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एनआईवी तकनीक से इस तरह बचायें रेस्पिरेटरी फेल्योर के रोगियों की जान : प्रो सूर्यकान्त

-क्रिटिकॉन 2024 के तहत केजीएमयू में आयोजित वर्कशॉप में यूपी-बिहार के 50 प्रतिभागियों ने लिया हिस्सा

सेहत टाइम्स

लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग द्वारा क्रिटिकॉन 2024 सम्मेलन के तहत एक सफल कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य स्वास्थ्य कर्मियों को नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन(NIV) के बारे में समझ और इसके उपयोगी ज्ञान को बढ़ाना था, जो कि टाइप 1 और टाइप 2 रेस्पिरेटरी फेल्योर के प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण तकनीक है। आपको बता दें कि शरीर में सुइयों-नलियों को डालकर इलाज करने वाले सामान्य वेंटीलेटर के एक हद तक विकल्प के रूप में जानी जाने वाली इस तकनीक में बिना चीरा लगाये मास्क जैसे उपकरणों के माध्यम से उपचार किया जाता है।

यह वर्कशॉप केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के ऑडिटोरियम हॉल में आयोजित हुई। क्रिटिकॉन 2024 का आयोजन इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन (ISCCM)-यूपी स्टेट शाखा और लखनऊ सिटी शाखा के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है।

केजीएमयू में आयोजित इस कार्यशाला का उद्घाटन केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर डॉ. सूर्यकांत ने किया। उन्होंने नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन का इतिहास से लेकर इसके उन्नत व्यावहारिक उपयोगों तक का अवलोकन प्रस्तुत किया। डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि वेंटिलेशन की रणनीतियाँ कैसे नेगेटिव प्रेशर वाली मशीनों से प्रगति करते हुए पोलियो महामारी में आयरन लंग्स के उपयोग तक पहुंचीं और फिर आधुनिक नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन तक विकसित हुईं। उन्होंने नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन (NIV) थेरेपी के संकेत, पूर्व आवश्यकताएं, लाभ और उसके उपयोग के बारे मे जानकारी दी।

डॉ. सूर्यकांत ने कहा कि पिछले दो दशकों में नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन ने रेस्पिरेटरी फेल्योर के रोगियों के इलाज में क्रांति ला दी है, और यह इमरजेंसी विभाग और आई सी यू में आने वाले रेस्पिरेटरी फेल्योर के रोगियों के लिए पहली पंक्ति का इलाज बन गया है। इनमें निमोनिया, सीओपीडी ऐ आर डी एस, अस्थमा और हार्ट फेल्योर जैसी बीमारियां शामिल हैं। NIV केवल उन्हीं गंभीर रेस्पिरेटरी फेल्योर वाले रोगियों में प्रभावशाली होती है जो अभी भी सचेत और सहयोगात्मक होते हैं। डॉ. सूर्यकांत ने उल्लेख किया कि यदि रोगी बेहोश या असहयोगी हो जाता है और NIV के 1 घंटे के उपयोग के बाद भी स्थिति बिगड़ती है, तो उसे इनवेसिव वेंटिलेशन पर शिफ्ट कर दिया जाना चाहिए।

इस कार्यशाला में रेस्पिरेटरी मेडिसिन के क्षेत्र के प्रसिद्ध विशेषज्ञों द्वारा सत्र आयोजित किए गए, जिनमें डॉ. संतोष कुमार, डॉ. राजीव गर्ग, डॉ. अजय वर्मा, डॉ. दर्शन बजाज, डॉ. आनंद श्रीवास्तव, डॉ. ज्योति बाजपेई, डॉ. अंकित कुमार, डॉ. अशोक कुमार सिंह, डॉ. अनिल कुमार सिंह, डॉ. मानसी गुप्ता और डॉ. हेमंत कुमार शामिल थे। कार्यशाला में प्रतिभागियों को प्रकार I और प्रकार II श्वसन विफलताओं में NIV के अनुप्रयोग पर गहन जानकारी प्राप्त हुई।

प्रतिभागियों को केजीएमयू और अन्य संस्थानों के अनुभवी फैकल्टी द्वारा संचालित कार्यस्थलों पर व्यावहारिक प्रशिक्षण लेने का मौका मिला। प्रशिक्षण स्टेशनों में मशीन सेटिंग्स, NIV की व्याख्या, इंटरफेस और मोड शामिल थे, जिससे प्रतिभागियों को नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन के सैद्धांतिक और प्रैक्टिकल दोनों पहलुओं की गहन समझ मिली। कार्यशाला में उत्तर प्रदेश और बिहार के विभिन्न चिकित्सा महाविद्यालयों के 50 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।

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