एक स्वस्थ संस्कार की तरह बचपन से नस-नस में भर देना होगा योग

Photo साभार हिंदुस्तान टाइम्स
लखनऊ। क्षेत्र चाहे जो हो उसकी तकनीक सीखने हम विदेश जाते हैं, अर्थव्यवस्था को पटरी पर बेहतर रखने के लिए हमें विदेश से सीख लेनी ही पड़ती है, इसके अलावा भी तरह-तरह की पढ़ाई के लिए हम विदेश जाते हैं, लेकिन योग और अध्यात्म ऐसी चीजें हैं, जिन्हें सीखने के लिए विदेशी भारत आते हैं। क्या कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है ? ऐसा इसलिए होता है कि भारतवर्ष की पहचान आध्यात्म और योग है, और यही वजह है कि यूनाइटेड नेशन ने वर्ष 2015 से योग के लिए विश्व स्तर पर एक दिन (21 जून) निर्धारित कर दिया. ऐसी स्थिति में तो भारतवासियों को योग से लाभ की मिसाल बनना पड़ेगा. दरअसल शरीर को तन और मन से स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्राकृतिक क्रियाओं का मिश्रण ही योग है, और अगर इसी योग को हम संस्कार का रूप देते हुए बच्चों को बाल्यावस्था से देना शुरू कर दें तो स्वस्थ और ऊर्जावान भारत होने से भला कौन रोक सकता है। चूंकि योग निरंतरता और अनुशासन मांगता है, ऐसी स्थिति में इसके सीखने और करने की जगह स्कूल से अच्छी कहीं नहीं हो सकती।

यह बात किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पैरामेडिकल संकाय के अधिष्ठाता प्रो0 विनोद जैन ने एक विशेष वार्ता में कही। प्रो जैन ने कहा कि वर्तमान में भी हम पीटी और गेम्स का पीरियड तो स्कूलों में रखते ही हैं, अगर अलग से संभव न हो तो इन्हीं पीरियड के समय में योग का समायोजन कर दें तो मेरा मानना है कि बड़े होने पर भी योग व्यक्ति की आदत में शुमार हो चुकेगा और वह स्थिति निश्चित रूप से बड़े बदलाव लायेगी। उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि योग का परिणाम स्वस्थ काया है तो ऐसे में इसे किसी धर्मविशेष से न जोड़कर अपने स्वस्थ शरीर के हित में देखना चाहिये, हालांकि लोग देख भी रहे हैं, लेकिन मेरा यह सुझाव उन लोगों के लिए है जो इसे धर्मविशेष से जोड़ कर देखते हैं।


उनका कहना है कि हमें भारत वर्ष की इस अमूल्य धरोहर का इस्तेमाल करने की जरूरत है। पश्चिमी सभ्यता से अपने को अपग्रेड करने वाले हम लोग आखिर अपने महान भारत की जीने की राह सिखाने वाले योग की महत्ता को कब समझेंगे? योग दरअसल जीने की कला है जिसमें तन और मन को स्वस्थ रखने के वे सारे तत्व मौजूद हैं जिन्हें हम अपनी व्यस्तता और आधुनिक जीवन शैली की भेंट चढ़ाने की गलती कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यूँ तो लोगों ने योग के कई लाभ सुने होंगे लेकिन मेरा मानना यह है कि कुछ चीजों की अच्छाइयों के बारे में समझने से ज्यादा महसूस करने से पता चलता है। और योग ऐसी ही विधा है कि जब तक हम योग को करेंगे नहीं, तब तक योग को समझ तो सकते हैं लेकिन उसके फायदे की अनुभूति नहीं कर सकते हैं।
