लखनऊ। भारत में ज्यादा पाया जाने वाला गॉल ब्लैडर के कैंसर से निपटना भारत के लिए बड़ी चुनौती है, क्योंकि अभी तक इसके बारे में यह पता नहीं चल सका है कि इसके होने का कारण क्या है, चूंकि यह कैंसर विदेश में लगभग नहीं के बराबर होता है इसलिए विदेशों में इसकी रिसर्च की संभावना न के बराबर है, ऐसे में इससे निपटने के लिए भारत के अंदर ही किये जा रहे प्रयासों को तेज करने की जरूरत है। इस महत्वपूर्ण मुद्दे सहित इस कैंसर से जुड़े अन्य विषयों पर यहां डॉ राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में 4 मार्च को रही संगोष्ठी (सिम्पोजियम) में विचार किया जायेगा।
लोहिया इंस्टीट्यूट में एक दिवसीय संगोष्ठी
यह बात आज यहां लोहिया संस्थान में होने जा रही संगोष्ठी के आयोजन सचिव तथा सर्जन डॉ आकाश अग्रवाल ने पत्रकारों से कही। उन्होंने बताया कि सिम्पोजियम का विषय ऑन्कोथीम 2017 है तथा इसमें केजीएमयू उत्तर प्रदेश के साथ ही एम्स, नयी दिल्ली, टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, मुंबई, जीबी पंत हॉस्पिटल, नयी दिल्ली, एम्स जोधपुर, राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट नयी दिल्ली के भी कई विशेषज्ञ भाग लेने आ रहे हैं। इसमें मुख्य अतिथि किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रविकांत होंगे। डॉ अनिल अग्रवाल, डॉ महेश गोयल, डॉ संजीव मिश्र, डॉ शिवेन्द्र सिंह इस सिम्पोजियम में अपना लेक्चर देंगे। इस सिम्पोजियम के आयोजन अध्यक्ष डॉ आशीष सिंघल हैं।
उत्तर प्रदेश और बिहार में ज्यादा होता है गॉल ब्लैडर कैंसर
डॉ अग्रवाल ने बताया कि उत्तर प्रदेश और बिहार में विशेष रूप से ज्यादा पाये जाने वाला गॉल ब्लैडर का कैंसर के बारे में अब तक जो मोटी-मोटी जानकारी हासिल हुई है उसके अनुसार ये कैंसर गंगा किनारे बसे इलाकों में ज्यादा पाया जाता है, तथा यह पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा पाया जाता है।15 से 20 फीसदी होने वाले इस कैंसर में पुरुष और स्त्री में इसका अनुपात 20 और 80 प्रतिशत है तथा ज्यादातर यह मोटे लोगों को होता है। इसके कारणों के बारे में उन्होंने बताया कि एक मोटे अनुमान के अनुसार पर्यावरणीय तथा वंशानुगत इसका कारण ज्यादातर लोगों में पाया गया है।
शुरुआती लक्षण कोई खास नहीं
उन्होंने बताया कि दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि इसके मरीज में शुरुआत में पेट दर्द के अलावा कोई विशेष लक्षण नहीं होते हैं जिससे यह पता लगाया जा सके व्यक्ति को गॉल ब्लैडर का कैंसर की शुरुआत है। उन्होंने बताया कि ज्यादातर केसेज में तेज पेट दर्द, पीलिया, भूख कम लगना आदि लक्षण होने पर मरीज द्वारा जब चिकित्सक को दिखाया जाता है तो यह कैंसर की एडवांस स्टेज होती है, और उस स्थिति में मरीज को बचाना मुश्किल होता है। उन्होंने बताया कि यहां तक कि बहुत से मरीजों की कीमोथेरेपी भी किया जाना संभव नहीं होता है।
सर्जरी से पूर्णत: इलाज संभव
डॉ अग्रवाल ने बताया कि अगर इस कैंसर के मरीज प्राइमरी स्टेज में ही पकड़ में आ जायें तो इसका इलाज सर्जरी से पूर्ण रूप से संभव है, इसमें गॉल ब्लैडर तथा गॉल ब्लैडर से लगा हुआ लिवर का भाग निकाल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि मेरी यह सलाह है कि व्यक्ति को अगर बार-बार पेट दर्द, एसिडिटी की शिकायत हो तो इसे नजरंदाज न करें, उन्हें अपने चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिये। यह पूछने पर कि भारत में गॉल ब्लैडर कैंसर कितना होता है, उन्होंने बताया कि भारत में होने वाले कैंसरों में इसका स्थान पांचवां है, एक नम्बर पर यानी सबसे ज्यादा फेफड़ों का कैंसर होता है।