गलत रिपोर्ट से मानव जीवन को खतरे में डालने और योग्यताधारकों के हक को बरकरार रखने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
उच्चतम न्यायालय ने पैथोलॉजी जांच और उसकी रिपोर्ट देने के लिये आवश्यक डिग्री या डिप्लोमाधारक डॉक्टर की अनिवार्यता वाले अपने पूर्व के आदेश पर कायम रहते हुए इस पर पुनर्विचार करने से इनकार करते हुए पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है।
यह जानकारी देते हुए याचिकाकर्ता गुजरात एसोसिएशन ऑफ पैथोलॉजिस्ट्स एंड माइक्रो बायोलॉजिस्ट्स के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र लालानी ने बताया कि बीती 10 जुलाई को उच्चतम न्यायालय ने नॉर्थ गुजरात यूनिट ऑफ सेल्फ एम्प्लॉयड ओनर्स (पैरामेडिकल) ऑफ प्राइवेट पैथोलॉजी लैबोरेटरीज ऑफ गुजरात की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए अपने 12 दिसम्बर, 2017 के फैसले को बरकरार रखा है। आपको बता दें कि इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पैथोलॉजी रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिश्नर यानी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में पंजीकृत चिकित्सक होना अनिवार्य है। इसके लिए चिकित्सक के पास MBBS के साथ MD अथवा DNB अथवा DCP की योग्यता आवश्यक है।
ज्ञात हो कि जगह-जगह खुले पैथोलॉजी सेंटर जिनमें मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के विपरीत लैब टैक्नीशियन मरीजों की रिपोर्ट तैयार कर उस पर दस्तखत करते हैं। जबकि देखा जाये तो किसी भी रोग के चिकित्सक के लिए पैथोलॉजी की रिपोर्ट उपचार का आधार होती है, ऐसे में पैथोलॉजी की सही रिपोर्ट की अनिवार्यता कितनी आवश्यक है यह समझना मुश्किल नहीं है। अभी तक होता यह आया है कि पैथोलॉजी जांच से सम्बन्धित मशीन खरीद कर दुकान खोल कर बैठे टेक्नीशियन मशीन के आधार पर आयी रिपोर्ट को अंकित कर (कभी-कभी मनचाही) रिपोर्ट तैयार कर देते है। इसका नतीजा यह होता है कि अनेक बार रिपोर्ट गलत भी हो जाती है क्योंकि कुछ रिपोर्ट तैयार करते समय जिस चिकित्सक से मरीज उपचार करा रहा है, उसके साथ मंत्रणा भी करनी पड़ती है।
इस महत्व को समझकर ही सुप्रीम कोर्ट ने नॉर्थ गुजरात पैथोलॉजिस्ट्स एसोसिएशन एवं अन्य की याचिका पर दिसम्ब्र 2017 में ही यह आदेश दिए थे कि पैथोलॉजी जांच रिपोर्ट पर हस्ताक्षर मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया से पंजीकृत डॉक्टर को ही दस्तखत करने की इजाजत है. लेकिन जानकारों का कहना है कि एक मोटे अनुमान के अनुसार औसतन सिर्फ 20 प्रतिशत पैथोलॉजी ऐसी हैं जिनमें रिपोर्ट आवश्यक योग्यता रखने वाले यानी एमसीआई पंजीकृत पैथोलोजिस्ट तैयार करते हैं, जबकि 80 प्रतिशत रिपोर्ट पर दस्तखत अपात्र लोग तैयार करते हैं.
क्या कहती है महाराष्ट्र एसोसिएशन
इस बारे में याचिकाकर्ताओं में से एक महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ प्रैक्टिसिंग पैथोलॉजिस्ट्स एंड माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स अध्यक्ष डॉ संदीप यादव का भी कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय हम लोगों के पक्ष में आया है जो कि आम मरीज की भलाई के लिए है। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में करीब 10000 पैथोलॉजी ऐसी चल रही हैं जिन्हें लैब टेक्नीशियन चला रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार इनके खिलाफ कोई काररवाई नहीं कर रही हैँ, जबकि इनमें 70 प्रतिशत पैथोलॉजी शहरी क्षेत्रों में चल रही हैं। उन्होंने बताया कि ऐसी लेबोरेटरी को चिन्हित करने के लिए सर्वे करने को स्टेट मेडिकल एजूकेशन एंड ड्रग्स डिपार्टमेंट द्वारा सभी जिला कलेक्टरों और म्यूनिस्पिल कमिश्नर्स को 16 सितम्बर, 2017 को पत्र जारी किया गया था लेकिन 9 माह बाद भी सरकार तक रिपोर्ट नहीं दाखिल की गयी है। उन्होंने बताया कि इस कारण गलत रिपोर्ट, गलत डायग्नोसिस और गलत उपचार अथवा देर से उपचार का खामियाजा मरीज को भुगतना पड़ता है।
डॉ यादव ने यह भी आरोप लगाया है कि लेबोरेटरी टेक्नीशियंस महाराष्ट्र सरकार और जिला प्रशासन को भ्रमित कर रही है कि सुप्रीम कोर्ट का 12 दिसम्बर, 2017 का आदेश महाराष्ट्र में लागू नहीं होता है, और इसी आधार पर गैरकानूनी तरीके से पैथोलॉजी चला रहे हैं।
उत्तर प्रदेश ने भी किया स्वागत
उत्तर प्रदेश में भी इसके लिए पिछले दिनों एसोसिएशन ऑफ पैथोलॉजिस्ट और माइक्रोबायोलॉजिस्ट उत्तर प्रदेश का गठन किया गया था. इसके अध्यक्ष डॉ हीरा लाल शर्मा ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं होगा।
उन्होंने बताया कि एसोसिएशन ऑफ पैथोलॉजिस्ट और माइक्रोबायोलॉजिस्ट उत्तर प्रदेश द्वारा मई 2018 में प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखा गया है जिसके साथ सुप्रीम कोर्ट की कॉपी भी भेजी गयी है ताकि सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को इस आदेश के क्रियान्वयन के लिए निर्देश भेजे जा सकें और आम जन की जान को गलत जांचों से बचाया जा सके. इस पत्र की प्रतिलिपि मुख्यमंत्री के साथ ही विभागीय अधिकारियों, जिलों के अधिकारियों, पुलिस अधीक्षकों को भी भेजी गयी थी।
डॉ शर्मा के अनुसार इस सम्बन्ध में आमजनों को भी ‘Know Your Pathologist’ अभियान के माध्यम से जानकारी दी जा रही है कि वे गलत जगहों पर जांच कराने से बचे. उन्होंने बताया कि अब जबकि रिव्यू पिटीशन भी खारिज की जा चुकी है, ऐसे में उच्चतम न्यायालय के आदेश का पूरी तरह से पालन होना और मरीज के जीवन से खिलवाड़ बंद करना अनिवार्य हो गया है। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन की तरफ से सभी से अपील है कि जब भी किसी पैथोलॉजी जांच के लिए केंद्रों पर जायें तो वहां देख लें कि पैथोलॉजिस्ट वाले डॉक्टर का नाम, उसके साथ आवश्यक डिग्री या डिप्लोमा जैसे MD अथवा DNB अथवा DCP लिखा है अथवा नहीं। अगर इस तरह की नेम प्लेट नहीं लिखी है तो ऐसे सेंटर में जांच न करायें। उन्होंने आम आदमी से अपील की है कि वे स्वयं भी इसके प्रति जागरूक रहें क्योंकि जीवन उनका है, तो क्या वह अपने जीवन के साथ किसी को खिलवाड़ करने की इजाजत दे सकते हैं? उन्होंने सरकार और प्रशासन से भी मानव के जीवन से जुड़े इस आदेश को लागू करवाने की अपील की।