पद्माकर पांडेय
लखनऊ। दुर्घटना में या कभी कभी सर्जरी के दौरान डॉक्टरों की असावधानी से मरीजों की आंतों में घाव हो जाते हैं और यह घाव पेट की बाहरी स्किन से चिपक जाते हैं। ऐसे में व्यक्ति द्वारा लिया गया भोजन पचने के बाद अधबना मल घाव के स्थान से बाहर निकलने लगता है। इस बीमारी के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इमरजेंसी में रोजाना दो नये केस आने का औसत है। यह बीमारी गंभीर नही है, मगर ट्रीटमेंट का मैनेजमेंट कठिन होता है। यह जानकारी किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के सर्जरी विभाग में सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) वीक में भाग लेने आये बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय बीएचयू के प्रो. डॉ.पुनीत ने दी।
चरणबद्ध तरीके से उपचार के बाद ही करनी चाहिये सर्जरी
प्रो.पुनीत ने बताया कि इसके इलाज के लिए निर्धारित गाइड लाइन के जरिये सर्जरी होनी चाहिये, इससे मरीज को शीघ्र लाभ मिलता है। उन्होंने बताया कि कारण कोई भी हो, पेट में अंदर इंजरी होने पर आंत और स्किन मिल जाती है और मल पेट के रास्ते बाहर आने लगता है। हालांकि यह आम समस्या है,मगर कम समय में इसे ठीक करना डॉक्टर के लिए चुनौती होता है। उपचार की शुरुआत में सीधे सर्जरी कर देने से स्थाई लाभ नही मिलता है, इसका कारण है कि इन मरीजों में ब्लीडिंग के साथ ही संक्रमण, इम्यूनिटी पावर कम होना और कमजोर होने से बेहोशी के लिए अनफिट होना आदि तमाम दिक्कतें होती हैं। इन सभी दिक्कतों को निर्धारित गाइड लाइन के द्वारा एक-एक कर उपचारित करके आखिरी में सर्जरी करते हैं।
कैसे होती है समस्या, होने वाली दिक्कतें
केजीएमयू की प्रो. सौम्या सिंह ने बताया कि पेट में गंभीर चोट लगने पर आंते फट जाती हैं और ब्लीडिंग हो जाती है और वहीं से खून व मल आदि बाहर आने लगता है। समय से इलाज न मिलने पर संक्रमण फैल जाता है। इतना ही नहीं घाव जितना आंत के ऊपरी हिस्से में होगा, समस्या गंभीर होगी। क्योंकि मुंह से लिया गया भोजन, बिना पचे या अधपचा बाहर निकलने लगता है, इससे शरीर में नमक की कमी के साथ ही झटके आने लगते हैं, गुर्दे खराब होने लगते हैं, थकान व कमजोरी महसूस होती है। प्रोट्रीन की कमी से शरीर में सूजन, हार्ट फे ल की संभावना व एनिमिया की समस्या हो जाती है। प्रोट्रीन के अभाव में प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है, फलस्वरूप मरीज कुपोषण का शिकार हो जाता है। उन्होंने बताया कि अगर आधा लीटर से अधिक अधपका भोजन या मल तुरन्त बाहर आ रहा है तो समस्या गंभीर हो सकती है, मतलब भोजन बिना पचे शरीर के बाहर हो रहा है। आधा लीटर से दो लीटर से अधिक मल बाहर करने वाले मरीजों को हाई रिस्क मरीज माना जाता है, शरीर को आवश्यक न्यूट्रीशियन नही मिलता है। क्योंकि भोज्य पदार्थ बाहर होने से शरीर मेंं नमक के साथ पानी भी कम पड़ जाता है।
इस तरह से होनी चाहिये जांच व इलाज
प्रो.सौम्या ने बताया कि डाई टेस्ट के लिए इन मरीजों को मुंह से रंगीन डाई पिलाई जाती है, उसके बाहर आने के समय को देखकर अंदाजा लगा लेते हें कि घाव आंत के किस हिस्से में है। इन मरीजों को चारकोल, अन्य पदार्थ भी पिलाते हैं। घाव के स्थान की पुष्टि की जाती है। सटीक घाव की जगह पुष्ट होन के बाद, सबसे पहले मरीज में शॉक (ब्लीडिंग), संक्रमण, नमक को ठीक करते हैं। प्रोट्रीन की कमी से आई शरीर की कमजोरी को दूर करने के लिए इंजेक्शन लगाते हैं। न्यूट्रीशियन दिया जाता है ताकि मरीज बेहोशी व सर्जरी कराने की स्थिति में आ जाये। इसके बाद इंडोस्कोप के जरिये कैमरे को मल द्वार से आंत में अंदर पहुचाते है, मॉनीटर पर घाव देखकर, पेट खोलते है और निश्चित स्थान पर सर्जरी करते हैं।
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