-भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद अधिनियम और होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम के पक्ष में रखे तर्क
नयी दिल्ली/लखनऊ। राज्यसभा सांसद व भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1970 और होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 पर चर्चा के समय बिल के समर्थन में जो भाषण दिया उसकी खास बात यह थी कि यह गैरराजनीतिक था और दूसरी बात इसमें दिये गये तर्क विज्ञान पर आधारित थे। भाषण में उन्होंने भारतीय चिकित्सा पद्धति व होम्योपैथिक पद्धति को वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में प्रतिस्थापित करने पर जोर दिया। उनके इस भाषण की सर्वत्र सराहना हो रही है।
उन्होंने कहा कि आयुष के तहत आने वाली इन पद्धतियों के समन्वय के बारे में जब मैं कहता हूं तो लोग मुझसे कहते हैं कि आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक को एक साथ रखने की वकालत मैं क्यों करता हूं, क्योंकि दोनों पैथी अलग-अलग हैं। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि दोनों का सिद्धांत एक ही है कि विष को विष से ही खत्म किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद में कहा गया है कि हम 100 वर्ष तक जीयें, 100 वर्ष तक देखें तथा 100 वर्ष तक रोग से मुक्त रहें, ऐसी व्यवस्था हमारी इन पद्धतियों को अपनाकर ही पायी जा सकती है।
सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि बहुत से लोग इन पद्धतियों का मजाक भी उड़ाते हैं, होम्योपैथिक दवा के बारे में कहा जाता है कि दो मीठी गोलियों, दो बूंद पानी से रोगों को कैसे ठीक कर सकता है, उन्होंने कहा कि इन नैनो टेक्नोलॉजी पर आधारित होम्योपैथिक दवाओं की दो बूंदों के पीछे की जो रिसर्च है, उसे लोग नहीं देख पाते थे। उन्होंने कहा कि विश्व में जो रिसर्च चल रही हैं उनमें इन रिसर्च के परिणाम जो आ रहे हैं, उसमें देखा गया है कि यदि पानी में हम कोई दवा या पदार्थ डालते हैं तो एक मात्रा के बाद डॉल्यूशन होने से उस सब्सटेंस की मेमोरी वहां मौजूद रहती है। नेशनल हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च काउंसिल ऑफ ऑस्ट्रेलिया की रिसर्च में आये परिणामों ने डाइल्यूशन के सिद्धांत पर मुहर लगायी गयी है। उन्होंने बताया कि इस बारे में होम्योपैथिक में यह कैसे डेवलप होते हैं इस बारे में लखनऊ में एक स्थापित होम्योपैथिक विशेषज्ञ ने उन्हें विस्तार से दिखाया था। इसके अलावा एक फ्रेंच वायरोलॉजिस्ट जिन्हें नोबल पुरस्कार भी मिल चुका है, ने भी इस बात की तस्दीक की है कि हाईली डॉल्यूटेड डॉल्यूशंस में ऐसे दिल्ली के अंदर ऐसे तत्व होते हैं जो औषधि की गुणवत्ता को बढ़ा देते हैं।
उन्होंने कहा कि ऐसा हमेशा से होता है कि जब कोई न आज जो रासायनिक सिद्धांतों के आधार पर दवा का प्रतिपादन है, वह जब नैनो टेक्नोलॉजी के आधार पर होगा तो मेरे विचार से इसमें एक नया स्वरूप आ सकता है। इसलिए इनको स्थापित करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह इसलिए भी जरूरी है कि जब कुछ प्रकार की बीमारियों जिनका इलाज प्रतिपादित ऐलोपैथी में नहीं है, जैसे त्वचा रोग, ऑटोइम्यून डिजीजेस, लिवर-किडनी की बीमारियां, वायरल इनफेक्शन, एलर्जी जैसी बीमारियों से जब लोग प्रभावित हो रहे हैं और इन होम्योपैथिक दवाओं से लाभान्वित भी हो रहे हैं ऐसी स्थिति में आवश्यकता है कि उसे एक स्ट्रक्चर बेस्ड बनाया जाये ताकि लोगों को इसका लाभ मिल सके, और इस पर स्टडी करते हुए इसे और बेहतर बनाया जा सके और दुनिया के सामने बेहतर ढंग से हम अपनी बाता को रख सकें। एक स्पेशल बनाया जाए उसके ऊपर लोगों को लाभ मिल सके और आगे का प्रयोग करके दुनिया में बेहतर ढंग से अपनी बातों को रख सकें।
उन्होंने कहा कि चाहें एनिमल सोर्स हो, मिनरल सोर्स हो या फिर प्लांट सोर्स हो, उनसे मिलने वाली मेडिसिन हों, उनका एक व्यवस्थित साइंटिफिक स्वरूप सामने आना चाहिये, इसी लिए हमने आयुष मंत्रालय में इंटरडिसिप्लिनरी कोरिलेशन स्थापित करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि जब हम इंटरडिसिप्लिनरी कोरिलेशन की बात कहते हैं तो लोगों का कहना होता है कि आप सिर्फ आयुर्वेदिक होम्योपैथिक को ही क्यों मिला रहे हैं, इनका आपस में क्या संबंध है, इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जाती है, इस पर मेरा जवाब होता है कि यह निर्णय सरकार ने बहुत ही सोचसमझ कर लिया है क्योंकि दोनों पैथी में कहा गया है कि समान पदार्थ ही समान पदार्थ का शमन करता है। विष का इलाज विष माना गया है।
इसके अलावा एक सामाजिक पक्ष भी है जब हम सबके लिए स्वास्थ्य की बात करते हैं तो जब तक आर्थिक दृष्टि से सहज और सुलभ पद्धतियां नहीं होगी तब तक सबके लिए स्वास्थ्य कैसे होगा। उन्होंने कहा कि होम्योपैथी के बारे में बात करें तो स्थापित मेडिसिन की अपेक्षा इसमें सिर्फ दस प्रतिशत मूल्य खर्च होता है, दूसरा इनको लेने का तरीका इतना आसान है कि एक छोटा बच्चा जो साल दो साल का हो या फिर बहुत बुजुर्ग हो, आसानी से ले सकता है, इसमें नुकसान की कोई बात नहीं है, इन दवाओं का एक आर्थिक पहलू यह भी है कि इनकी कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती।
उन्होंने कहा कि कोविड के दौर में पहली बार ऐसा हुआ कि आधिकारिक रूप से सरकार ने आधिकारिक रूप से आयुर्वेदिक (च्यवनप्राश) और होम्योपैथिक दवा (आर्सेनिक एल्बम) को लेने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि किसी भी बीमारी से बचने के दो तरीके हैं या तो वैक्सीन जो कि अभी है नहीं, और या फिर इम्युनिटी मजबूत कर ली जाये। चूंकि इम्युनिटी बढ़ाने के लिए सिर्फ आयुर्वेद और होम्योपैथी में ही दवायें हैं, ऐलोपैथी में उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए सरकार ने इम्युनिटी बढ़ाने के लिए च्यवनप्राश और आर्सेनिक एल्बम को लेने की सलाह दी, साथ ही इस पर और रिसर्च करने की शुरुआत भी की। इसके बारे में मेरा मानना है कि आने वाले समय में देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगी। यदि हमारे पास यह विचार पहले होता तो शायद आज हम और बेहतर स्थिति में होते।
उन्होंने कहा कि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शांति निकेतन में 1936 में कहा था कि होम्योपैथिक ने भारत में अच्छी जगह बना ली है। उन्होंने कहा कि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने होम्योपैथी को भारत के माहौल में उपयोगी बताते हुए इसे बढ़ावा देने की बात कही थी। सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि रवीन्द्रनाथ टैगोर की बात पर ध्यान देकर आजादी के बाद के वर्षों में अगर आयुर्वेद और होम्योपैथी के लिए कुछ रिसर्च सेंटर बनाये गये होते, और कुछ पेटेंट होते तो आज हम दुनिया में अलग ढंग से खड़े होते। उन्होंने कहा कि अगर हमें विश्व गुरु (वर्ल्ड लीडर) बनना है, तो हमें अल्टरनेटिव पैथीज की ओर बढ़ना होगा, स्थापित ऐलोपैथी को फॉलो करके हम फॉलोअर बन सकते हैं, लीडर नहीं। उन्होंने चीन का उदाहरण देते हुए कहा कि जहां तक मुझे पता है कि चीन ने अपने पारम्परिक इलाज से मलेरिया की दवा बना ली जिसके लिए बाद में उसे नोबेल पुरस्कार मिला, हम लोग ऐसा क्यों नहीं कर पाए।
फिलहाल आयुष मंत्रालय से जुड़ा होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल संशोधन बिल 2020 राज्यसभा में दो दिन पूर्व पारित किया जा चुका है। आपको बता दें कि इससे पहले 14 सिंतबर को नेशनल कमीशन फॉर होम्योपैथी बिल 2020 और नेशनल कमीशन फॉर इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन बिल 2020 को लोकसभा में पास किया गया था। इन विधेयकों के पारित होने से भारतीय चिकित्सा पद्धति और होम्योपैथी की चिकित्सा शिक्षा में जबरदस्त सुधार की उम्मीद की जा रही है।