यदि विश्व का प्रत्येक मानव पंद्रह मिनट हमारे बताये तरीके से ताली बजाये, नहाते समय पेअर के तलवों को रगड़ -रगड़ कर साफ़ कर ले, काम से काम दो बार वज्रासन मुद्रा में बैठ ले तथा अपनी दिनचर्या को प्राकृतिक रूप से व्यवस्थित कर ले तो वह आजीवन रोग ग्रस्त नहीं हो सकता | उसके ईश्वर प्रदत्त ४२, नौकर ( बत्तीस दांत, दो हाथ, दो पैर, दो कान,दो आँखें,नासिका एवं जिव्हा) उसकी आजीवन सेवा कर विश्व के प्रत्येक मानव को आयुष्मान कर सकता है | विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान हो सकता है, भारत पुनः जगत गुरु के स्थान पर स्थापित हो राम राज्य की स्थापना हो सकती है | विश्व को स्वर्ग में परिवर्तित किया जा सकता है |
उपरोक्त तथ्य हमें कैसे प्राप्त हुआ, हम लोगों ने देखा कि हम स्वच्छ पानी पीते हैं, साफ़ सफाई से रहते हैं, कई तरीके कि सावधानियां बरतते हैं फिर भी रोगग्रस्त हो जाते हैं, परन्तु यदि हम जानवरों को देखें तो वे नाली का गंदा पानी पी कर, बिना किसी साफ़ सफाई के रहकर भी रोगग्रस्त नहीं होते हैं क्यों ? इसके ऊपर जब हम लोगों ने शोध कार्य किया तो पता चला कि जानवरों का रोग-प्रतिरोधक संस्थान अत्यंत बलशाली होता है, कारण वह नंगे पैर चलते हैं तो उनके पंजों के पॉइंट कंकर, पत्थरों से दबते रहते हैं, हम सभी जानते हैं कि एक्यूप्रेशर के सिद्धांतों के अनुसार शरीर के सभी आतंरिक अवयवों के बिंदु या तो हाँथ के पंजों में या पैर के तलवों में स्थित होते हैं | हमारे यहाँ पुरातन काल में जब हम प्रातः मंदिर जाते थे टी नंगे पैर जाते थे तथा वहां जब आरती करते थे तो ताली बजा लेते थे |
ताली क्या है ?
चाभी जिस प्रकार ताले की होती है उसी प्रकार हमारे हाथों द्वारा ताली एक प्रकार की मास्टर चाभी है जो प्रत्येक प्रकार के रोगों से मनुष्य मात्र को रोग-मुक्त करा सकती है तथा आजीवन निरोगी रख सकती है | हमारे यहाँ कहा जाता है कि ” एकै साढ़े सब सधे, सब साढ़े सब जाए |” तो यदि विश्व का प्रत्येक मानव इस ताली को साध ले तो इस धरा से सहेज रूप से रोगों को समाप्त किया जा सकता है |
एक्यूप्रेशर विज्ञान को समझने के लिए मानव मात्र को पढ़ा लिखा होना अत्यंत आवश्यक है जबकि हमारी ताली बजाना एवं पत्थर से पैरों को रगड़ने के लिए किसी पढ़ाई की आवश्यक्ता नहीं है |
यही बात हम किन्नरों के साथ भी देख सकते हैं कि वे दिनभर तालियां ठोकते रहते हैं जिसके कारण उनका स्वास्थ्य तथा डील-डॉल आम आदमी की तुलना में काफी ठीक होता है | इसका मतलब ये कटाई नहीं है कि हम दिन भर तालियां ठोकते रहें |
ताली बजाते समय आप पाएंगे कि आपके शरीर का ताप क्रम बढ़ने लगता है, जिसके कारण कोलेस्ट्रॉल पिघलता है तथा हमारे अंगूठे के नीचे जो गद्दी का स्थान होता वह बार-बार दबनेँ के कारण उसमें स्थित रक्त की थैलियां रक्त को विपरीत दिशा में जैसे पानी की धार मारते हैं उसी प्रकार की यह क्रिया होने से रक्त-धमनियों में यदि कोई रुकावट होती है तो वह साफ़ हो जाती है | धमनियों का व्यास बढ़ जाता है जिससे हृदय को आराम मिलता है तथा ताली से पूरे शरीर में वाइब्रेशन होने लगता है जिसके कारण शरीर की सारी व्याधियां बाहर हो जाती है | जिस प्रकार गद्दे को साफ़ करते समय हम हथेली से झटक-झटक कर कचरे को साफ़ कर देते हैं उसी प्रकार की यह क्रिया है |
तालिवादन से शरीर में बात, कफ, एवं पित्त का समातोलन बना रहता है, जिससे मानव मात्र आजीवन निरोगी रह सकता है |
अंततः हम या तो अपने हाथों के, या तलवों के पॉइंट्स पर ही डाकबाव बनाते हैं, यदि कोई व्यायाम या शारीरिक श्रम नहीं कर सकते हैं तो कम से कम ताली बजाकर तथा पत्थर से तलवों को रगड़ कर वह काम कर लें तो अत्यंत ही सहज है |