केजीएमयू में आयोजित समारोह में उत्तर प्रदेश के पहले मरीज को चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री ने दवा खिलाकर की अभियान की शुरुआत
लखनऊ 10 अक्टूबर। टीबी का इलाज बीच में ही छोड़ने की गलती करने वाले मरीजों के लिए जीवन की अनमोल सौगात का शुभारम्भ उत्तर प्रदेश में आज से हो गया। मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) मरीजों के लिए यह दवा बड़ी सौगात इसलिए है क्योंकि लगभग पांच दशकों बाद टीबी की कोई दवा खोजी गयी है। लेकिन एक बार फिर एक चुनौती भी है कि इस दवा को नियमित रूप से छह माह खाना है, और अगर इसमें लापरवाही हुई तो फिलहाल दूसरी कोई दवा अभी नहीं है। इस लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वर्ष 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने की दिशा में यह दवा खास भूमिका निभाने वाली है।
2012 में तैयार दवा को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ट्रायल के बाद दी मंजूरी
टीबी के एमडीआर मरीजों के उपचार के लिए 2012 में खोजी गयी बिडाकुलीन BEDAQUILLINE नाम की दवा विश्व स्वास्थ्य संगठन के ट्रायल में खरी उतरने के बाद अब मरीजों को दी जानी शुरू कर दी गयी है। उत्तर प्रदेश में मरीज को यह पहली बार दी गयी और इसका गवाह बना किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय (केजीएमयू) का ब्राउन हॉल। यहां आयोजित एक समारोह में चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री डॉ महेन्द्र सिंह ने सीतापुर जनपद के एक मरीज को खिलायी।
पीएचडी मंत्री ने चिकित्सक की तरह किया विश्लेषण
पीएचडी किये हुए डॉक्टर महेन्द्र सिंह ने आज जिस अंदाज में इस दवा को लेकर टीबी रोग का जो विश्लेषण किया, वह काबिले तारीफ था। बिना लिखित भाषण पढ़े डॉ महेन्द्र के टीबी पर दिये भाषण में उन्होंने जिस प्रकार बारीकियां और आंकड़े प्रस्तुत किये उसके कायल केजीएमयू के कुलपति डॉ एमएलबी भट्ट भी हो गये, इसका जिक्र उन्होंने बाद में दिये अपने भाषण में भी किया। डॉ सिंह ने कहा कि आईएएस-आईपीएस से ज्यादा मेहनत डॉक्टर बनने में हैं, क्योंकि आईएएस-आईपीएस में चयन होने के लिए साल-दो साल की मेहनत काफी होती है लेकिन डॉक्टरी पढ़ने के लिए 12 साल कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। यही नहीं जिन्दगी भर नयी-नयी जानकारियों के लिए पढ़ते ही रहना पड़ता है।
एलोपैथी हो या होम्योपैथी जरूरी है सिम्पैथी
उन्होंने मरीज के इलाज के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि मरीज को ठीक होने के लिए एलोपैथी हो या होम्योपैथी लेकिन दवाओं के साथ जरूरत होती है सिम्पैथी की। उन्होंने कहा कि अब आवश्यक यह है कि टीबी के जो मरीज ठीक हो गये हों उन्हें एक समारोह में बुलाकर नये मरीजों से मिलवाने की जरूरत है क्योंकि जब वह ठीक हुए मरीजों को देखेंगे तो उनका इलाज के प्रति विश्वास और बढ़ेगा।
डॉ महेन्द्र ने चिंता जताते हुए कहा कि मैं देख रहा हूं कि एक तरफ टीबी के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है और दूसरी ओर यह भी दावा किया जाता है कि टीबी रोग ठीक हो जाता है। तो आखिर रोगी बढ़ क्यों रहे हैं और एमडीआर वाले रोगी मर हैं इसका अर्थ यह है कि कहीं न कहीं उपचार के प्रति गम्भीरता नहीं बरती जा रही है। उन्होंने कहा कि आज भी ग्रामीण इलाकों में अस्पताल हैं, स्वास्थ्य केंद्र हैं और वहां टीबी की दवा भी उपलब्ध है लेकिन वहां पहुंचने के बजाय मरीज निजी डॉक्टरों पर ज्यादा विश्वास दिखाते हैं।
सुबह जल्दी उठने के लिए रोचक कारण बताते हुए किया प्रेरित
डॉ महेंन्द्र सिंह ने स्वस्थ जीवन शैली अपनाने के लिए एक बहुत अच्छा उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान जब सामने आ जायें तो कम से कम व्यक्ति को उठकर खड़ा हो जाना चाहिये लेकिन बहुत से लोग हैं जो नहीं करते हैं। इसे और खुलकर बताते हुए उन्होंने कहा कि भगवान सूर्य के सुबह उगने से पूर्व लोगों को जाग जाना चाहिये और उनकी अगवानी करनी चाहिये। ऐसा करेंगे तो आधी से ज्यादा बीमारियां इससे ही दूर हो जायेंगी। उन्होंने कहा कि लोगों को चाहिये चार सहजन के पत्ते, चार मीठी नीम, लहसुन रोज खायें तो देखिये बीमारियां आपके पास फटकेंगी नहीं। उन्होंने बताया कि आयुष्मान भारत योजना में इसकी व्यवस्था है कि ठीक होने के बाद अपनी दिनचर्या कैसी रखें जिससे स्वास्थ्य लाभ हो।
पीएचडी वाले मंत्री ने किया चिकित्सक की तरह विश्लेषण
कुलपति प्रो भट्ट ने अपने सम्बोधन में कहा कि चिकित्सा शिक्षा राज्यमंत्री डॉ महेंन्द्र सिंह पीएचडी वाले डॉक्टर जरूर हैं लेकिन उनका टीबी रोग के प्रति ज्ञान और आंकड़ों का वर्णन वाकई प्रेरणायोग्य है। यह उनके अपने कार्य के प्रति समर्पण भाव को दिखाता है कि वे जिस विभाग से जुड़े हैं उसकी तकनीकी बातों का भी ज्ञान रखते हैं। उन्होंने कहा कि मेरी यह अपील है कि 1960 के दशक के बाद मिली इस दवा के सेवन के प्रति सतर्कता, सावधानी यानी नियमित सेवन बहुत जरूरी है क्योंकि अगर इस दवा से व्यक्ति रेसिस्ट हो गया तो इससे बेहतर दवा तो अभी मौजूद ही नहीं हैं यानी कि एमडीआर की एक और स्टेज तैयार हो जायेगी।
मरीज के दवा खाने की मॉनीटरिंग जिला क्षय रोग अधिकारी के जिम्मे
टीबी कंट्रोल की उत्तर प्रदेश की टास्क फोर्स के चेयरमैन और केजीएमयू की पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो सूर्यकांत ने इस अवसर पर कहा कि नयी दवा BEDAQUILLINE के बारे में आपको बता दें कि इस दवा के डिब्बे में एक मरीज के हिसाब से दवायें हैं, इसमें 188 गोलियां हैं जो कि छह माह तक चलेंगी। उन्होंने बताया कि इस दवा को मरीज को नियमानुसार खाना है। मरीज दवा खाये इसके लिए जब यहां केजीएमयू में दवा दी जायेगी उस समय मरीज को 15 दिनों तक भर्ती करके दवा खिलायी जायेगी उसके बाद उस मरीज के जिले के जिला क्षय रोग अधिकारी को मरीज का पूरा विवरण इस आशय से भेजा जायेगा कि वे मरीज के नियत समय पर एमडीआर टीबी के खात्मे के लिए दी जाने वाली दवाओं का सेवन कराना सुनिश्चित करेंगे।
पांच दशकों बाद मिली है दवा, इसका सेवन नियमित किया जाना जरूरी
केजीएमयू से डॉक्टरी पढ़े विधायक डॉ हरेन्द्र सिंह भी इस मौके पर मौजूद रहे। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि पांच दशक के लम्बे अंतराल के बाद टीबी की दवा मिली है, एमडीआर वाले मरीजों में इसका उपयोग नियमित रूप से होना जरूरी है, इसे खाने वाले मरीज अपना कोर्स पूरा जरूर करें यह सुनिश्चित होना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि यूएस पेटेंट इस दवा की अमेरिका में कीमत 20-25 लाख रुपये है जबकि यहां भारत में इसे सरकार 60 से 70 हजार रुपये में खरीद रही है लेकिन मरीज को यह बिल्कुल फ्री में उपलब्ध करायी जा रही हैं। इस मौके पर राज्य क्षय रोग नियंत्रण अधिकारी डॉ संतोष गुप्ता, मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ नरेन्द्र अग्रवाल, डीन मेडिसिन प्रो मधुमती गोयल, केजीएमयू के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ एसएन संखवार सहित अनेक फैकल्टी और विभागाध्यक्ष के साथ ही छात्र-छात्रायें भी उपस्थित रहे।