13 से दो दिवसीय साउथ-ईस्ट एशियन एकेडमी ऑफ स्लीप मेडिसिन के चौथे सम्मेलन में स्लीप डिस्ऑर्डर को लेकर बताये जायेंगे शोध के परिणाम
लखनऊ। बड़े-बड़े सेमिनार में भाग लेने वालों को झपकी लेते आपने बहुत बार देखा होगा, ड्राइवर को झपकी लगने से एक्सीडेंट की खबरें भी आपने पढ़ी होंगी। शरीर का निढाल रहना, हमेशा आलस्य से भरे हुए लोगों पर आपकी नजर जरूर गयी होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये लोग अपनी 8 घंटे की नींद पूरी नहीं करते हैं। इसलिए बड़ों को आठ घंटे और बच्चों के लिए 10 घंटे रोज की नींद आवश्यक है। नींद का कोई विकल्प नहीं है।
यह जानकारी आज यहां पल्मोनरी रोग विशेषज्ञ डॉ बीपी सिंह ने दी। डॉ सिंह ने कल से दो दिन आयोजित होने वाले साउथ-ईस्ट एशियन एकेडमी ऑफ स्लीप मेडिसिन के चौथे सम्मेलन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि हर वयस्क के लिए आठ घंटे की नींद बहुत आवश्यक है, लेकिन सच्चाई बहुत चौंकाने वाली है, करीब 93 प्रतिशत भारतीय आठ घंटे की नींद नहीं पूरी कर पाते हैं, यही नहीं सामान्य जनमानस और चिकित्सक भी ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया से अनभिज्ञ हैं। उन्होंने बताया कि यह सम्मेलन समाज के मध्यम एवं गरीब तबके में ऐसी ही बीमारियों के प्रति जागरूकता लाने के लिए आयोजित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि कम सोने के कारण ही एक्सीडेंट में 25 प्रतिशत मौतें होती हैं।
एक अमेरिकन सर्वे के अनुसार 93 प्रतिशत स्त्रियां, 83 फीसदी पुरुष ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया से ग्रस्त हैं लेकिन उनकी पहचान ही अभी तक नहीं हुई। उन्होंने बताया कि छह घंटे से कम की नींद से लकवे और दिल के दौरे का जोखिम बढ़ जाता है। इन बीमारियों के प्रति जागरूकता के लिए स्ंस्था SEAASM, गुड़गांव, सूर्या फाउंडेशन और मिडलैण्ड हेल्थकेयर लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में यहां लखनऊ में आयोजित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में इन संस्थाओं ने पिछले कई वर्षों से शोध कर रही हैं, संस्थाओं ने इन तथ्यों को मीडिया के समक्ष रखेंगी। इनमें से एक है कि स्लीप डिस्ऑर्डर के इलाज में दवाओं का प्रयोग, क्योंकि अभी तक इसका इलाज ऑपरेशन ही था लेकिन शोध के बाद बड़ी खबर यह है कि इसका इलाज दवाओं से भी किया जा सकता है। पत्रकार वार्ता में उपस्थित अन्य डॉक्टरों में डॉ हिमांशु गर्ग, सरस्वती डेंटल कॉलेज के शिक्षक डॉ अरविन्द त्रिपाठी, व बाहर से आये कई डॉक्टर उपस्थित रहे।
पत्रकार वार्ता में सिंगापुर जनरल अस्पताल के डॉ महेश बाबू ने कहा कि सामान्य बाल चिकित्सा आबादी का 1 से 6 फीसदी नींद सम्बन्धित बीमारियों से पीड़ित है। बच्चों के समूह में विभिन्न समस्यायें जैसे स्लीप एप्निया, एनरियसिस ( नींद में पेशाब निकल जाना), स्लीप टेरर आदि आम है लेकिन लोगों में जागरूकता की कमी है। उन्होंने बताया कि लगभग् 25 प्रतिशत बच्चे जो गंभीर निद्रा की बीमारी से पीड़ित हैं उनमें बहुत से बच्चों में बाद में एडीएचडी (ATTENTION DEFICIT HYPERACATIVITY DISORDER) पाया जाता है।
डॉ बीपी सिंह ने बताया कि दो दिवसीय इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में ज्ञान और शोध पर चर्चा होगी। 11 देशों के प्रसिद्ध वक्ताओं द्वारा इस बैठक में चर्चा की जायेगी। इनमें इन देशों के पांच सौ से अधिक प्रतिनिधि शामिल होंगे। संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रो डेविड व्हाइट, डॉ मीता सिंह, टोनी, लता कस्तूरी, ब्रिटेन के डॉ मिलिंद सोवानी, ऑस्ट्रेलिया से डॉ डेविड कनिंटन, डॉ एसएसके हेरंगानाहल्ली, सिंगापुर के डॉ महेश बाबू, स्वीडन के डॉ फरहान शाह, श्रीलंका से डॉ एनोमा, नेपाल से डॉ रमेश चोखानी और डॉ नीलेश साजपति के साथ ही एम्स नई दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर रणदीप गुलेरिया, डॉ राजा धर, डा दीपक तलवार भी शामिल होंगे।