Saturday , November 23 2024

जानलेवा संक्रमण से बचना है तो माहवारी में करें सैनेटरी नैपकिन्‍स का प्रयोग

सैनेटरी नैपकिन के प्रयोग के साथ ही उसका सही तरीके से डिस्‍पोसल भी बहुत आवश्‍यक 

वर्ल्‍ड मैन्‍स्‍ट्रुअल हाईजीन डे पर माहवारी को लेकर सेहत टाइम्‍स से डॉ गीता खन्‍ना की खास बातचीत

स्‍नेहलता

लखनऊ। अंजंता हॉस्पिटल एंड आईवीएफ सेंटर की निदेशक व आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ गीता खन्‍ना का कहना है कि मा‍हवारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसे असामान्‍य मानने की जरूरत नहीं है। उन्‍होंने कहा कि आज भी बहुत सी महिलाएं विशेषकर गांव में माहवारी के दौरान सैनेटरी नैपकिन का प्रयोग नहीं करती हैं जो कि बिल्‍कुल गलत है। नेशनल फैमिली हेल्‍थ सर्वे (एनएफएचएस) की 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार, देश की सिर्फ 48.5 प्रतिशत ग्रामीण और 77.5 प्रतिशत शहरी महिलाएं सैनिटरी नै‍पकिन इस्‍तेमाल करती हैं। अगर पूरे देश की बात करें तो सैनेटरी नैपकिन इस्‍तेमाल करने वाली महिलाओं का औसत 57.6 प्रतिशत है। डॉ गीता खन्‍ना का कहना है कि सैनेटरी नैपकिन का प्रयोग स्‍वच्‍छता के दृष्टिकोण से बहुत ही आवश्‍यक है क्‍योंकि स्‍वच्‍छता के अभाव में ही संक्रमण यानी इन्‍फेक्‍शन होने का डर रहता है जो‍ कि कभी-कभी मौत का कारण भी बन जाता है।

 

आपको बता दें कि पिछले दिनों महाराष्‍ट्र के अहमदनगर जिले में एक महिला की मौत टॉक्जिक शॉक सिंड्रोम के कारण हो गयी थी। जांच में पता चला कि महिला की बीमारी की वजह पीरियड्स के समय एक ही कपड़े को बार-बार इस्‍तेमाल करना था। यह बीमारी बैक्‍टीरिया के इन्‍फेक्‍शन से होने वाली एक घातक बीमारी है।

डॉ गीता खन्ना

 

विश्‍व माहवारी स्‍वच्‍छता दिवस के मौके पर माहवारी या पीरियड्स को लेकर महिलाओं के अंदर फैली भ्रांतियों को दूर करने के साथ ही उनके द्वारा बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में अंजंता हॉस्पिटल एंड आईवीएफ सेंटर की निदेशक व आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ गीता खन्‍ना ने माहवारी के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में ‘सेहत टाइम्‍स’ से खास बात की।

 

डॉ गीता खन्‍ना ने कहा कि माहवारी को असामान्‍य प्रक्रिया नहीं समझना चाहिये। युवतियों को मेरी सलाह है कि माहवारी को लेकर कोई भी दिक्‍कत होने पर अपनी मां से और चिकित्‍सक से जरूर बतायें। माहवारी के दौरान पैड या सैनेटरी पैड का प्रयोग करना बहुत आवश्‍यक है। पैड बदलते रहना चाहिये, प्रयोग किये हुए पैड का डिस्‍पोजल करते रहना चाहिये यानी जिस डस्‍टबिन में पैड डाला है उसे खाली करते रहना चाहिये और खास बात यह है कि माहवारी के दौरान रोज एक या दो बार नहाना जरूर चाहिये।

 

उन्‍होंने बताया कि 13 से 15 साल में शुरू होने वाली माहवारी 42, 45 और किसी-किसी को 50 साल की उम्र में बंद होती है। माहवारी के दौरान कुछ लोगों को कुछ समस्‍यायें आती हैं जिसे प्री मैन्‍सुरेशन सिन्‍ड्रोम कहते हैं। इन समस्‍याओं में शरीर फूला लगता है, मूड में बदलाव हो जाता है, चिड़चिड़ापन, घबराहट, अवसाद की फीलिंग होती है। डॉ गीता ने बताया कि कुछ महिलाओं को मीनोरेजिया यानी पीरियड का अनियमित रहना जैसे पीरियड ज्‍यादा आना, ज्‍यादा समय तक आना होता है जिसकी वजह से उनमें खून की कमी हो जाती है, और वह बहुत कमजोरी महसूस करती हैं।

 

डॉ गीता ने बताया कि जहां तक नॉर्मल और एब्‍नॉर्मल पीरियड की बात है तो अगर बहुत समय बाद पीरियड आये जैसे 35-40, 45 दिन या दो माह के बाद आ रहा है, या जल्‍दी-जल्‍दी 15-15 दिनों में आ जा रहा है तो यह स्थिति असामान्‍य कही जा सकती है ऐसे में उन्‍हें डॉक्‍टर की सलाह लेनी चाहिये।

 

प्रयोग किये हुए पैड के डिस्‍पोसल के बारे में डॉ गीता खन्‍ना ने कहा कि इसके लिए लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा देनी चाहिये कि पर्यावरण के दृष्टिकोण से पैड का निस्‍तारण बहुत आवश्‍यक है। उन्‍होंने क‍हा कि इसके लिए जरूरी है कि यूज किये पैड को पेपर में लपेटकर उसे अच्‍छी तरह से बंद करके ढक्‍कन वाली डस्‍टबिन में डालें, साथ ही पैड को संक्रमित होने से बचाने के लिए दिन में करीब चार बार पैड चेंज करना चाहिये।