-स्कूल खोलने की खबरों के बीच अभिभावकों में गहरा रहीं चिंता की लकीरें
-पढ़ाई का हर्ज न हो, परीक्षा भी हो सकें, इसके लिए दूसरे रास्ते हैं न!
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। वैश्विक महामारी कोविड-19 के पंजे में फंसी दुनिया इससे बाहर आने की कोशिश में लगी है। भारत भी इससे अछूता नहीं है, यहां पर बीती 25 मार्च से शुरू हुआ लॉकडाउन अभी पूर्ण रूप से हट नहीं सका है। धीरे-धीरे सब कुछ लॉकडाउन से अनलॉक होने की तरफ जा रहा है, दुकानें खुल चुकी है, धर्मस्थल, मॉल भी 8 जून से खुल रहे हैं। इसके बाद आगे जुलाई से स्कूलों के भी खुलने की बात आ चुकी है, हालांकि इस पर अभी फैसला नहीं हुआ है।
दरअसल इस पर फैसला लेना आसान भी नहीं है, और अगर यदि किसी तरह से यह फैसला हां में आया यानी स्कूलों को खोलने पर निर्णय हुआ तो निश्चित रूप से सभी के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती होगा। इसे लेकर अभिभावकों में जबरदस्त खौफ है, जो कि स्वाभाविक भी है। दरअसल इस संक्रमण से बचाव में अभी तक जो सबसे कारगर हथियार साबित हुआ है वह है सोशल डिस्टेंसिंग यानी एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से दूरी, मास्क और सैनिटाइजर या साबुन-पानी से समय-समय पर हाथ धोना। इन निरोधात्मक उपायों का जिसने भी पूरी ईमानदारी से पालन किया वह बचा हुआ है, और जहां कहीं इससे चूक हुई है तो खामियाजा भी भुगता गया है।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इन तीनों निरोधात्मक उपायों का पालन स्कूल जाने के दौरान, स्कूल में और स्कूल से लौटते समय बच्चे कितना पूरा कर पायेंगे? एक क्लास में औसतन 50 बच्चे होना मान लिया जाये तो इन 50 बच्चों को क्या प्रॉपर सोशल डिस्टेंसिंग में बैठाने के लिए पर्याप्त जगह उसी क्लास में हैं? और अगर नहीं है तो क्या दूसरे कमरे हैं, क्योंकि गर्मी के दिन हैं, सूरज की गर्मी अपनी चरम पर होती है, बरसात हुई तो पानी की समस्या, ऐसे में खुले में भी बैठाने की बात भी स्कूल नहीं सोच सकते हैं।
इसके अतिरिक्त बच्चे जो महीनों बाद अपने सहपाठियों से मिलेंगे, जो हमेशा से साथ-साथ लंच करते आये हैं, एक-दूसरे की बोतलों से पानी पीना, एक-दूसरे के टिफिन को शेयर करना, साथ में खेलना जैसे अनेक एक्टिविटीज करने के आदी बच्चों से ईमानदारी से इस तरह के अनुशासन का पालन करने की उम्मीद कितनी की जा सकती है?
अब बात आती है इन बच्चों से ऐसा करवाने के लिए इन पर निगाह रखने की। क्या स्कूल के पास इतना स्टाफ है जो बच्चों पर नजर रख सके, कि वह पूरी तरह उपायों का पालन कर रहा है अथवा नहीं।
अभिभावकों के वे सवाल जो आजकल सोशल मीडिया पर चल रहे हैं…
-कौन सा स्कूल इन बच्चों की जान की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेगा?
-कौन सा स्कूल इन बच्चों को मास्क (वह भी ठीक से) पहनाकर रखेगा?? साबुन सैनिटाइजर का उपयोग बार-बार करवाऐगा?
-जब ये एक दिन की पिकनिक पर लापरवाही करते हैं, अपनी गपशप और फोन पर लगे रहते हैं तब रोज-रोज की फिजिकल डिस्टेंसिंग, मास्क, सैनिटाइजर ये बच्चे सम्भालेंगे, ऐसा सोचना हमारी नादानी होगी।
-दुर्भाग्यवश अगर कोई बच्चा कोरोना की चपेट में आ गया तो ये स्कूल वाले खबर लेने की कोशिश भी नहीं करेंगे।
-क्या ये बच्चों की जान की गारंटी लेंगे ?
-अधिकतर स्कूल तो बच्चों को हाथ कैसे धोना चाहिए अथवा दांतों पर ब्रश ठीक से कैसे करना है यह भी नहीं सिखाते हैं।
-स्कूल में लंच के पहले बच्चों को हाथ धोने की बात तक तो सिखाई नहीं जाती है??
– ये वायरस पहले स्कूली बच्चों में एक से दूसरे में फैलेगा,फिर बच्चा घर आकर घर के दूसरे बच्चों, माता पिता, फिर बुजुर्गों में इन्फेक्शन फैलाऐगा। और इस तरह से यह वायरस पूरे घर को अपने आगोश में ले लेगा।
-जुलाई का महीना बरसात के मौसम का प्रारंभ है, बारिश और उमस के कारण वायरस और बैक्टीरिया बड़ी तेजी से फैलते हैं, कोरोना का ये वायरस इस सीजन में कितना भयानक रूप लेगा ये अकल्पनीय है।
-क्या आपको लग रहा है कि कोरोना वायरस का संक्रमण कम हो रहा है?
-क्या आप ये मानते हैं कि कोरोना बच्चों पर रहम कर देगा ?
-क्या ऑटो, टेंपो पर लटकते हुए बच्चों में फिजिकल डिस्टेंसिंग रह पायेगी?
-क्या स्कूल बस कोरोना संक्रमण से अछूती रह सकती है?
-क्या स्कूल के टीचर, आया बाई, चपरासी, बस ड्राइवर, कंडक्टर, गार्ड सभी कोरोना टेस्ट में नेगेटिव साबित होने के बाद ही बच्चों के सामने लाए जायेंगे?
-एक-एक कक्षा में जहां 40-50-60 बच्चे होते हैं वहां क्या 1-1 मीटर की दूरी बनाए रखी जाएगी?
-क्या बच्चे इस दूरी का 8-9 घंटे पालन कर पाऐंगे?
-प्रार्थना स्थल पर तथा छुट्टी के समय जब बच्चे आपस में टकराते हुए निकलते हैं तब क्या यह दूरी बनाए रखी जा सकेगी?
-लगातार मास्क पहनने से शरीर में ऑक्सीजन की कमी (17%तक) देखी गई है, बच्चों को ऑक्सीजन की ज़रूरत हमसे ज़्यादा होती है, क्या बच्चे 8-9 घंटे मास्क लगा कर रह पाऐंगे?
-समय समय पर मास्क कैसे उतारना, पुन: कैसे पहनना, पानी पीने व टिफिन खाते समय मास्क कैसे हटाना, उसके बाद हाथ सैनिटाइजर से या सोप से कितनी देर तक कैसे धोना (रगड़ना) यह सब कौन बताएगा?
-क्या पहले से काम के बोझ में दबा शिक्षक/शिक्षिका या स्कूल प्रबंधन आपके पैसे से कोई नया कोरोना सुपरवाइजर नियुक्त करेगा?
-क्या बच्चे के इन्फेक्शन होने की अवस्था में स्कूल या शासन कोई जिम्मेदारी लेगा ?
-इलाज के लाखों रूपए में कितना हिस्सा स्कूल या शासन वहन करेगा ?
-कल को जब केसेस बढ़ेंगे, जो लगातार बढ़ रहें हैं, तब आपके गली मुहल्ले में होने वाली मौत आपको बच्चों समेत सेल्फ क्वाराईन्टिन को विवश कर देगी तब आपके बच्चे की पढ़ाई का साल और स्कूल में पटाई जा चुकी फीस का क्या होगा?
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
इस मसले को लेकर ‘सेहत टाइम्स’ ने एक्सपर्ट से भी बात की। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के प्रो. शैलेन्द्र सक्सेना, हेड, सी.फ़.ए.आर., जो कि नवीन कोरोनावायरस के साथ काम करने वाले प्रथम भारतीय वैज्ञानिक दल के सदस्य है, का कहना है कि निश्चित रूप से यह बड़ी चुनौती साबित होगा। उन्होंने कहा कि हालांकि मैं इस बात से भी सहमत हूं कि आखिर बच्चों की पढ़ाई को कब तक रोका जा सकेगा ? लेकिन इसमें मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि सर्वप्रथम तो बच्चे का कॅरियर भी तो तभी बनेगा जब बच्चा सुरक्षित रहेगा। इसके बाद भी अगर शिक्षा की सभी एक्टिविटी जरूरी हैं तो जितना संभव है, उसे ऑनलाइन किया जाये। इसके लिए टेक्नोलॉजी के सम्बन्ध में दूरदर्शन/TV की भी मदद ली जा सकती है।
डॉ शैलेन्द्र का कहना है कि अगर बच्चों की परीक्षाओं की बात करें तो जैसा कि सवाल उठता है कि परीक्षायें ऑनलाइन करने में दिक्कत है, पर्यवेक्षक की निगरानी में परीक्षा न होने से बच्चे की योग्यता का सही आकलन नहीं हो पायेगा, तो ऐस में इन परीक्षाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की भांति ऑब्जेक्टिव बेस्ड बनाया जा सकता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक से बढ़कर एक विशेषज्ञ मौजूद हैं, उन विशेषज्ञों की मदद से ऐसा प्रश्नपत्र तैयार करें और उसके लिए समयबद्धता निश्चित कर दें, यानी 90 प्रश्नों का उत्तर 60 मिनट में देने की अनिवार्यता तय कर दें। ऐसी स्थिति में परीक्षार्थी साथ में किताब भी लेकर बैठा होगा, तो भी इस टाइम फ्रेम में वह सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पायेगा, वह उत्तर तभी दे पायेगा जब उसके अध्ययन किया होगा, तो ऐसे में योग्य परीक्षार्थी ही सफल हो पायेंगे।
इस तरह से देखा जाये तो इस कोरोना काल का समय तो गुजारना ही है, और सुरक्षित रहते हुए गुजारना है, जाहिर है बच्चों सहित प्रत्येक नागरिक सुरक्षित रहे, यही सोच उत्तर प्रदेश सरकार के जिम्मेदारों की भी होगी, बच्चों के स्कूल खोलने पर अंतिम निर्णय सभी पहलुओं पर विचार करके ही लिया जायेगा, ऐसी ही आशा है।