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होम्‍योपैथी का उपहास उड़ाने वालों का मुंह वैज्ञानिक सबूतों से करें बंद

-अमेरिकन संस्‍था के वेबिनार में डॉ गिरीश गुप्‍ता ने किया होम्‍योपैथिक चिकित्‍सकों का आह्वान

Experimental Homoeopathy : In-vitro screening of Homoeopathic Drugs against Pathogenic Fungi विषय पर दी प्रस्‍तुति

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के चीफ कन्‍सल्‍टेंट एवं होम्‍योपैथी में रिसर्च के नये आयाम गढ़ने वाले डॉ गिरीश गुप्‍ता ने कहा है कि होम्‍योपैथिक दवाओं से पौधों व मनुष्‍यों में होने वाले रोगों में लाभ होने के वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं, चिकित्‍सकों को चाहिये कि होम्‍योपैथिक दवाओं को प्‍लैसिबो बताकर इसका उपहास उड़ाने वाले लोगों का मुंह इन वैज्ञानिक प्रमाणों को दिखाकर बंद करें। उन्‍होंने कहा कि उनके द्वारा की गयीं रिसर्च देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित जर्नल्‍स में छपी हैं, यही नहीं कुछ जर्नल्‍स में तो रिसर्च पेपर छापने से पूर्व अपनी लैब में इस रिसर्च में किये गये दावे को परखा, जो कि सही पाया गया।

डॉ गिरीश गुप्‍ता ने यह आह्वान रविवार को अमेरिकन संस्‍था कविता होलिस्टिक एप्रोच (केएचए) द्वारा आयोजित वेबिनार में ”Experimental Homoeopathy : In-vitro screening of Homoeopathic Drugs against Pathogenic Fungi” विषय पर अपनी प्रस्‍तुति देते हुए किया। कनाडा, यूएसए में प्रात: 11 बजे व भारत में रात्रि साढ़े आठ बजे आयोजित इस वेबिनार में डॉ गुप्‍ता ने अपने प्रेजेन्‍टेशन में बताया कि किस तरह होम्‍योपैथी में रिसर्च उनका मुख्‍य उद्देश्‍य बन गया। उन्‍होंने बताया कि वर्ष 1979-80 में जब वह बीएचएमएस के अंतिम वर्ष में थे, उसी दौरान लखनऊ से प्रकाशित होने वाले एक समाचार पत्र में उन्‍होंने एक आर्टिकल पढ़ा जिसमें केजीएमसी के प्रतिष्ठित प्रोफेसर द्वारा होम्‍योपैथिक दवाओं को पानी प्‍लेसिबो जैसी संज्ञा देते हुए इस पैथी का मजाक उड़ाया गया था। इस बात से मैं बहुत आहत हुआ और तभी मैंने फैसला किया कि होम्‍योपैथी पर शक करने वालों को वैज्ञानिक सबूत के साथ जवाब दिया जाना जरूरी है।

डॉ गुप्‍ता ने बताया कि इसके बाद उन्‍होंने पहली बार रिसर्च की दुनिया में कदम बढ़ाने के लिए राष्‍ट्रीय वनस्‍पति अनुसंधान संस्‍थान (एनबीआरआई) से सम्‍पर्क साधा, अनेक बाधाओं को पार करते हुए अंतत: वह दिन भी आया जब तरह-तरह के फंगस  जैसे Candida albicans, Aspergillus Niger, Trichophyton,  Corvularia lunata,  Microsporum को कल्‍चर कर प्‍लेट में रखकर उस पर अल्‍कोहल, सादा पानी और होम्‍योपैथिक दवा को अलग-अलग डालकर इसकी प्रतिक्रिया देखी गयी, इसमें फंगस पर सादे पानी और अल्‍कोहल के डालने से कोई प्रभाव नहीं पड़ा जबकि होम्‍योपैथिक दवा डालने से कल्‍चर प्‍लेट में फंगस ठीक होता दिखा। इस तरह से इस एक्‍सपेरिमेंट से यह साबित हुआ कि जो लोग होम्‍योपैथिक दवाओं के बजाय प्‍लेसिबो, अल्‍कोहल का असर बता रहे थे, वे गलत थे जबकि होम्‍योपैथिक दवाओं ने फंगस ठीक कर अपनी वैज्ञानिकता साबि‍त की।

उन्‍होंने बताया कि पिछले दिनों वर्ष 2021 में कोविड के चलते ब्‍लैक फंगस के कई मामले सामने आये थे, ब्‍लैक फंगस के नाम से जानी जाने वाली Aspergillus Niger को होम्योपैथिक दवाओं से 1995 में ही ठीक किया गया था, ऐसे में मेरे पास आने वाले ऐसे मामलों में मैंने होम्‍योपैथिक दवाओं से इसे उपचारित किया।

 ‘अग्नि परीक्षाओंसे भी गुजरी हैं रिसर्च

डॉ गुप्‍ता ने बताया कि उनकी रिसर्च के बारे में जर्नल्‍स में प्रकाशन से पूर्व कई जगह इसमें किये गये दावे को परखा गया। उन्‍होंने बताया कि विश्‍वस्‍तरीय संस्‍था इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ एप्‍लाइड बायोलॉजी के जर्नल के ऑथर ने तो Candida albicans फंगस पर रिसर्च पेपर छापने से पूर्व अपनी लैब में स्‍वयं परीक्षण किया, और हमारी रिसर्च को सही पाया। इसी प्रकार होम्‍योपैथिक के सर्वाधिक प्रतिष्ठित सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन होम्‍योपैथी (सीसीआरएच) के जर्नल ‘इंडियन जर्नल ऑफ रिसर्च होम्‍योपैथी’ में भी रिसर्च प्रकाशित होने से पूर्व हमारी टीम को सीसीआरएच द्वारा बुलाकर नोएडा में सेंट्रल रिसर्च इंस्‍टीट्यूट की लैब में परीक्षण कर रिसर्च की सफलता को साबित करने को कहा गया था।   

प्रेजेन्‍टेशन के बाद में वेबिनार से जुड़े डॉक्‍टर्स ने अपनी जिज्ञासाओं को शांत किया। देश-विदेश से जुड़े डॉक्‍टरों ने मैसेज के जरिये रिसर्च की सराहना की। वेबिनार का संचालन डॉ पूजा नायक ने किया। उन्‍होंने प्रेजेन्‍टेशन के अंत में डॉ गुप्‍ता का आभार जताते हुए केएचए की ओर से वर्चुअली एक सम्‍मान पत्र भी प्रदान किया।

2 comments

  1. बहुत ही शोधपरक आलेख! मैंने अपनी वेबसाईट https://homoeonet.com/ पर इस आलेख को backlink भी दिया है।

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