-एफएसएसएआई ने जारी किया आदेश, एक मार्च से होगा प्रभावी
-विश्व को ट्रांस फैट मुक्त रखने का लक्ष्य निर्धारित किया डब्ल्यूएचओ ने
-हृदय रोग, हाईपरटेंशन, डायबिटीज, मोटापा आदि बीमारियां का खतरा
लखनऊ। अक्सर आपने देखा होगा होटलों-ढाबों आदि जगहों पर कढ़ाई में एक बार में डाला गया तेल कई-कई सामान बनाने के लिए बार-बार प्रयोग किया जाता है, बार-बार गर्म किये हुए तेल में बनी चीजें खाने से कार्डियो वेस्कुलर डिजीज़़, हाईपरटेंशन, डायबिटीज, मोटापा आदि बीमारियां होने का खतरा बढ़ता जाता है। इस पर लगाम लगाने के लिए अब एक नियम बनाया गया है जिसके तहत एक ही वनस्पति तेल का प्रयोग बार-बार नहीं किया जा सकेगा, ऐसा करना जुर्म होगा। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के सीईओ डॉ पवन अग्रवाल ने बताया कि अब होटल, रेस्टोरेंट, ढाबों आदि पर पहुंचकर उनके द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे तेल का नमूना लिया जायेगा और उसकी जांच की जायेगी। डॉ पवन अग्रवाल के अनुसार ऐसा करने से ट्रांसफैट की समस्या पर लगाम लगेगी।
इस नए नियम के अनुसार जो भी बड़े रेस्टोरेंट्स हर रोज 50 लीटर से ज्यादा कुकिंग ऑयल का इस्तेमाल करते हैं उनको अपना लेखा यानी रिकॉर्ड रखना होगा। इस रिकॉर्ड में बताया जाएगा कि उन्होंने तेल कहां से लिया, कितना इस्तेमाल किया है और कितना डिस्कार्ड किया, डिस्कार्ड किस एजेंसी को किया। गौरतलब है कि जो भी सरकारी एजेंसी इस्तेमाल किये हुए इस तेल को लेगी वह इसे बायोडीजल के लिए इस्तेमाल करेगी।
आपको बता दें कि ट्रांस फैट के कारण हर साल विश्व में करीब 5 लाख लोगों की मौत हो जाती है, यह संख्या भारत में 60 हजार है। इस खतरे को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2022 तक विश्व को ट्रांस फैट मुक्त रखने का लक्ष्य रखा है। संगठन का कहना है कि ट्रांस फैट के निर्माण के लिए हाइड्रोजन की सहायता ली जाती है जिससे कि वनस्पति तेल को ठोस किया जा सके और खाद्य तेलों का अपना जीवन बढ़ाया जा सके। यह कार्डियो वेस्कुलर के साथ-साथ अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ता जाता है।
इस बारे में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ अनिल श्रीवास्तव बताते हैं कि ट्रांस फैट दो प्रकार का होता है, प्राकृतिक ट्रांस फैट और कृत्रिम ट्रांस फैट। नेचुरल ट्रांस फैट जानवरों और उनसे मिलने वाले खाद्य पदार्थों में संतुलित मात्रा में मौजूद होता है, लेकिन यह हमारी सेहत पर न के बराबर प्रभाव डालता है। लेकिन अगर इसे कृत्रिम रूप से तैयार कर खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है तो वह नुकसानदायक होता है। यह पूछने पर कि वनस्पति तेलों में इसकी क्या भूमिका है, उन्होंने बताया कि अगर वनस्पति तेल में ट्रांस फैट मिलाया गया है तो वह तेल पहली बार खाया जाये तब भी नुकसान करेगा लेकिन अगर वनस्पति तेल में ट्रांस फैट नहीं मिलाया गया है लेकिन अगर बार-बार गरम किया जा रहा है तो इससे उसमें शामिल फैट का आकार बदल जाता है और फैट ट्रांस फैट में बदल जाता है जो कि नसों में चिपक जाता है और नसों में जमाव पैदा कर देता है। डॉ अनिल श्रीवास्तव बताते हैं कि ट्रांस फैट का प्रयोग पैक्ट फूड, फास्ट फूड आदि में इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि बहुत सी कंपनियां जो अपने खाद्य पदार्थ में ट्रांस फैट का इस्तेमाल करती है, वे लिख देती हैं।
आपको बता दें कि ट्रांस फैट के कारण हर साल विश्व में करीब 5 लाख लोगों की मौत हो जाती है, यह संख्या भारत में 60 हजार है। इस खतरे को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2022 तक विश्व को ट्रांस फैट मुक्त रखने का लक्ष्य रखा है। संगठन का कहना है कि ट्रांस फैट के निर्माण के लिए हाइड्रोजन की सहायता ली जाती है जिससे कि वनस्पति तेल को ठोस किया जा सके और खाद्य तेलों का अपना जीवन बढ़ाया जा सके। यह कार्डियो वेस्कुलर के साथ-साथ अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ता जाता है।
आपको बता दें कि कृत्रिम ट्रांस फैट इंडस्ट्रीज में प्रॉसेस किए गए वेजिटेबल और अन्य प्रकार के तेलों में पाया जाता है। ये सस्ते होते हैं और खाने को स्वादिष्ट बनाते हैं। ट्रांस फैट के चलते हृदय संबंधित बीमारी, हाइपरटेंशन, मोटापा और डायबिटीज की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। ट्रांस फैट केक, कुकीज, बिस्किट, क्रीम कैंडीज, फ़ास्ट फ़ूड, डोनट्स और क्रीम बेस्ड अन्य फूड आइटम में अधिक होता है।