प्री मेच्योर डिलीवरी, घर पर प्रसव के चलते आती हैं अनेक प्रकार की शारीरिक-मानसिक समस्यायें
बच्चों की न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के लिए डॉ राहुल का ‘ब्रेन रक्षक’ प्रोग्राम मील का पत्थर साबित होगा
लखनऊ/गोरखपुर। शिशु के जन्म के बाद का एक घंटा उसके लिए गोल्डन आवर कहलाता है। इसी पर उसका पूरा जीवन निर्भर करता है, इस दौरान बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनका ध्यान रखना जरूरी होता है अन्यथा उम्र भर के लिए बच्चे के अंदर शारीरिक, मानसिक कमजोरियां हो सकती हैं। प्री मेच्योर डिलीवरी या गांव में घर पर होने वाले प्रसव में ये दिक्कतें ज्यादा आती हैं। बच्चों में होने वाले न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसे ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी जैसी अनेक बीमारियां होने का एक कारण यह भी है। उदाहरण के लिए जन्म के बाद शिशु को रोना चाहिये लेकिन रोया नहीं, घर पर हुई डिलीवरी में अक्सर ऐसा हो जाता है कि ऐसी स्थिति में लोग सोचते हैं कि शहर चलकर डॉक्टर को दिखायेंगे। शहर में विशेषज्ञ तक पहुंचने में काफी समय लग जाता है, तब तक बच्चे के ब्रेन को प्रॉपर ऑक्सीजन न मिलने से उनमें अनेक विकार आ जाते हैं, अनेक बार मृत्यु तक हो जाती है। बच्चों में होने वाली मानसिक बीमारियों व अन्य न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के पीछे इस गोल्डन आवर का बहुत महत्व है।
यह बात गोरखपुर में निजी प्रैक्टिस करने वाली बाल रोग विशेषज्ञ डॉ ॠतु सहाय ने ‘सेहत टाइम्स‘ के साथ विशेष बातचीत में कही। डॉ ॠतु ने एमबीबीएस कटिहार (बिहार) से तथा डीसीएच और एमडी मुम्बई से किया। इसके अलावा दो साल वाडिया चिन्ड्रेन हॉस्पिटल में एनआईसीयू में काम किया है। उन्होंने कहा कि इस बच्चों की न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से निजात के लिए जहां हमें प्रॉपर इलाज उपलब्ध कराने की दिशा में सोचना होगा वहीं ऐसी बीमारियां आयें ही नहीं, इसके लिए भी कदम उठाने होंगे। हालांकि जेनेटिक कारणों से होने वाली न्यूरोलॉजिकल बीमारियों को न होने देने के लिए तो अभी काफी प्रयास किये जाने की जरूरत है लेकिन इन बीमारियों के लक्षण पता चलते ही उपचार की दिशा में कार्य करना शूरू हो जाये इसके लिए भी बीमारियों के प्रॉपर इलाज की दिशा में भारत विशेषशकर उत्तर प्रदेश में बहुत काम करने की जरूरत है।
उन्होंने बताया कि एसोसिएशन ऑफ चाइल्ड ब्रेन रिसर्च के संस्थापक डॉ राहुल भारत के ब्रेन रक्षक प्रोग्राम के बारे में जब से पता चला है तब से एक आशा की किरण जगी है। उन्होंने बताया कि मैंने उनकी लखनऊ में कॉन्फ्रेंस अटेन्ड की हैं तो उसमें सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी कि वह इन्टरेक्टिव कॉन्फ्रेंस थी, ऐसा नहीं था कि एक बंदा बोल रहा है, बाकी सुन रहे हैं। इसमें ग्रुप बनाकर एक टॉपिक पर सबके विचार जाने और फिर अपने बताये। मुझे पूरी उम्मीद है कि ‘ब्रेन रक्षक’ का कॉन्सेप्ट जो डॉ राहुल ला रहे हैं, वह बच्चों के इलाज में मील का पत्थर साबित होगा।
ज्ञात हो डॉ राहुल भारत ने चार फेज की रिसर्च के बाद ‘ब्रेनर रक्षक’ ट्रेनिंग प्रोग्राम तैयार किया है जिसका कोर्स करके पीडियाट्रीशियंस ऑटिज्म जैसी बच्चों की बीमारियों का सटीक उपचार कर सकते है। डॉ राहुल ने पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी की पढ़ाई कैंब्रिज यूके से की है। डॉ राहुल ब्रिटिश पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी एसोसिएशन के सदस्यऔर पीडियाट्रिक एपिलेप्सी ट्रेनिंग के ट्रेनर हैं। इसके अलावा इंटरनेशनल चाइल्ड न्यूरोलॉजी एसोसिएशन और रॉयल कॉलेज एंड पीडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ लंदन के सदस्य भी हैं।
14 वर्ष तक बच्चों को नहीं देना चाहिये मोबाइल फोन
डॉ ॠतु कहती हैं कि आजकल का समय और हम लोगों के समय में बहुत अंतर है, हम लोग धूप में खेलते थे, ऐसे-ऐसे खेल जिसमें शारीरिक श्रम होता था, शायद इसी वजह से हम लोग आजकल चल भी रहे हैं लेकिन आजकल बच्चे सिर्फ मोबाइल वाले खेलों में रहते हैं, यह मोबाइल, कम्प्यूटर, टीवी में ही बिजी रहते हैं। उन्होंने कहा कि मोबाइल इनके ब्रेन पर बहुत बुरा असर डाल रहा है। उन्होंने कहा कि मैंने तो अपने परचे पर भी सलाह लिखवा रखी है कि अपने बच्चे को 14 साल की उम्र तक मोबाइल फोन न दें।