लोहिया संस्थान के कैंसर विशेषज्ञ ने कहा 90 फीसदी मरीज आते हैं एडवांस्ड स्टेज में
लखनऊ। फेफड़ों का कैंसर अब भी मौत का एक बड़ा कारण है, भारत सहित अन्य विकासशील देशों में पुरुषों में जहां पहला, वहीं महिलाओं में फेफड़े का कैंसर तीसरा बड़ा मौत का कारण है। इसकी बड़ी वजह यह है कि फेफड़े के कैंसर के 90 प्रतिशत मामले एडवांस्ड स्टेज में पता चलते हैं। फेफड़े के कैंसर के रोगियों की मौत के आंकड़े की बात करें तो 1241601 फेफड़े के कैंसर के रोगियों में से 1098702 लोगों की मौत हो गयी।
यह बात डॉ राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ गौरव गुप्ता ने आज यहां आयोजित एक पत्रकार वार्ता में कही। उन्होंने बताया कि लखनऊ में फेफड़े के कैंसर की घटनाओं और कारणों में धूम्रपान, एस्बेस्टस, रेडॉन, वायु प्रदूषण और डीजल के धुएं के सम्पर्क में आने से फेफड़े का कैंसर होता है। उन्होंने कहा कि गरीब वर्ग हो या अमीर वर्ग, दोनों में ही ऱोग के एडवांस्ड स्टेज में पहुंचने का एक बड़ा कारण लापरवाही करना सामने आता है। उन्होंने बताया कि शुरुआत में व्यक्ति सोचता है कि अमुक परेशानी ऐसे ही हो गयी होगी, ठीक हो जायेगी, फिर कुछ दिन बाद वह उसके लिए होम्योपैथी, आयुर्वेदिक आदि इलाज करता रहता है। इससे भी ठीक न होने पर वह आसपास के डॉक्टर को दिखाता है और अगर डॉक्टर ने कह दिया कि अमुक जांच कराओ तो एक बार फिर वह टालता है कि शायद डॉक्टर ने जांच बेवजह लिख दी है, मुझे तो ऐसी दिक्कत नहीं महसूस होती है, इसके बाद भी ठीक न होने की स्थिति में वह अस्पताल विशेषज्ञ के पास पहुंचता है जहां उसका कैंसर डिटेक्ट हो पाता है।
उन्होंने बताया कि लेकिन मरीज इतने विलम्ब के बाद विशेषज्ञ तक पहुंचता है कि तब तक उसका कैंसर एडवांस्ड स्टेज में पहुंच जाता है। डॉ गुप्ता ने बताया कि इसी के स्थान पर अगर व्यक्ति शुरुआत में ही विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखा ले तो उसके बचने की संभावना प्रबल हो जाती क्योंकि शुरुआती स्टेज पर कैंसर को ठीक करना आसान है। डॉ गुप्ता ने फेफड़े क कैंसर का सही समय पर पता चलने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि लखनऊ में 10 में 9 मामले एडवांस्ड स्टेज में पता चलते हैं, इस अवस्था में उपचार केवल रोगी की उत्तरजीविता को बढ़ा सकता है, क्योंकि कैंसर मेटलाइज्ड होते हैं। फेफड़े के कैंसर की अनुशंसित जांचों में सीटी स्कैन, टिश्यू बायोप्सी और स्पटम साइटोलॉजी शामिल है। यदि शुरुआत में ही इस रोग का पता चल जाये तो उपचार विकल्पों से रोग का निदान हो सकता है।
डॉ गुप्ता ने बताया कि 30 से 35 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर के रोगी ऐसे पाये जाते हैं जो टीबी की दवा ले रहे थे, यानी उनके कैंसर के बारे में ज्ञात ही नहीं था। उन्होंने कहा कि होना यह चाहिये कि टीबी की दवा से जब एक माह-दो माह कुछ भी फायदा समझ में न आये तो विशेषज्ञ के पास जांच के लिए मरीज को ले जाना चाहिये ताकि जल्दी से जल्दी कैंसर का पता लग सके।
फेफड़े के कैंसर के लक्षण
-जुकाम ठीक नहीं होता या और बद्तर होता जाता है।
-बलगम में खून आना या भूरे रंग का स्पटम आना।
-सीने में दर्द जो गहरी सांस लेने या जुकाम के साथ और बुरा होता जाता है।
-खराश
-भूख नहीं लगना या वजन कम होना।
-जोर-जोर से सांस लेना और सांस नहीं आना।
-थकान, कमजोरी।
-बार-बार ब्रोंकाइटिस और निमोनिया होना।