-आर.एन.टी.सी.पी. हुआ एन.टी.ई.पी.
-अब टीबी पर सिर्फ कंट्रोल नहीं, इसके एलिमिनेशन पर निशाना
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी को भारत से 2025 तक समाप्त करने के लिए तेजी से कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। दुनिया ने टीबी को समाप्त करने के लिए भले ही 2030 का लक्ष्य रखा है लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत से इसे 2025 तक समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। इस संबंध में देश भर में चलाए जा रहे अपने प्रोग्राम रिवाइज्ड नेशनल ट्यूबरकुलोसिस कंट्रोल प्रोग्राम (आरएनटीसीपी)को बदल कर इसका नाम नेशनल ट्यूबरकुलोसिस एलिमिनेशन प्रोग्राम (एनटीईपी) कर दिया है। जैसा कि नाम से ही जाहिर है पुराने और नए नाम में कंट्रोल की जगह एलिमिनेशन किया गया है, यानी अब टीबी पर सिर्फ नियंत्रण नहीं बल्कि टीबी को मिटाना है।
भारत सरकार द्वारा लिये गये इस फैसले की जानकारी देते हुए टीबी टीबी एसोसिएशन ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, टीबी नियंत्रण के लिए गठित नेशनल टास्क फोर्स की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, उत्तर प्रदेश ट्यूबरकुलोसिस स्टेट टास्क फोर्स के चेयरमैन व किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पल्मोनरी विभाग के विभागाध्यक्ष व डॉ सूर्यकांत ने बताया कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के विशेष सचिव संजीव कुमार की ओर से राज्यों को भेजे गए पत्र में यह जानकारी देते हुए कहा गया है कि भारत सरकार ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी के 2025 तक खात्मे को लेकर प्रतिबद्ध है। पत्र में कहा गया है कि अब इस लक्ष्य को प्राप्त करने में 5 साल का समय बचा है, इसी को देखते हुए अब इस प्रोग्राम का नाम बदल दिया गया है।
ज्ञात हो टीबी नियंत्रण के लिए भारत में पहली बार कार्यक्रम 1962 में लागू किया गया था, जिसका नाम राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीपी) रखा गया था। 30 वर्ष बाद 1992 में इस कार्यक्रम की समीक्षा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा की गयी। इस समीक्षा के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत के इस क्षय नियंत्रण कार्यक्रम को असफल घोषित कर दिया गया था। इस समीक्षा के बाद वर्ष 1993 में भारत सरकार ने रिवाइज्ड नेशनल ट्यूबरकुलोसिस कंट्रोल प्रोग्राम शुरू किया था। इसका प्रभाव भी देश में काफी देखने को मिला, लेकिन वर्तमान में क्षय रोग में कमी की दर 1.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष है। अगर इसी दर से क्षय रोग में गिरावट आयी तो वर्ष 2181 में टीबी को भारत से समाप्त किया जा सकेगा।
डॉ सूर्यकांत ने बताया कि टीबी की इस गिरी हुई दर को रफ्तार देने के लिए भारत सरकार द्वारा कई नये कार्यक्रम व नीतियां लायी गयी हैं। इनमें से प्रमुख था टीबी नोटिफिकेशन को मजबूत बनाना। ज्ञात रहे टीबी को वर्ष 2012 में नोटिफाइबल डिजीज घोषित किया गया था लेकिन इसका प्रभावी ढंग से नोटिफिकेशन 19 मार्च 2018 के बाद लागू हुआ जब नये नोटिफिकेशन में कहा गया कि अगर टीबी का नोटिफिकेशन किसी चिकित्सक, पैथोलॉजी या फार्मासिस्ट द्वारा नहीं किया गया तो उसे वित्तीय जुर्माना व दो वर्ष की सजा भी हो सकती है।
उन्होंने बताया कि नये नोटिफिकेशन का प्रभाव यह हुआ कि जो 11 लाख टीबी से ग्रसित लोग नोटिफाइड नहीं थे, उनमें पिछले डेढ़ वर्ष में साढ़े पांच लाख रोगियों का नोटिफिकेशन कर लिया गया है। लगभग 10 से 15 प्रतिशत टीबी के रोगी टीबी का उपचार बीच में ही छोड़ देते थे, लेकिन 1 अप्रैल 2018 से लागू टीबी पोषण योजना (जिसमें टीबी के रोगी को इलाज के दौरान 500 रुपये प्रतिमाह दिये जाते हैं) के कारण अब रोगी बीच में उपचार नहीं छोड़ रहे हैं। इसी प्रकार विगत डेढ़ वर्षों से सक्रिय टीबी अभियान बहुत तेजी से चलाया गया जिसके कारण दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले टीबी के रोगियों का पता लगाया जा सका। इसी क्रम में टीबी के इस राष्ट्रीय प्रोग्राम का नाम बदलना माना जा रहा है।