भारत में पाए जाने वाले औषधीय पौधों से नयी-नयी खोज करने का आह्वान
लखनऊ. केजीएमयू के डॉ. विनोद जैन ने कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एशिया में 80 प्रतिशत लोग अल्टरनेटिव मेडिसिन का प्रयोग कर रहे हैं जबकि अमेरिका में 40 फीसदी लोग अल्टरनेटिव मेडिसिन का प्रयोग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब हल्दी और तुलसी पेटेंट हुईं तब हमारी चेतना जागृत हुई, और वर्ष 2004 से हम लोगों ने इस विषय में संगोष्ठी आदि करना शुरू किया है.
आज यहाँ केजीएमयू में औषधीय पौधे और मानव स्वास्थ्य विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के संयोजक इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. बीएन सिंह ने की.
इस अवसर पर वन औषधीय प्रचार प्रसार विभाग आरोग्य भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राकेश पंडित ने कहा कि हमारे भारत देश में 45000 प्रकार के पौधे पाए जाते हैं, जिनमें 25000 पौधे औषधीय गुणों से युक्त हैं तथा 8000 पौधों का उपयोग औषधि बनाने में किया जाता है. उन्होंने कहा कि जिस प्रकार मलेरिया, टीबी आदि के रोगों में इनके जीवाणु-विषाणु दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर रहे हैं ऐसे में यह आवश्यक है कि सभी पैथी के डाक्टरों और वैज्ञानिकों द्वारा इन औषधीय पौधों से उपचार के लिए नयी खोज की जाए. उन्होंने आयोजित संगोष्ठी में अर्जुन, ब्राह्मी, शतवारी, तुलसी, गिलोय जैसे कुछ पौधों के प्रयोग और उनकी पहचान व प्रबंधन के बारे में भी जानकारी दी.
समारोह में सीमैप के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक एवं सलाहकार डॉ. एके माथुर ने कहा कि आजकल दवाओं में में उपयोग होने वाले 80 प्रतिशत हर्बल उत्पाद जंगलों से प्राप्त किये जाते हैं. इनकी अभी भी खेती नहीं की जा रही है. इसलिए जरूरी है कि एक राष्ट्रीय नीति बनाकर औषधीय पौधों की खेती की जाये. उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश में पौधों का धार्मिक महत्त्व भी है, यह जरूरी है कि लोगों का विश्वास पौधों पर बना रहे और उसे वैज्ञानिक सहयोग भी मिले. उन्होंने कहा कि आजकल आयुर्वेदिक उत्पाद के नाम पर लोगों को छला जा रहा है. बाजार में कई ऐसे उत्पाद हैं जिनको हर्बल कहकर लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ किया जाता है, जबकि ऐसे उत्पादों में विभिन्न प्रकार के रसायन मिले होते हैं.
उन्होंने कहा कि हमें विदेशी फार्मास्युटिकल कंपनियों और पश्चिम देशों के लिए आयुर्वेदिक कच्चा उत्पाद देने की नीति छोड़नी पड़ेगी. हमें सभी हर्बल उत्पाद के मानक बनाकर उसके बैच टू बैच उत्पाद में गुणवत्ता लानी पड़ेगी. उन्होंने बताया कि पौधों में जो औषधीय गुण होते हैं, वे मौसम, पौधे की उम्र के हिसाब से उसमें उत्पन्न होते हैं. इसलिए हमें पौधों को जब चाहे तब इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.