के के सावलानी ने बताया डेंगू की बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है बस सावधानी बरतने की जरूरत है। प्लेटलेट्स कम होने पर घबड़ाना नहीं चाहिए, क्योंकि ये कुछ समय बाद बढ़ जाती है। उल्टी दस्त होने पर जब मरीज मुख से कुछ खा नहीं पाता उस समय मरीज को भर्ती करके फ्लूड चढ़ाना चाहियें।
प्रो सत्येंद्र सोनकर ने बताया कि बारिश के समय सबसे ज्यादा खतरा रहता है सांप काटने का। सांप काटने पर मरीज को अस्पताल लाना चाहिए जिससे उसकी स्थिति के अनुसार उपचार किया जा सके क्योंकि मरीज को लकवा और न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती है। सेमिनार में पूरे प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों, संस्थाओं के लोग शामिल हुए। डॉ सौरभ पांडेय ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।