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जुकरबर्ग, बिल गेट्स, स्‍टीव जॉब्‍स ने अपने बच्‍चों को दूर रखा स्‍क्रीन से, तो हम क्‍यों नहीं

-मोबाइल का प्रयोग बच्‍चों के लिए कितना खतरनाक, कैसे मिले छुटकारा
-आईएमए के कार्यक्रम में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ निरुपमा ने दी जानकारी

 सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। बच्‍चों द्वारा मोबाइल का इस्‍तेमाल करने की समस्‍या धीरे-गंभीर होती जा रही है, इसे लेकर माता-पिता भी बहुत परेशान रहते हैं, इसलिए कम से कम इतना तो जरूरी है कि इसके इस्‍तेमाल को लेकर समय निश्चित किया जाना चाहिये। बच्‍चों के लिए स्‍क्रीन बहुत नुकसानदायक है, स्‍टडी यह कहती है कि माता-पिता को चाहिये कि वे अपने बच्‍चों को कम से कम पांच साल तक मोबाइल हाथ में न दें। पांच साल की उम्र के बाद भी मोबाइल-टैब-लैपटॉप-टीवी जैसी स्‍क्रीन वाली चीजों के इस्‍तेमाल की एक दिन में ज्‍यादा से ज्‍यादा एक घंटे की सीमा बांध दें।

यह जानकारी बाल रोग विशेषज्ञ व एडोल्‍सेंट हेल्‍थ एकेडमी लखनऊ की सचिव डॉ निरुपमा पाण्‍डेय मिश्रा ने रविवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ के तत्‍वावधान में आयोजित स्‍टेट लेवल रिफ्रेशर कोर्स एंड सीएमई प्रोग्राम में अपने सम्‍बोधन में कही।  उन्‍होंने कहा कि बच्‍चों के लिए स्‍क्रीन कितनी नुकसानदायक है इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है, कि फेसबुक बनाने वाले मार्क जुकरबर्ग, माइक्रोसॉफ्ट कम्‍पनी के मालिक बिल गेट्स, एपल के फाउंडर स्‍टीव जॉब्‍स जैसे टेक्‍नोलॉजी से जुड़े लोगों ने भी अपने बच्‍चों को 10 से 14 साल तक स्‍क्रीन से दूर रखा।

उन्‍होंने कहा कि इंटरनेट एडिक्‍शन शब्‍द 1996 से प्रचलन में आया है, इसमें इंडिया नम्‍बर एक पर है, यहां 82 प्रतिशत लोग इंटरनेट का इस्‍तेमाल करते हैं। इस समस्‍या से निपटने के उपाय के बारे में डॉ निरुपमा ने बताया कि आदर्श स्थिति तो यह है कि बच्‍चों को इन सभी चीजों से दूर रखें लेकिन अगर बच्‍चे को इसकी लत पड़ गयी है तो उन्‍हें इसका इस्‍तेमाल बिल्‍कुल न करने देना तो मुश्किल कार्य है लेकिन इतना जरूर है कि इसके इस्‍तेमाल का समय एक घंटा निर्धारित कर दें। यही नहीं इंटरनेट का इस्‍तेमाल करने वाली चीजों पर नजर भी रखें, कि बच्‍चा इसका क्‍या इस्‍तेमाल कर रहा है। पासवर्ड अपने पास रखें, समय-समय पर पासवर्ड बदलते रहें।

बच्‍चों को दें समय, घुमाने ले जायें

डॉ निरुपमा ने बताया कि माता-पिता को चाहिये कि वे बच्‍चों को घर से बाहर घुमाने ले जायें, उन्‍हें समय दें। उन्‍होंने कहा कि देखा गया है कि बहुत से माता-पिता अपने बच्‍चों को समय नहीं दे पाते हैं, इससे भी बढ़कर यह है कि बच्‍चे को बिजी रखने के लिए माता-पिता स्‍वयं ही मोबाइल जैसी चीजें बच्‍चे को पकड़ा देते हैं, जो बाद में लत का रूप ले लेती हैं। आउट डोर गेम के लिए माता-पिता के साथ ही स्‍कूल भी प्रमोट कर सकते हैं।

उन्‍होंने कहा कि मोबाइल की लत ज्‍यादा ही होने की स्थिति में इसके लिए केजीएमयू में डिएडिक्‍शन सेंटर खुला हुआ है, जहां पर काउंसलिंग कर‍के इस आदत को छुड़ाया जाता है। उन्‍होंने बताया कि नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्‍थ एंड न्‍यूरो साइंसेज (निमहेंस) ने सेफ एंड हेल्‍दी यूज ऑफ टेक्‍नोलॉजी (SHUT) क्‍लीनिक्‍स खोला है, इन क्‍लीनिक्‍स का अन्‍य स्‍थानों पर भी विस्‍तार किया जा रहा है।

लिंग संवेदीकरण पर भी दी जानकारी

कार्यक्रम में डॉ निरुपमा ने जेंडर सेंसिटाइजेशन यानी लिंग संवेदीकरण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि ग्‍लोबली देखा जाये तो विश्‍व में लिंग संवेदीकरण में भारत का स्‍थान 108वां है, यानी अभी भी हमारे देश में लिंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है। उन्‍होंने बताया कि इस भेदभाव को खत्‍म करने के लिए जहां लोगों की सोच में बदलाव किये जाने की जरूरत है वहीं लड़कों को बचपन से ही लड़का-लड़की की वैल्‍यू में भेदभाव नहीं करने के प्रति जागरूक करने की जरूरत है। उन्‍होंने कहा बच्‍चे घर में ही देखते हैं कि लड़कियों को कम महत्‍वू दिया जाता है, मां को कम महत्‍व दिया जाता है, तो लड़के के मन में यह बात बचपन से ही बैठ जाती है कि उसकी वैल्‍यू लड़कियों के मुकाबले ज्‍यादा है।

उन्‍होंने कहा कि पुरुषों को चाहिये कि वह इसका विशेष ध्‍यान दें, घर के कामों में अपनी पत्‍नी का हाथ बंटायें, उन्‍हें बराबरी का दर्जा दें, उन्‍हें सम्‍मान दें जिससे कि बच्‍चों विशेषकर लड़कों में भी यह भावना बचपन से जागृत रहे तभी हमारा समाज भी अच्‍छा बनेगा।