जाने-माने बांझपन विशेषज्ञों के विचार ‘मंथन’ से निकली ‘अमृत’ सलाह
अजंता होप सोसाइटी ऑफ ह्यूमन रिप्रोडक्शन एंड रिसर्च के तत्वावधान में सीएमई आयोजित
लखनऊ। संतान उत्पत्ति में दिक्कत क्यों आये अगर इस पर समय रहते ही विचार कर लिया जाये। विशेषज्ञों का कहना है कि युवा सही उम्र में शादी करें और परिवार को पूरा करने की जिम्मेदारी निभायें, क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि ओवरी की सक्रियता समाप्त हो जाये क्योंकि कुदरत ने स्त्री के शरीर में एक निश्चित संख्या में ही अंडे दिये हैं। ये अंडे बढ़ती उम्र के साथ समाप्त हो जायेंगे। इसलिए जरूरी है कि युवा जोड़े इस बात का ध्यान रखें कि यदि उनकी 12 माह की कोशिश के बाद भी महिला गर्भधारण न कर पाये तो उन्हें बांझपन विशेषज्ञ से सम्पर्क करना चाहिये। यदि जोड़ों की उम्र 35 वर्ष से अधिक है तो 12 नहीं सिर्फ छह माह तक महिला के गर्भवती न होने की स्थिति में उन्हें विशेषज्ञ से मिलना चाहिये।
यह महत्वपूर्ण सलाह रूपी अमृत आज यहां होटल क्लार्क्स अवध में अजंता होप सोसाइटी ऑफ ह्यूमन रिप्रोडक्शन एंड रिसर्च के तत्वावधान में आयोजित एक सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में विशेषज्ञों के विचार मंथन में निकला। सीएमई में देश की जानी-मानी प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञों ने अपने-अपने अनुभव और रिसर्च को साझा करते हुए इस सीएमई में भाग लेने वाले लखनऊ और आसपास के करीब 250 स्त्री एवं महिला रोग विशेषज्ञों में बांटे।
डॉ गीता खन्ना ने अपने सम्बोधन में कहा कि अंडाशय के विफल होने की दो स्टेज होती हैं। पहली स्टेज में प्रारंभिक जीवन में विफल हो सकता है, जिसे प्री मेच्योर ओवेरियन फेल्योर (premature ovarian failure) कहा जाता है दूसरी स्टेज होती है जिसे रजोनिवृत्ति कहा जाता है। पहली स्टेज बहुत ही चिंता का विषय है कि अब 25-27 साल की उम्र वाली महिलाएं भी बांझपन की शिकार हो रही हैं। उन्होंने कहा कि संतान उत्पन्न करने वाले अंडे को तैयार करने के लिए बांझपन के विशेषज्ञ डॉक्टर स्त्री को हार्मोन्स दवायें देते हैं, इन दवाओं का सभी महिलाओं पर एक जैसा असर नहीं आता है जो कि चिंता का विषय है। किस हार्मोनल दवा का किस महिला पर क्या असर आयेगा, चिकित्सक के लिए यह जानना एक बड़ी चुनौती होती है।
उन्होंने बताया कि एएमएच और एएफसी जैसे विभिन्न मार्करों से ओवेरियन रिजर्व (ovarian reserve) के बारे में जाना जाता है। लेकिन कुछ महिलाओं की अनपेक्षित कमजोर प्रतिक्रिया पुअर ओवेरियन रेस्पॉन्स (poor ovarian response) के कारणों का इससे पता नहीं चलता है। इसके कारणों के बारे में उन्होंने बताया कि ऑपरेशन ऑफ ओवेरियन सिस्ट्स (operations of ovarian cysts) और एंडोमेट्रियोसिस, मधुमेह, धूम्रपान करने वालों, थैलेसीमिया, गुणसूत्र दोष, कुछ संक्रमणों, पोस्ट कीमो रेडियोथेरेपी, मोटापा, जीवन शैली और देर से विवाह करने वालों में यह पाया गया है।
अंडे प्रिजर्व करना हो सकता है एक विकल्प
डॉ गीता खन्ना ने बताया कि अगर बहुत ही आवश्यक है कि शादी देर से या फिर बेबी की प्लानिंग देर से करनी है तो ऐसी स्थिति में महिला के अंडे बैंक में रखने की सुविधा होती है। इन अंडों को बाद में संतान की उत्पत्ति के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि उनके पास ऐसे केस आते हैं जिसमें स्त्री अपने अंडे भविष्य के लिए सुरक्षित रखना चाहती हैं। उन्होंने बताया कि यह सुविधा पांच सालों के लिए होती है क्योंकि भारतीय कानून के हिसाब से पांच साल ही अंडों को बैंक में प्रिजर्व करके रखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि इन अंडों के रखरखाव को बहुत ही सुरक्षित और सावधानीपूर्वक किया जाता है। अंडों को क्राइवॉयल में लिक्युड नाइट्रोजन डालकर रखा जाता है तथा वॉयल को क्राइकैन में मार्किंग करके रखा जाता है, क्राइकैन की भी मार्किंग की जाती है। लिक्युड नाइट्रोजन को हर साल रिन्यू किया जाता है। उन्होंने बताया कि रखरखाव की इस प्रक्रिया में अत्यंत सावधानी की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया प्रिजर्व करने की यह सुविधा पुरुष के शुक्राणुओं के लिए भी अपनायी जाती है।
सीएमई का उद्घाटन मुख्य अतिथि महापौर संयुक्ता भाटिया और आरएमएल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के निदेशक प्रो दीपक मालवीय द्वारा संयुक्त रूप से किया। दिल्ली के विभिन्न विशेषज्ञों जैसे प्रोफेसर सुधा प्रसाद, डॉ गौरी देवी, डॉ पंकज तलवार, डॉ रूपाली बस्सी और मणिपाल के प्रोफेसर प्रताप कुमार ने इस मुद्दे पर बात की। इसमें भाग लेने वाले विशेषज्ञ प्रतिष्ठित संस्थान संजय गांधी पीजीआई, लोहिया संस्थान, कमांड हॉस्पिटल और केजीएमयू जैसे संस्थानों से थे। इस मौके पर डॉ चन्द्रावती, डॉ सरोज श्रीवास्तव, डॉ इंदु टंडन, डॉ एसपी जैसवार, डॉ प्रीती कुमार भी शामिल रहीं। प्रतिनिधियों और विशेषज्ञों के साथ खराब अंडाशय प्रतिक्रिया पुअर ओवरी रेस्पॉन्स (POR) के लिए नवीनतम रणनीतियों पर सत्र के अंत में एक पैनल चर्चा हुई।