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किशोर-किशोरियों के लिए सेक्‍स शिक्षा है जरूरी, हाईस्‍कूल से ही देनी चाहिये

लोहिया इंस्‍टीट्यूट की प्रो यशोधरा प्रदीप ने कहा किशोरावस्‍था में गर्भधारण से बचने के लिए जागरूकता बहुत जरूरी

लखनऊ। किशोरावस्था में मातृत्व बोझ की दिक्कत सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों की ही नहीं, बल्कि शहरी क्षेत्रों की भी है। कम उम्र में विवाह अगर एक कारण है तो दूसरा कारण शहरों में हॉस्टल में रहने वाले वे टीनएजर्स भी है जो जाने-अनजाने एक दूसरे के आकर्षण के  फलस्वरूप शारीरिक संबंध बना लेते हैं, जिसका नतीजा कम उम्र की लड़कियों में गर्भ ठहरने के रूप में सामने आता है इसके लिए किशोर और किशोरियों दोनों को सेक्स एजुकेशन देना ही विकल्प है।

 

यह बात लोहिया इंस्टीट्यूट के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो यशोधरा प्रदीप ने केजीएमयू के कलाम सेंटर में बुधवार को आयोजित ‘किशोरियों पर मातृत्व का बोझ’ कार्यशाला में कही। उन्होंने कहा कि 16 साल से 25 साल की उम्र ऐसी होती है जिसमें शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए लड़के-लड़के कुछ भी कर गुजरते हैं, क्योंकि इस उम्र में शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि हाई स्कूल की शिक्षा के समय से ही किशोर किशोरियों को सेक्स एजुकेशन देने की शुरुआत कर देनी चाहिए।

 

उन्होंने कहा अफसोस होता है जब इन सब तरह की घटनाओं का शिकार होकर 20-20 साल की लड़कियों की बच्चेदानी निकालनी पड़ती है, यानी न चाह कर भी भविष्य में भी उसके मां बनने की संभावनाओं को समाप्त करना पड़ता है।

 

 

मुख्‍य वजह है अशिक्षा  डॉ सृष्टि श्रीवास्‍तव

इस मौके पर उपस्थित नवयुग कन्या महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ सृष्टि श्रीवास्तव ने कहा कि मुख्य रूप से यह समस्या अशिक्षित होने की वजह से है, इसलिए शिक्षा का प्रसार और जागरूकता फैलाकर इस समस्या से निपटा जा सकता है। उन्‍होंने कहा कि पढ़े-लिखे परिवारों में इस तरह की घटनाएं लगभग नहीं होती हैं।

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सिर्फ टोका-टाकी नहीं, दोस्‍त बनें माता-पिता : शुभांगी

कार्यक्रम में उपस्थित फीमेल यूथ लीडर श्री जय नारायण डिग्री कॉलेज की शुभांगी चतुर्वेदी ने कहा कि हम लड़कियों को शुरू से यह कहा जाता है, ऐसा करो, ऐसा ना करो, क्योंकि तुम लड़की हो बात-बात में लड़की होने का हवाला देकर हमें आगे बढ़ने से रोका जाता है। उन्‍होंने कहा कि जबकि उस समय जरूरत बच्चे की पीठ पर हाथ रखकर समझाने की होती है। यदि कोई बड़ा उसकी पीठ पर हाथ रखकर कहे कि हम तुम्हारे साथ हैं आगे बढ़ो, तो लड़कियां पॉजिटिव सोच के साथ देश के लिए, परिवार के लिए अच्छा कर सकती हैं। लड़कियों से कभी नहीं पूछा जाता कि तुम क्या बनना चाहती हो, बल्कि उसकी शिक्षा पूरी होने पर घर रिश्तेदार सब जगह उसके विवाह की बात की जानी शुरू हो जाती है। शुभांगी ने कहा मेरा मानना है यदि माता-पिता अपने बच्चों के दोस्त बन कर रहें, उन्हें सही-गलत को समझाएं तो किशोरावस्था में होने वाले गर्भधारण जैसी समस्याओं की दिक्कत भी समाप्त हो जाएगी।