आईएमए में लगा वर्ल्ड डायबिटीज डे के उपलक्ष्य में फ्री जांच शिविर
लखनऊ। जीवन शैली से लेकर खानपान तक अनेक कारणों से पिछले कुछ वर्षों से डायबिटीज ने अपने पांव तेजी से पसारे हैं। ऐसी स्थिति में यह जान लेना जरूरी है कि इस बीमारी से अपने परिवार को कैसे बचाया जा सकता है क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि जिन बच्चों के माता या पिता किसी एक को अगर डायबिटीज है तो बच्चे को डायबिटीज होने की आशंका 25 फीसदी है और अगर मां-बाप दोनों को डायबिटीज है तो बच्चों को होने की संभावना 50 फीसदी है। दरअसल डायबिटीज एक अनुवांशिक रोग है। इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिर हम बच्चों को डायबिटीज से बचा किस तरह सकते हैं। क्योंकि अगर देखा जाये तो यह बात कड़वी जरूर है लेकिन सत्य है कि बच्चों को हम डायबिटीज रोग प्लेट में रख देने का इंतजाम कर रहे हैं, इसलिए यह जानना जरूरी है कि आखिर वे क्या कारण हैं जिनसे डायबिटीज होने का खतरा हम जाने-अनजाने पाल रहे हैं।
यह बात इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की लखनऊ शाखा के अध्यक्ष प्रो सूर्यकांत ने आईएमए भवन में एसोसिएशन द्वारा लगाये गये फ्री डायबिटीज जांच एवं सलाह कैम्प के बाद पत्रकार वार्ता में कही। प्रो सूर्यकांत ने बताया कि विश्व डायबिटीज दिवस की इस साल और अगले साल की थीम ‘परिवार और डायबिटीज’ है। यानी डायबिटीज रोगी के परिवार को डायबिटीज से किस तरह से बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ने का कारण क्या है। उन्होंने बताया कि पिछले 30 साल से हमारा खानपान और जीवन शैली बदल गयी है, यानी बर्गर, पिज्जा जैसे फास्ट फूड खाने के शौकीन हो गये हैं। दूसरा कारण है मोबाइल, पिछले लगभग 20 साल से जब से मोबाइल आ गया है तब से बच्चों की सक्रियता कम हो गयी है अपने बच्चों को हम मोबाइल थमा रहे हैं जिससे उसकी भौतिक गतिविधि समाप्त सी हो गयी है जबकि पहले बच्चे कबड्डी, खो-खो, लुका-छिपी जैसे तमाम खेल होते थे जिनमें शरीर की कसरत अपने आप हो जाया करती थी। यहां तक कि गणित के पहाड़े भी बच्चों के ग्रुप में घूम-घूम कर बच्चे याद कर लिया करते थे।
तीसरा बड़ा कारण है तनाव, हम अपने बच्चों को बच्पन से ही तनाव देना शुरू कर देते हैं। चौथा कारण है कि अब हम लोग खुलकर हंसना, स्वस्थ मनोरंजन नहीं कर पाते हैं, अपने आप को हमने ऐसा रोबोटिक बना दिया है कि अपने और अपने परिवार के लिए खुशी के वे पल जिनमें ठहाके लगाकर, प्रफुल्लित रहते थे, जबकि ऐसे पल अब कितनी बार आते हैं, और पांचवां कारण है उगने वाला अनाज जो 40 वर्षों पहले गोबर की खाद के इस्तेमाल से पैदा होता था, अब केमिकलयुक्त खादों से उग रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले 40 वर्षों से अमेरिका जैसा देश ऑर्गेनिक खाद अपना रहा है और केमिकलयुक्त खाद पर टिक गये हैं।
उन्होंने बताया कि अगर शुरुआत से बात करें तो बच्चा जैसे ही मां के गर्भ में आता है उसी समय से अगर उचित ध्यान न रखा जाये तो भी डायबिटीज जैसे रोग शिशु को होने की संभावना रहती है। जैसे गर्भ ठहरते ही परिजन गर्भवती को जरूरत से ज्यादा आराम देना शुरू कर देते हैं, दूसरे शब्दों में अगर कहा जाये तो गर्भवती को छुई-मुई बना देते हैं, इसी प्रकार गर्भावस्था का समय जैसे-जैसे बढ़ता जाता है वैसे-वैसे महिला को इतना ज्यादा आराम दे दिया जाता है कि उसकी बच्चेदानी के आस पास की मसल्स ढीली नहीं पड़ पाती हैं नतीजा सिजेरियन से बच्चा पैदा होता है। डॉ सूर्यकांत ने कहा कि पहले आजकल की तरह दो-ढाई साल में बच्चे का स्कूल में एडमिशन नहीं करवाया जाता था लेकिन आजकल दो-ढाई साल की उम्र में ही एडमिशन करवा दिया जाता है यानी बच्चे का तनाव शुरू, उसके बाद माता -पिता उसे अच्छे नम्बरों से पास होने का तनाव देना शुरू कर देते हैं।
इस कैम्प का आयोजन आईएमए के साथ डायबिटीज सपोर्ट वेलफेयर सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। शिविर में आये हुए लोगों की शुगर की जांच रिपोर्ट देखकर डायबिटीज विशेषज्ञ व डायबिटीज सपोर्ट वेलफेयर सोसाइटी के सेक्रेटरी डॉ अरुण पाण्डेय ने उन्हें उचित सलाह एवं दवाएं दीं। कृष्णा होलिस्टिक लाइफ स्टाइल के अध्यक्ष एवं हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ राकेश सिंह ने जीवन शैली के महत्व को बताते हुए कहा कि कम से कम 30 मिनट तक रोज टहलना बहुत जरूरी है। इस मौके पर डॉ जगदीश, कृष्णा होलिस्टिक लाइफ स्टाइल के डॉ एसके श्रीवास्तव, संजय निगम, लायन संजय मेहरोत्रा, लायनेस रचना मेहरोत्रा, स्टेला सहित लायन्स और रोटरी क्लब के अनेक सदस्य भी उपस्थित रहे।