-संजय गांधी पीजीआई में कोरोना काल की दहशत के बीच निकाला मरीज को बचाने का रास्ता
-वाल्व के प्रत्यारोपण के लिए आमतौर पर की जाती है ओपन हार्ट सर्जरी

सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। परिस्थितियां चाहें जैसी हों, यदि इरादा बुलंद है तो आगे बढ़ने के रास्ते बन ही जाते हैं, कुछ ऐसा ही हुआ संजय गांधी पीजीआई में। यहां के कार्डियालॉजी विभाग में गुरुवार को एक 64 वर्षीय गंभीर मरीज को इंटरवेंशनल तकनीक से ट्रांसकैथेटर के जरिये हार्ट वाल्व प्रत्यारोपित किया गया, जबकि आम तौर पर वाल्व प्रत्योपण के लिए ओपन हार्ट सर्जरी करनी पड़ती है, जो कि जनरल कंडीशन ठीक न होने के कारण नहीं की जा सकती थी।
आपको बता दें कि अमूमन इस तरह के प्रत्यारोपण के लिए ओपेन हार्ट सर्जरी अपनाई जाती है, मगर मरीज की हालत गंभीर होने की वजह से कार्डियक इंटरवेंशनल तकनीक से न केवल मरीज का जीवन बचाया बल्कि अन्य चिकित्सकों के लिए प्रेरणा भी है कि वैश्विक महामारी की दहशत में भी बचाव के संसाधन अपनाकर गंभीर से गंभीर सर्जरी भी की जा सकती है।
यह सर्जरी करने वाले कार्डियोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रो.पीके गोयल ने बताया कि मरीज में हार्ट की मुख्य धमनी में ब्लॉकेज थी, जिसकी वजह से हार्ट पंप नहीं कर पा रहा था, पीछे के चैंबर पर दबाव बढ़ता है, इसकी वजह से मरीज की सांस लेने की प्रक्रिया अत्यंत क्षीण हो चुकी थी, ओपेन हार्ट सर्जरी की तमाम जटिलताएं मरीज के लिए मुफीद नहीं थीं, अंतत: इसमें कार्डियक इंटरवेंशनल तकनीक का निर्णय लिया गया।

उन्होंने बताया कि इस तकनीक में पैर की चौड़ी धमनी से करीब 3 सेमी व्यास का पाइप के माध्यम से ट्रासंकैथेटर वाल्व को मानव शरीर में प्रवेश कराते हैं और कंप्यूटर पर देखते हुये वाल्व को हार्ट में पहुंचा कर, पुराने वाल्व के स्थान पर पहुंचते हैं और पुराने वाल्व पर ही प्रत्यारोपित कर देते हैं, यह विशेष प्रकार का वाल्व होता है जो कि पुराने वाल्व में प्रवेश कर जाता है, अर्थात पुराने वाल्व को धमनी की दीवार में चिपककर, खुद सक्रिय अवस्था में आ जाता है। इस मरीज में नया वाल्व प्रत्यारोपित होने के कुछ देर बाद ही, वाल्व ने रिस्पॉन्स करना शुरू कर दिया है।
उन्होंने बताया कि मरीज, तेजी से ठीक हो रहा है। इस सर्जरी में सहयोगी रही डॉ.रूपाली खन्ना ने बताया कि यह प्रक्रिया गंभीर रोगियों के लिये जीवन दायिनी है, यह मरीज भी गंभीर हालत में था, गंभीर लक्षणों की वजह से बीते तीन सप्ताह से भर्ती था, सर्जरी उपरांत अब ठीक हो रहा है। उन्होंने बताया कि इंटरवेंशनल तकनीक में ओपेन या बाईपास सर्जरी जैसी समस्याएं नही आती हैं, इसमें रक्तस्राव भी नहीं होता है और बड़ा चीरा न लगने की वजह से ज्यादा दिन अस्पताल में भी नहीं रहना पड़ता है। हालांकि इस इंप्लांट की कीमत ज्यादा होती है, ये दो प्रकार के होते हैं एक 13 लाख और एक करीब 20 लाख का होता है।

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