-आईएमए की 11 को रही हड़ताल की निंदा की आयुष चिकित्सकों ने, आम जनता को देंगे नि:शुल्क चिकित्सा परामर्श
-विश्वस्तरीय सर्वश्रेष्ठ डिग्री एफआरसीएस, एमआरसीपी करने वाले कई चिकित्सक भी थे आयुर्वेद ग्रेजुएट
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। भारत सरकार द्वारा आयुर्वेद में स्नातकोत्तर चिकित्सकों को सर्जरी का अधिकार दिए जाने का विरोध कर रहे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा कल 11 दिसंबर को की जाने वाली 12 घंटे की होने वाली हड़ताल पर आयुष चिकित्सक संगठनों ने विरोध जताते हुए इसकी घोर निंदा की है। साथ ही कहा है कि आयुष चिकित्सक 11 दिसंबर को आम नागरिकों के लिए नि:शुल्क चिकित्सा परामर्श के लिए कृत संकल्प है। आयुर्वेद चिकित्सकों का कहना है कि सर्जरी के जनक आयुर्वेद विधा के सुश्रुत थे इसलिए आईएमए का यह दावा पूरी तरह गलत है कि यह ऐलोपैथी की देन है। ऐलोपैथ चिकित्सकों द्वारा सर्जरी को एलोपैथी के लिए आरक्षण करने की मांग पर चिकित्सकों ने कहा है कि सर्जरी को आरक्षण नहीं, बल्कि काबिलियत से हासिल करें।
विश्व आयुर्वेद परिषद, नीमा तथा वॉयस ऑफ आयुर्वेदा की ओर से कहा गया है कि आईएमए का विरोध गलत है, आयुर्वेद के उन्हीं चिकित्सकों को यह अधिकार दिया गया है जिन्होंने सर्जरी में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की है। ज्ञात हो सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआईएम) द्वारा आयुर्वेद के स्नातकोत्तर छात्रों को प्रशिक्षण के बाद कुछ सर्जरी करने की अनुमति सम्बन्धी अधिसूचना जारी की जा चुकरने के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने विरोध का बिगुल फूंका हुआ है, इसके तहत 8 दिसम्बर को दो घंटे का सांकेतिक विरोध करने के बाद अब कल 11 दिसम्बर को 12 घंटे का कार्य बंद करने की तैयारी है। हालांकि इस दौरान इमरजेंसी और कोविड सेवाओं को जारी रखने की घोषणा की गयी है।
विश्व आयुर्वेद परिषद के अध्यक्ष डॉ अजय दत्त शर्मा ने कहा कि पूर्व में चिकित्सा की उच्चतम डिग्री एफआरसीएस और एमआरसीपी होती थी, इसमें चयन के लिए एक इंटरनेशनल परीक्षा होती थी जिसे कोई भी मेडिकल ग्रेजुएट दे सकता था। आयुर्वेदिक कॉलेज से पढ़े हुए लोग जिनकी उपाधि कभी बीएमबीएस रही कभी बी ए एम एम एस रही और अब बीएएमएस है।
उन्होंने कहा कि एक आयुर्वेदिक सर्जन बनारस बीएचयू के मेडिकल इंस्टिट्यूट के डॉक्टर के एन उडुपा सारी दुनिया में ख्याति प्राप्त की। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और पद्म विभूषण जैसे आभूषणों से नवाजा। उन्होंने ग्लोबल सर्जन जैसी ख्याति प्राप्त की उनकी बेसिक क्वालिफिकेशन आयुर्वेद अलंकार एफआरसीएस थी ध्यान रहे उस जमाने में गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार के द्वारा आयुर्वेद अलंकार उपाधि दी जाती थी आयुर्वेद के स्नातकों को उस समय तक एफआरसीएस और एमआरसीपी अध्ययन करने के लिए सारी दुनिया में क्वालीफाइंग एग्जामिनेशन होता था और उस एग्जामिनेशन में बैठने के लिए किसी पैथी के institutional Trend स्नातक को परमिशन थी। बाद में दुनिया के लोगों ने शोर मचाया बाद में योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि आरक्षण के नाम पर इस उपाधि का भी आरक्षण पर लिया गया।
डॉ बरमानी जो प्रथम प्रधानाचार्य हैं लखनऊ स्टेट आयुर्वेदिक कॉलेज के, वह भी आयुर्वेद अलंकार एमआरसीपी थे। लखनऊ में श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल के लंबे समय तक सीएमएस रहे डॉक्टर चंद्रा भी आयुर्वेद ग्रेजुएट थे और उन्होंने बाद में कोलकाता मेडिकल कॉलेज से एमडी किया था। ऐसे अनेकों उदाहरण आजकल के बीते कल में मौजूद है। डॉ शर्मा ने कहा कि हमारे ऐलोपैथी के मित्रों को आरक्षण के स्थान पर खुले में योग्यता के आधार पर सर्जरी की प्रतियोगिता में भाग लेना चाहिए और भारत सरकार के इस निर्णय को जो स्वागत योग्य है उसका स्वागत करना चाहिए अपने स्वार्थों के स्थान पर आम जनता के भले के लिए घर-घर तक झोपड़ी झोपड़ी तक गरीब लोगों तक आम लोगों तक सस्ते में सर्जरी, गुणात्मक और संख्यात्मक दोनों तरफ से विचार कर सम्यक निर्णय लेना चाहिए।