Wednesday , October 11 2023

जिम्‍मेदारों से आग्रह, स्‍कूल का खोलने का फैसला तभी लीजियेगा जब…

-तीसरी लहर में बच्‍चों के सर्वाधिक प्रभावित होने की आशंका जतायी जा रही

-‘सेहत टाइम्‍स’ के सुझाव पर संजय गांधी पीजीआई की विशेषज्ञ की सहमति

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

लखनऊ। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर का मंजर याद करके रूह कांप उठती है, अस्पतालों से लेकर श्मशान घाटों तक भीड़ दिमाग को शून्‍य किये दे रही थी। ऑक्‍सीजन से लेकर दवा तक की मारामारी, आपदा में लूट का अवसर तलाशते लोग। अनेक परिवारों में उनके प्रियजन देखते ही देखते काल के गाल में समाते जा रहे थे। ऐसे भयानक मंजर की यादें जहन में अभी धुंधली भी नहीं हुईं कि कोविड की तीसरी लहर की बात होने लगी और इसमें बच्‍चों के सर्वाधिक प्रभावित होने की संभावना जतायी जा रही है।

तीसरी लहर से निपटने को लेकर उत्तर प्रदेश में जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं। कोविड से निपटने की रणनीति के लिए विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन से प्रशंसा पा चुके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं इन तैयारियों की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। इसी क्रम में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी द्वारा बच्चों के लिए पृथक कोविड हॉस्पिटल भी बनाया जा रहा है। केजीएमयू द्वारा न सिर्फ अपने संस्थान में तैयारियां की जा रही हैं बल्कि प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेजों को इससे संबंधित वर्चुअल ट्रेनिंग देने का आयोजन भी किया गया है।

वर्चुअल ट्रेनिंग के अलावा चिकित्सकों, नर्सों को ऑफलाइन प्रशिक्षण देने के लिए लखनऊ और गौतम बुद्ध नगर स्थित केंद्रों पर प्रशिक्षण सत्र का आयोजन किया जा चुका है, इस प्रशिक्षण में गंभीर रूप से बीमार बच्चों व शिशुओं की चिकित्‍सा के लिए गहन चिकित्सा कक्ष यानी पीआईसीयू और एनआईसीयू में उपकरणों को चलाने, उनकी मॉनीटरिंग आदि की ट्रेनिंग दी गयी।

उपचार से बेहतर बचाव का फॉर्मूला

ये सभी तैयारियां बीमार होने पर बच्चों को इलाज देने के लिए की जा रहे हैं लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि‍ उपचार से अच्छा है बचाव यानी Prevention is better than cure तो क्यों न बच्चों को कोविड की तीसरी लहर से बचाने के लिए किये जाने वाले उपायों को अपना लिया जाए, जिससे उपचार की आवश्यकता ही न पड़े। जैसा कि बच्चों के केस बड़ी संख्या में आने के अनुमान के पीछे एक बड़ी वजह स्कूल खुलने पर बच्चों के संक्रमित होने की संभावनाएं बढ़ने को बताया गया है तो ऐसे में अगर स्कूल फिलहाल खोले ही न जाएं तो इसमें क्या हर्ज है। हालांकि सरकार या प्रशासन की ओर से स्‍कूलों को लेकर अभी कोई गाइडलाइंस नहीं आयी हैं, लेकिन चूंकि अब दूसरी लहर थम रही है, तो अनलॉकिंग की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है, ऐसे में यदि नीति निर्धारक स्‍कूल खोलने की बात सोचते हैं उस दशा में ‘सेहत टाइम्‍स‘ अपना मत व्‍यक्‍त कर रहा है।

यह सही है कि‍ बच्चों की पढ़ाई भी जरूरी है लेकिन पूरी सुरक्षा के साथ। क्‍योंकि पढ़ाई तो बाद में भी की जा सकती है हालांकि ऑनलाइन पढ़ाई तो चल ही रही है, स्‍कूल वालों को फीस मिल ही रही है, तो ऐसे में स्कूल खोलने को प्राथमिकता देकर बच्‍चों का अनमोल जीवन दांव पर लगाना कहां तक जायज ठहराया जा सकता है।

आखिर कितना पालन कर सकेंगे बच्‍चे?

सोच कर देखिए जब वयस्‍क लोग कोरोना के लिए बनी हुई गाइडलाइंस का पालन ठीक से नहीं कर पाते हैं तो बच्चों से कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि वह इसका शत-प्रतिशत पालन करेंगे। लंबे समय से घरों में रहने को मजबूर बच्चे स्‍कूल खुलने पर जब दोस्तों से मिलेंगे तो क्या कोविड प्रोटोकॉल का पालन कर सकेंगे। घर से स्कूल और वापस घर का सफर तय करने के लिए बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल के तथा प्राइवेट वाहनों से आते-जाते हैं इनमें चाहे वह बस हो, ऑटो हो या फिर साधारण रिक्शा। ऐसे में ये बच्चे इन वाहनों के चालकों, कंडक्टर के साथ ही उस वाहन के संपर्क में भी आएंगे तो ऐसे में बच्चों में संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ना स्वाभाविक है।

स्‍कूल लेंगे जिम्‍मेदारी ?

क्या यह संभव है कि वाहनों का प्रॉपर सैनिटाइजेशन हो, इन वाहनों को चलाने वाले ड्राइवर, रिक्‍शा वालों का टीकाकरण होना पहले से ही सुनिश्चित कर लिया जाये। कहने का अर्थ है घर से लेकर स्कूल तक जिन व्यक्तियों और जिन वस्तुओं के संपर्क में बच्चा आएगा उनसे संक्रमण न फैले, क्या इन सब बातों की जिम्मेदारी लेने के लिए स्कूल तैयार होंगे ? आपको याद होगा पिछली बार भी जब स्कूल खोले गए थे तब सभी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने और परीक्षा आदि के लिए आना तो आवश्यक बताया लेकिन संक्रमण होने से बचाने की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया बल्कि अभिभावकों से लिखवा लिया कि‍ वे अपनी जिम्मेदारी पर बच्चे को स्कूल भेज रहे हैं।

कम से कम 80 प्रतिशत टीकाकरण तक

डॉ पियाली भट्टाचार्य

अब सवाल यह उठता है की स्कूलों को बंद करके पढ़ाई का हर्ज कब तक किया जाए तो इसका सीधा सा जवाब है हर्ड इम्‍युनिटी के लिए जब तक कम से कम 80% लोगों को टीका न लग जाए। चूंकि उत्‍तर प्रदेश की आबादी ज्‍यादा है तो ऐसी स्थिति में सभी का जल्‍दी से जल्‍दी टीकाकरण हो इसके लिए इस टीकाकरण कार्यक्रम को और ज्यादा तेजी से चलाया जा सकता है, इसमें तेजी लाने के लिए मतदान केंद्रों की तर्ज पर जगह-जगह बूथ बनाए जा सकते हैं या फिर मौजूदा केंद्रों पर ही डबल स्‍टाफ लगाकर दो शिफ्ट में टीकाकरण का संचालन किया जा सकता है। इन दोनों ही व्‍यवस्‍थाओं में जो अतिरिक्त स्टाफ की आवश्यकता पड़ेगी उनमें नॉन टेक्निकल स्टाफ की आपूर्ति दूसरे विभागों के कर्मियों को लगाकर पूरी की जा सकती है।

डॉ पियाली ने जतायी सहमति

‘सेहत टाइम्स’ ने जब इस मत के बारे में संजय गांधी पीजीआई की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ पियाली भट्टाचार्य से उनकी राय पूछी तो वह इससे सहमत दिखीं, उनका कहना था कि‍ स्कूल खोलने जरूरी तो हैं, लेकिन उसी शर्त पर जब बच्चे के संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति का टीकाकरण हो जाए। उनका कहना है कि विदेशों में भी जहां स्‍कूलों को खोला गया वहां संक्रमण बढ़ने के बाद दोबारा बंद करने पड़ गये।

तो ऐसे में ‘से‍हत टाइम्‍स’ की मुख्‍यमंत्री सहित सभी नीति निर्धारकों से अपील है कि कृपया इन सुझावों पर गौर अवश्‍य कीजियेगा।