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हम कब समझें कि हमें अपने मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर ध्‍यान देना है

-विश्‍व मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य दिवस-जागरूकता सप्‍ताह (एपीसोड 3)

-फेदर्स-सेंटर फॉर मेंटल हेल्‍थ की क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट सावनी गुप्‍ता की सलाह

क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट सावनी गुप्‍ता

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। स्‍वस्‍थ मन से स्‍वस्‍थ शरीर का विकास होता है। आजकल की जीवन शैली ऐसी हो चुकी है कि कब हमारा शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य खराब हो जाये, कब हमारे मूड में लगातार बदलाव आने लगे, कुछ भी पक्‍का नहीं है, शारीरिक स्‍वास्‍थ्य कब खराब हो रहा है इसका पता हम मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कब खराब हो रहा है की अपेक्षा शीघ्र लगा लेते हैं। व्‍यक्ति के मानसिक रूप से अस्‍वस्‍थ होने के क्‍या संकेत हैं, इस पर ‘सेहत टाइम्‍स’ ने कपूरथला, अलीगंज स्थित फेदर्स-सेंटर फॉर मेंटल हेल्‍थ की फाउंडर, क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट सावनी गुप्‍ता से बात की।

सावनी गुप्‍ता ने बताया कि कुछ ऐसे संकेत हैं जिन्‍हें देखकर वयक्ति को सावधान हो जाना चाहिये कि उसे मानसिक स्‍वास्थ्‍य पर ध्‍यान देने की जरूरत है। सावनी बताती हैं कि भूख और नींद में बदलाव होने लगे यानी अगर व्‍यक्‍ति की भूख ज्‍यादा बढ़ रही है या कम हो रही है, नींद ज्‍यादा आने लगी है या कम आने लगी है, बुरे-बुरे सपने आ रहे हैं। इसी प्रकार शरीर में ऊर्जा में कमी लगने लगी है। व्‍यक्ति को जिन चीजों को करने में पहले आनंद मिलता था लेकिन अब ऐसा नहीं है, यहां तक कि जो छोटे-छोटे काम भी पहले आसान लगते थे, अब भारी महसूस करने लगे हैं। चूंकि अब यह बोझ लगने लगे हैं इसलिए जैसे-जैसे व्‍यक्ति इन कार्यों से बचते हैं, कार्यों की सूची लंबी होती जाती है, जो तनाव का कारण बन सकती हैं।

सावनी ने बताया कि इसी प्रकार मनोदशा में बदलाव होने लगे, व्‍यक्ति के अंदर उदासी आने लगे, उसके मूड में तेजी से बदलाव होने लगे, अचानक नाटकीय तरीके से मूड बदलना शुरू हो जाये, अत्‍यधिक चिड़चिड़ापन हो जाये तो भी ध्‍यान देने की आवश्‍यकता है। लोगो से कटे-कटे रहना शुरू कर देना भी एक प्रकार का संकेत है। यदि व्‍यक्ति अपने सामाजिक दायरे से खुद को अलग करना शुरू कर दे, किसी से मिलने या बात करने का मन ना करना, अकेले में रहने का मन करना या फिर जो काम पहले अच्छे लगते थे जैसे फिल्म देखना, घूमने जाना जिनमें उसे खुशी मिलती थी वह खुशी न मिलना, तो ऐसे में सावधान हो जाना चाहिये।

उन्‍होंने बताया कि अपने कामकाज में गिरावट आना भी एक संकेत है। अपने रोजमर्रा जिन्‍दगी के कार्यो व सामाजिक गतिविधियों के कामकाज में असामान्‍य तरीके से गिरावट आने लगे, जैसे बच्‍चे खेलना छोड़ दें, स्कूल में असफल होने लगे या बड़ों को भी जिन कार्यों को अच्‍छे से जानते हैं उन्‍हें करने में भी कठिनाई होने लगे, परफॉरमेंस में गिरावट, दोस्‍तों और सहकर्मियों के साथ संबंधों में कठिनाई महसूस करने लगें। किसी विषय पर सोचने में समस्‍याएं लगने लगे। व्‍यक्ति की एकाग्रता कम होने लगे, किसी चीज को याद करने में कमी आये, तर्क रखने, अपनी बात जो समझाना चाहते हैं उसे समझाने में कमी आये तो भी सावधान होने की जरूरत है। इसी प्रकार संवेदनशीलता में वृद्धि भी एक बड़ा संकेत है। व्‍यक्ति के अंदर देखने, सुनने, सूंघने या महसूस करने में संवेदनशीलता अगर बढ़ने लगे, उत्‍तेजना बढ़ाने वाली स्थितियों से बचने की कोशिश करना भी महत्‍वपूर्ण संकेत है।

सावनी ने आगे बताया कि जब व्‍यक्ति अपने को लोगों से कटा हुआ महसूस करना शुरू कर दे यानी यदि उसके अंदर अपने आप से या अपने आस-पास से अलग होने की एक अस्पष्ट भावना पैदा होने लगे, सच्‍चाई से दूर अजीब व्यवहार की भावना महसूस होने लगना भी इसके संकेत हैं। उन्‍होंने बताया कि व्‍यक्ति अपनी अतार्किक सोच – यानी  ऐसी बातें करना और उसका कारण देना जिसका कोई भी तर्क न हो, को बताने लगे, उदाहरण के लिए: ये मेरे विचार नहीं हैं, किसी और ने मेरे दिमाग में डाले हैं, सामने वाला मुझे कंट्रोल कर रहा है, बहुत से लोग यह मानते हैं कि अगर मैं काम करने से पहले 5 बार हाथ जोड़ूंगा तो पक्का है कि काम अच्छे से हो जाएगा। व्‍यक्ति के अंदर तेज घबराहट पैदा होना।  

सावनी बताती हैं कि यदि इस प्रकार के बदले व्‍यवहार दिखे तो घबराने की नहीं बल्कि ध्‍यान देने की जरूरत है, व्‍यायाम, मेडीटेशन, अच्‍छा साहित्‍य को अपनी दिनचर्या में स्‍थान दें, और यदि ऐसा करने से बदलाव न आये तो विशेषज्ञ से सम्‍पर्क स्‍थापित कर सकते हैं।

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