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69 डिग्री मुड़ी रीढ़ की हड्डी को सर्जरी से ठीक किया

देश के महानगरों में होने वाले स्कोलियोसिस के ऑपरेशन की सुविधा अब लखनऊ में भी

लखनऊ। स्कोलियोसिस यानी रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन, जिसे आम भाषा में हम कूबड़ भी कहते हैं, ऐसी विकृति है जो 10-12 साल के बच्चों में ज्यादा पायी जाती है। अगर टेढ़ापन 10 डिग्री तक है तो कोई बात नहीं क्योंकि कपड़ों के नीचे यह पता भी नहीं चलता है लेकिन अगर यह ज्यादा है तो पता चलने लगता है और अगर यह 40 डिग्री से ज्यादा टेढ़ा हो जाये तो ऑपरेशन कराना जरूरी हो जाता है। फिलहाल देश के महानगरों में होने वाले इस ऑपरेशन की सुविधा अब लखनऊ में भी उपलब्ध है और वहां की अपेक्षा काफी कम खर्च में हो जाता है। हेल्थ सिटी हॉस्पिटल में पिछले दिनों मारफान सिंड्रोम से ग्रस्त बच्ची की ऑपरेशन कर उसे नया जीवन दिया गया है।

यह जानकारी आज यहां गोमती नगर स्थित हेल्थ सिटी हॉस्पिटल में आयोजित पत्रकार वार्ता में स्पाइन एंड न्यूरो सर्जन डॉ सुनील बिसेन ने कही। उन्होंने बताया कि इसकी सर्जरी उनके अलावा अभी उत्तर प्रदेश में कोई भी नहीं कर रहा है, इसकी वजह इस सर्जरी में काफी रिस्क होता है। उन्होंने बताया कि वह यह सर्जरी पिछले पांच साल से कर रहे हैं। अभी तक वह 14 सर्जरी कर चुके हैं और सभी सफल रही हैं। इस सर्जरी में टाइटेनियम की रॉड से पेंच कस कर स्पाइन को सीधा किया जाता है साथ ही बोन ग्राफ्टिंग भी की जाती है।

डॉ बिसेन ने बताया कि यूं तो रीढ़ की हड्डी का टेढ़ापन बड़ों को भी होता है लेकिन उनकी सर्जरी बच्चों की अपेक्षा आसान होती है। उन्होंने बताया कि 75 फीसदी बच्चों में स्कोलियोसिस यानी रीढ़ की हड्डी टेढ़ी होने की कोई वजह नहीं होती है लेकिन 25 फीसदी में इसकी वजह होती है जैसे कि मैंने पहला केस जिस बच्ची का किया था उसमें उसके दिल के पीछे रीढ़ की हड्डी से चिपका हुआ एक ट्यूमर था, ऐसे में उस मरीज के दो ऑपरेशन करने पड़े, एक ट्यूमर निकालने के लिए दूसरा रीढ़ की हड्डी सीधी करने के लिए।

पत्रकार वार्ता में उन्होंने लखनऊ की रहने वाली उस 13 वर्षीया किशोरी से भी मिलवाया जिसका तीन माह पूर्व मई में उन्होंने यहीं हेल्थ सिटी हॉस्पिटल में ऑपरेशन किया था। 5 फीट 11 इंच लम्बी यह किशोरी बिल्कुल सीधी होकर चल रही थी और कहीं से यह महसूस नहीं हो रहा था कि बच्ची को इतनी गंभीर सर्जरी हुई है।

इस किशोरी के बारे में डॉ बिसेन ने बताया कि जेनेटिक डिसऑर्डर मारफान सिंड्रोम से ग्रस्त यह बच्ची उनके पास एक साल पहले आयी थी। उन्होंने बताया कि इस डिसऑर्डर में लिगामेंट जो दो ऑर्गन को जोडऩे का काम करते हैं, में डिफेक्ट हो जाता है जिसका असर रीढ़ की हड्डी के साथ सभी अंगों पर पड़ता है। इसमें सभी अंगों की लम्बाई तेजी से बढ़ती है 39 डिग्री मुड़ी हुई स्पाइन के साथ आयी इस बच्ची के स्पाइन में 10 माह में 30 डिग्री स्पाइन और मुड़ गयी, इस तरह से कुछ 69 डिग्री स्पाइन मुड़ गयी थी। उन्होंने बताया कि इस बच्ची की इस डिसऑर्डर के चलते इसकी दो सर्जरी की गयीं।

उन्होंने बताया कि इस सर्जरी में करीब 6 लाख रुपये का खर्च आया है, लेकिन इसी सर्जरी का खर्च दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, हैदराबाद में कराने पर चार गुना ज्यादा खर्च आता है।

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