स्लीप एपनिया बीमारी के चलते तीन मिनट तक सांस रुकने पर हो जाती है मौत
लखनऊ। सोते समय खर्राटे लेना बहुत कॉमन बात है लेकिन इसके इतनी कॉमन समझ कर अनदेखी न करें क्योंकि खर्राटे एक स्टेज के बाद बीमारी का रूप ले लेते हैं जिसे स्लीप एपनिया कहा जाता है। अनेक प्रकार की बीमारियों के साथ ही यह मौत का भी कारण बन सकते हैं। एक तरह से कहा जा सकता है कि खर्राटे आपको कई तरह की बीमारियों से बचाने के लिए सावधान करने की घंटी हैं। इस घंटी की आवाज को सुनें और डॉक्टर से सम्पर्क करें।
यह बात केजीएमयू के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के हेड डॉ सूर्यकांत ने आज विभाग में आयोजित पत्रकार वार्ता में कही। बीमारी में बदल जाते हैं। उन्होंने कहा कि बार बार जोर से खर्राटे लेना स्लीप एपनिया का संकेत हो सकता हैं। डा0 सूर्यकांत ने बताया कि स्लीप एपनिया एक आम और संभावित रूप से गंभीर विकार है जिसमें बार-बार सांस लेना बंद हो जाता हैं। उन्होंने कहा कि स्लीप एपनिया उपचार योग्य हैं परन्तु यह अक्सर ही अनदेखा किये जाते हैं।
डा0 सूर्यकांत ने बताया कि स्लीप एपनिया में सोते समय सांस थोड़ी देर के लिए रुक जाती हैं। ये सांस रुकना आमतौर पर 10 से 20 सेकंड के लिए होता हैं और रात में सैकड़ों बार हो सकता हैं जो आपको आपकी प्राकृतिक नींद की लय से अलग कर देता हैं। यह सांस का रुकना अगर तीन मिनट तक हो जाता है तो व्यक्त्ि की मौत हो सकती है क्योंकि मस्तिष्क को अगर तीन मिनट तक ऑक्सीजन नहीं मिलती है तो वह डेड हो जाता है, यानी व्यक्ति की मौत निश्चित है।
रात को सोते समय आने वाले खर्राटों के चलते आप हल्की नींद में अधिक समय बिताते हैं और गहरी नींद में कम जबकि सुकून भरी नींद में आप ऊर्जावान मानसिक रूप से तेज महसूस करते हैं।
उन्होंने कहा कि नींद की कमी से दिन में जो नींद आती हैं वो खराब एकाग्रता और दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ा देती हैं। स्लीप एपनिया समय के साथ गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को भी जन्म दे सकता हैं जिसमें मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, स्ट्रोक और वजन बढऩा शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इसे सीधे तौर पर समझें तो सांस लेने से ऑक्सीजन जो शरीर में जाती है वह हर अंग में जाती है लेकिन जब उस ऑक्सीजन जाने में बाधा आती है तो जिस अंग में ऑक्सीजन कम गयी उस अंग की दिक्कत हो जाती है। डा. सूर्यकान्त ने बताया कि देश में लगभग 18 करोड़ लोग स्लीप एपनिया से पीड़ित है, जबकि पूरी दुनिया में लगभग 90 करोड़ इससे पीड़ित हैं।
उन्होंने बताया कि स्लीप एपनिया तीन प्रकार का होता है ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया, सेंट्रल स्लीप एपनिया और कॉम्प्लेक्स स्लीप एपनिया। इनमें ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया का सबसे सामान्य प्रकार हैं। यह तब होता है जब नींद में गले की मांसपेशियों की शिथिलता के चलते श्वसनमार्ग के आंशिक या पूर्ण रूप से अवरुद्ध होने लगता हैं। जिससे अक्सर आप जोर से खर्राटे लेते हैं।
उन्होंने बताया कि सेंट्रल स्लीप एपनिया बहुत कम जानने वाला प्रकार हैं इसमें सेंट्रल नर्वस सिस्टम शामिल होता हैं जब मस्तिष्क सांस लेने को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियों को संकेत देने में विफल रहता हैं तब सेंट्रल स्लीप एपनिया से ग्रस्त लोग खर्राटे लेते हैं। तीसरा होता है कॉम्प्लेक्स स्लीप एपनिया, यह ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया और सेंट्रल स्लीप एपनिया का संयोजन है।
डॉ सूर्यकांत ने बताया कि अपने आप ही स्लीप एपनिया की पहचान करना कठिन हो सकता हैं क्योंकि सबसे प्रमुख लक्षण केवल तब होते हैं जब आप सो रहे होते हैं। लेकिन आप अपनी नींद की आदतों के बारे में अपने पार्टनर से पूछ सकते हैं या नींद के दौरान खुद को रिकार्ड करके इस कठिनाई के आसपास पहुंच सकते हैं।
उन्होंने बताया कि कई बार ऐसा होता है कि आप खर्राटे लेते-लेते घुटन के चलते अचानक सोते से उठ जाते हैं और फिर हांफते हैं, सांस जोर-जोर से चलती है, यह प्रमुख संकेत हैं कि आपको स्लीप एपनिया हैं। इसके अतिरिक्त स्लीप एपनिया का एक और सामान्य संकेत दिन के दौरान काम पर या ड्राइविंग करते समय नींद आना भी हैं जब आपकी रात में पूरे समय सोने के बाद भी नींद पूरी न हो, दिन में जब आप सक्रिय नहीं होते हो तब आपको तेज़ी से नींद आने लगे या फिर नींद के दौरान सांस लेने में समस्या होने पर अपने डॉक्टर से बात करें।
स्लीप एपनिया के अन्य सामान्य लक्षण
– सुबह का सिरदर्द
– ध्यान केंन्द्रित न कर पाना
– चिड़चिड़ापन, उदास महसूस करना या मिजाज या व्यक्तिव में बदलाव आना
– पेशाब करने के लिए बार.बार उठना
– जब आप उठते हैं तो मुंह या गले में खराश होना
किन लोगों को है खतरा
स्लीप एपनिया किसी भी उम्र में यहां तक कि बच्चों को भी प्रभावित कर सकता हैं। स्लीप एपनिया के जोखिम में शामिल हैं:-
– अधिक वजन होना
– 40 वर्ष से अधिक आयु का होना
– बड़े गर्दन का आकार, पुरुषों में 17 इंच या उससे अधिक और महिलाओं में 16 इंच या उससे अधिक
– बढ़ी टान्सिल, बड़ी जीभ या छोटी जबड़े की हड्डी
– स्लीप एपनिया का पारिवारिक इतिहास होना
– गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स या जीईआरडी
एलर्जी या साइनस की समस्याओं के कारण नाक में रुकावट
स्लीप एपनिया के उपचार के बारे में डॉ सूर्यकांत ने बताया कि सबसे आसान उपाय है सीपैप मशीन का इस्तेमाल करना, उन्होंने बताया कि यह मुखौटा जैसी होती है जो सोते समय मुंह पर बांध ली जाती है। इससे उतना ही हवा का प्रेशर रिलीज होता है जितना आपको निर्बाध रूप से सांस लेने के श्वास नली को खुला रखने के लिए जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि इस मशीन के तीन माह तक उपयोग करने के बाद जो परिणाम आये वह बहुत संतोषजनक आये, उन्होंने बताया कि इसे इस्तेमाल करने वाले का ब्लड प्रेशर कंट्रोल हो जाता है, ब्लड प्रेशर की दवायें चल रही हैं तो वे कम हो जाती हैं, डायबिटीज का लेवल कम होना, डायबिटीज की दवा की मात्रा कम हो गयी, वजन कम हो गया।
उन्होंने बताया कि चूंकि सोते समय हमारा नीचे का जबड़ा पीछे की तरफ हो जाता है जो सांस लेने का रास्ता सकरा कर देता है, इसके लिए मेंडीगुलर एडवांसमेंट डिवाइस का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया के शुरुआती दौर में वजन कम करके भी फायदा मिल सकता है। इसके अतिरिक्त नाक, कान, गले में विशेषज्ञ द्वारा कुछ सर्जरी करके भी इस समस्या को दूर किया जा सकता है।
डॉ सूर्यकांत ने बताया कि उन्होंने इस विषय पर एक हिन्दी में एक पुस्तक ‘खर्राटे हैं खतरनाक’ लिखी थी, यह पुस्तक उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान में आमजन के लिए भी उपलब्ध है।