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80 फीसदी मरीजों के इलाज में जांच की जरूरत नहीं, जांच कराने से बढ़ रहा इलाज का खर्च

दिन पर दिन महंगे होते जा रहे इलाज पर जतायी गयी चिंता

डॉ वितुल के. गुप्ता                  डॉ राजीव चावला

लखनऊ। भारत वर्ष में हेल्‍थ केयर महंगी होती जा रही है, क्‍योंकि नौजवान चिकित्‍सक क्‍लीनिकल डायग्‍नोसिस पर नहीं बल्कि जांचों की रिपोर्ट के आधार पर इलाज करते हैं, जबकि असलियत यह है कि 80 फीसदी मरीजों के इलाज में जांच कराना जरूरी नहीं होता है। यहां चल रहे 3rd ACP India chapter के दूसरे दिन कार्यक्रम के पैनल डिस्कशन में भारत सहित अमेरिका, यूके, बुल्गारिया, जापान, बांग्लादेश के विशेषज्ञों ने यह बात कही।

 

डॉ0 थॉमस कुनी ने बताया हेल्थ केअर की कॉस्ट लगातार बढ़ रही है। इसको कैसे कम किया जाए। US में ज्यादातर लोगों के पास हेल्थ इंश्‍योरेंस है जिसकी वजह उन्हें अपनी बीमारी पर अपने पॉकेट मनी से खर्च नहीं करना पड़ता है। जापान, बुल्गारिया, यूके में हेल्थ केअर सरकार द्वारा दिया जाता है। डॉ रनदीप गुलेरिया ने बताया कि भारत मे ज़्यादातर लोग हेल्थ केअर पर अपने जेब से खर्च करते हैं, जिससे तमाम तरह की वित्तीय परेशानिया होती हैं, किंतु भारत सरकार की आयुष्मान योजना के तहत देश के 10 करोड़ परिवारों को हर साल 5 लाख का हेल्थ बीमा मिलेगा जो उनकी हेल्थ केअर की जरूरतों को पूरा करेगा।

 

विशेषज्ञों का कहना था कि वर्तमान समय मे मेडिसिन की प्रैक्टिस में बदलाव आ रहा है चिकित्सक ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करा रहा है इससे हेल्थ केयर का खर्च बढ़ रहा है। यंग चिकित्सकों को क्लीनिकल प्रैक्टिस पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए टेस्ट पर कम। क्लीनिकल प्रैक्टिस के माध्यम से 80% मरीजों का डाइग्नोसिस किया जा सकता है। कई देशों में क्लीनिकल प्रैक्टिस पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। भारत और बंगला डेश में एडल्ट और बुजुर्ग लोगों के लिये वैक्सिनेशन की पॉलिसी नही है।  US आदि देशों में है किंतु वहां के लोग भी जागरूकता की कमी की वजह से वैक्सिनेशन नही करवाते हैं। भारत मे जहां लोग डायबिटीज, स्ट्रोक, लंग डिजीज आदि विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो रहे है ऐसे में इन्हें वैक्सिनेशन की पॉलिसी अपनानी चाहिए।

हेल्‍थ केयर फोर्स अब तंदरुस्‍त नहीं रही

डॉ0 वितुल के गुप्ता ने बताया कि हमारी हेल्थ केअर फोर्स अब तंदरुस्त नही रही। इनकी सेहत अब खराब हो रही है। इनमे मोटापा, बीपी, दिल और दिमाग की बीमारियां नौजवान चिकित्सकों में बढ़ रही है। पर्सनल बर्न आउट का चिकित्‍सकों पर असर पड़ रहा है, जिससे उनके काम पर और मरीजो पर भी फर्क पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण गवर्मेंट और प्राइवेट अस्पतालों के अलग अलग वर्किंग कल्चर है। गवर्मेंट हॉस्पिटल में मरीजों की संख्या ज्यादा और मरीज देखने का समय कम, जांच की सुविधा का अभाव। पेशेंट देखने के अलावा और अन्य कई कार्य करना पड़ता है तथा सेलरी का काम होना है। जबकि प्राइवेट अस्पतालों में मरीज के पास पैसे कम है किंतु अस्पताल का खर्चा ज्यादा आता है । ऐसे में मरीज चिकित्सक के विरुद्ध हो जाता है इससे चिकित्सकों के विरुद्ध हिंसा बढ़ जाती है। जिसकी वजह से चिकित्सक मरीजों को देखते समय डरता है एवं तनाव में रहता है। चिकित्सक यह समझ नही पाता कि CP एक्ट के अनुसार कार्य करे जहां जो चिकित्‍सकों के प्रोफेशन को व्‍यवसाय बनाता है या MCI में प्रोफेसनल एथिक्स को माने। प्राइवेट अस्पताल व्‍यवसाय की तरह काम करते हैं और गवर्मेंट हॉस्पिटल एथिक्स पर ध्यान देते हैं।

 

डायबिटीज का संबंध केवल पैंक्रियाज से नहीं

डॉ राजीव चावला, रिसर्च सोसाइटी ऑफ डायबिटीज इंडिया, के निर्वाचित अध्यक्ष द्वारा बताया गया कि डायबिटीज का संबंध केवल पैंक्रियाज से ही नहीं है बल्कि इसका संबंध गट, स्टमक, छोटी आत आदि से निकलने वाले बहुत सारे हार्मोन से भी है जो ब्रेन को कंट्रोल करते हैं। गट हारमोंस डायबिटीज और मोटापे को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाते हैं। नेगेटिव हार्मोन ज्यादा प्रोड्यूस होगा तो भूख कम लगेगी इससे शुगर और मोटापा कंट्रोल होता है । इसी प्रकार बेरियाट्रिक सर्जरी में स्टमक को काटा जाता है जिसकी वजह से आदमी के खाने की क्षमता कम हो जाती है और पाचन एंजाइमों की रिसाव की क्षमता भी कम हो जाती है जिसकी वजह से भूख कम लगती है और आदमी का मोटापा जल्दी खत्म हो जाता है।

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