केजीएमयू के मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग ने रचा इतिहास
दुर्घटना के बाद जबड़ा और चेहरे की हड्डियां टूट गयी थीं
एक आंख से डबल दिखने की शिकायत लेकर आया था
लखनऊ। । किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय केजीएमयू के चिकित्सकों ने इतिहास रचते हुए भारत मेंं पहली बार कम्प्यूटर की मदद से सडक़ दुर्घटना के दौरान आंख के टूटे सॉकेट की समुचित मरम्मत करने में सफलता प्राप्त की है। डबल दिखने की समस्या लेकर केजीएमयू पहुंचा मरीज अपने ऑपरेशन के बाद बहुत खुश है। इस सफल ऑपरेशन को यहां के ओरल और मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग की प्रो दिव्या मेहरोत्रा की टीम द्वारा किया गया।
प्रो.दिव्या मेहरोत्रा ने, कप्यूटराइज्ड सर्जरी की शुरुआत कर न केवल संस्थान का नाम रोशन किया बल्कि प्रदेश के मरीजों में बेहतर इलाज की उम्मीदें जग गई। अब धनाढ्य मरीजों को इलाज के लिए विदेश नहीं जाना पडेग़ा।
प्रो.दिव्या मेहरोत्रा ने बताया कि आगरा का रहने वाला 29 वर्षीय युवक पिछले दिनों राजस्थान मेंं बिना हेलमेट पहने बाइक चलाते समय सडक़ दुर्घटना का शिकार हो गया था, दुर्घटना में जबड़े और चेहरे की हड्डियां टूट गई थीं। दुर्घटना के बाद उसे पास के ही निजी अस्पताल ले जाया गया जहां उसका उपचार करने के बाद छुट्टी दे दी गयी। इसके बाद जबड़े के इलाज के लिए अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान एम्स में वह भर्ती रहा। वहां से भी जबड़े के इलाज के बाद उसे छुट्टी दे दी गयी।
प्रो मेहरोत्रा बताया कि इसके कुछ दिनों बाद मरीज ने महसूस किया कि दाहिनी आंख की अपेक्षा उसकी बायीं आंख में हर चीज डबल दिख रही थी साथ ही आंख बोझिल भी हो रही थी, इसको लेकर वह कई अस्पतालों में गया और इलाज कराया लेकिन उसे संतुष्टिï नहीं मिली। करीब डेढ़ माह पूर्व मरीज केजीएमयू आया तथा यहां ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग में प्रो. दिव्या मेहरोत्रा को दिखाया। प्रो मेहरोत्रा ने मरीज की जांच करने के बाद उसे चेहरे की सीटी कराने की सलाह दी। थ्री डी सीटी स्कैन से पता चला कि बाई आंख व आंख के पीछे सिर की हड्ड़ी (ऑर्बिटल) बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी थी। बाई आंख को चारों तरफ से सुरक्षा प्रदान करने वाली हड्डी (आंख के आकार वाली ) फोर वाल में तीन वाल (हड्डियां) पूरी तरह से चकनाचूर हो चुकी थी। जिसकी वजह से बाई आंख नियत स्थान से नीचे खिसक गई थी, दोनों आंखें ऊपर नीचे होने की वजह से दो विजन दिखने लगे थे।
टाइटेनियम का इंप्लांट निर्मित कराया
प्रो.मेहरोत्रा ने बताया कि थ्री डी सीटी स्कैन को देखकर कम्प्यूटर पर मरीज की बाई आंख के फोरवाल का ढांचा डिजाइन किया, उक्त डिजाइन को दक्षिण भारत में इंप्लांट निर्माण करने वाली निजी कंपनी को भेजकर टाइटेनियम का इंप्लांट निर्मित कराया। उन्होंने बताया कि मात्र 35 हजार में इंप्लांट डिजाइन हो गया, जबकि मलेशिया से डेढ़ लाख में मंगाया जाता था। इंप्लांट आते ही 29 मई को सर्जरी कर दी, एक जून को दोबारा सीटी स्कैन किया गया और सर्जरी पूर्णतया सफल सिद्ध हुई। डॉ दिव्या के अनुसार अब मरीज बहुत खुश है तथा उसे दोहरी दृष्टि की शिकायत भी नहीं है। उन्होंने बताया कि बिना कम्प्यूटर की मदद के सॉकेट की सटीक रिपेयरिंग सम्भव नहीं थी।
ऑपरेशन करने वाली टीम में प्रो.दिव्या मेहरोत्रा के साथ डॉ संजय कुमार, डॉ पवन गोयल, डॉ यू विगनेश, डॉ जगदीश, डॉ प्रवीन, डॉ स्नीर के अलावा एनेस्थीसिस्ट डॉ सतीश धस्माना शामिल रहे।