लखनऊ। ध्वनि प्रदूषण से सिर्फ बहरापन ही नहीं मानसिक तनाव सहित कई अन्य शारीरिक परेशानियां भी हो रही हैं। हमारा प्रयास है कि लोगों को ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए वृहद स्तर पर जागरूक किये जाने की आवश्यकता है। चूंकि कोई चाहे या न चाहे, ध्वनि प्रदूषण सभी को प्रभावित करता है इसलिए सभी में जागरूकता फैलाने की जरूरत है।
बहरापन अब सामाजिक समस्या भी : डॉ राकेश गुप्ता
यह बात एसोसिएशन ऑफ ओटोलरेंगोलॉजिस्ट्स ऑफ इंडिया (एओआई)के राष्ट्रीय सचिव डॉ राकेश गुप्ता ने सेहत टाइम्स से एक विशेष बातचीत में कही। ज्ञात हो इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन और आवाज फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आज 26 अप्रैल को नो हॉर्न डे मनाया गया। उन्होंने बताया कि पूरे विश्व में 26 अप्रैल अंतरराष्टï्रीय ध्वनि प्रदूषण चेतना दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि वाहनों के हॉर्न, औद्योगिक और शहरी ध्वनि प्रदूषण से होने वाले तेज शोर के कारण होने वाला बहरापन अब निश्चित रूप से पहचानी गयी स्वास्थ्य और सामाजिक समस्या है।
मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन भी दे रहा
उन्होंने कहा कि ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्य के सभी अंगों में इसका दुष्प्रभाव देखा गया है। बहरेपन के साथ ही मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन, अत्यधिक गुस्सा आना, ब्लडप्रेशर बढऩा, मांसपेशियों में संकुचन से सिरदर्द, थकान, पेट में अत्यधिक अम्ल स्राव से एसिडिटी और बदहजमी, सूक्ष्म कार्य करने की क्षमता में कमी और पहले से बीमारियों से ग्रस्त मरीजों में इनका तेजी से बढऩा भी ध्वनि प्रदूषण के कारण देखा गया है। डॉ गुप्ता ने बताया कि बढ़ते ध्वनि प्रदूषण ने अब स्वास्थ्य विकारों के साथ एक सामाजिक समस्या का रूप ले लिया है। उन्होंने कहा कि शहर में ध्वनि प्रदूषण का एक बड़ा कारण मोटर वाहन हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने जुलाई 2016 में मल्टी टोन और प्रेशर हॉर्न को पूर्णत: प्रतिबंधित कर दिया है। यह नियम महाराष्टï्र, तमिलनाडु, दिल्ली, एनसीआर में कड़ाई से लागू किया गया है।
सामाजिक संगठन कर रहे जागरूकता में सहयोग
हमारे देश के बड़े शहरों में गैर अनुपातिक रूप में ध्वनि प्रदूषण की समस्या और इससे उपजी स्वास्थ्य सम्बंधी व्याधियों ने समाज के सभी वर्गों को सोचने पर मजबूर किया है। पिछले वर्ष चिकित्सकों के सबसे बड़े संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इस समस्या के प्रति लोगों को जागरूक करने और इस पर कार्य करने के लिए सामाजिक संगठनों का सहयोग लेना शुरू किया है। इस वर्ष कान, नाक गला विशेषज्ञों के संगठन एओआई और मुम्बई स्थित आवाज फाउंडेशन के सहयोग से जन जागरण अभियान शुरू किया है। जिसका उद्देश्य सभी सामाजिक संगठनों के सहयोग से हमारे देश में बढ़ रहे ध्वनि प्रदूषण के प्रति सचेत करने और इसे रोकने के सतत प्रयास करने की आवश्यकता पर काम कर रहा है।
सात बड़े शहरों में मानकों से ज्यादा ध्वनि प्रदूषण
केंन्द्रीय पॉल्यूशन बोर्ड दिल्ली द्वारा अपनी राज्य शाखाओं के सहयोग से किये गये सर्वे से इस बात की पुष्टि हुई है कि देश के सभी मेट्रो शहरों और मझोले श्रेणी के शहरों में प्रमाणिक प्रदूषण मानकों से ऊपर खतरनाक स्तर तक रहा है। देश के सात बड़े शहरों मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरू, लखनऊ, हैदराबाद में तय मानकों से अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण पाया गया है। मुम्बई, दिल्ली और कोलकाता विश्व के अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण वाले सात शहरों में से तीन शहर हैं। अत्यधिक शोर वाले शहरों में मुम्बई कोलकाता और दिल्ली को शोर की वैश्विक राजधानी माना गया है।
तुरंत उपाय किये जाने की आवश्यकता
डॉ गुप्ता ने बताया कि ध्वनि पर्यावरण प्रोटेक्शन अधिनियम 1986 के अंतर्गत ध्वनि पैदा करने वाले यंत्रों की मानक सीमा तय की गयी है। पर्यावरण में ध्वनि प्रदूषण पैदा करने वाले यंत्रों में सभी मोटर यान, जनरेटर सेट, भवन निर्माण में होने वाली मशीनें और मोटर यान के हॉर्न शामिल हैं। इसी के तहत लाउडस्पीकर और पटाखों का शोर भी रात्रि 10 बजे से प्रात: 6 बजे तक सार्वजनिक स्थलों पर न करने की सलाह दी गयी है। उन्होंने बताचा कि इस सम्बन्ध में देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों ने भी आदेश जारी कर रखे हैं। उन्होंने बताया कि ध्वनि प्रदूषण के कारण जनजीवन के स्वास्थ्य और जीवन शैली में होने वाले शारीरिक और मानसिक दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता की कमी है। इसके लिए तुरंत उपाय किये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सामाजिक और स्वास्थ्य संगठनों को कानून का पालन कराने वाले संस्थानों के साथ तालमेल के साथ कार्य करने की जरूरत है।